‘अस्थमा’ बांट रही लाइफस्टाइल

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अस्थमा श्वांस नली की बीमारी है। श्वांस नाली में बार-बार शिकुडऩ पैदा होती है। अस्थमा विशेषज्ञ डॉक्टर मनीष जैन का कहना है कि अस्थमा का समय रहते सही उपचार नहीं कराया जाए तो यह जानलेवा भी हो सकता है। अस्थमा के प्रति लापरवाही की जाए तो इसका अटैक कभी भी हो सकता है। तेजी से बदलती लाइफस्टाइल और असंयमित दिनचर्या ने अस्थमा बीमारी को फैलाया है।

इसके साथ ही वर्तमान में बच्चों में भी यह बीमारी तेजी से देखने को मिल रही है। परफ्यूम, स्प्रे, डियो एवं तेज सुगंध युक्त साबुन के इस्तेमाल के साथ ही खानपान की असावधानी से अस्थमा के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इतना ही नहीं घर में धूल मिट्टी के कण जहां इस बीमारी के जन्मदाता साबित हो रहे हैं वहीं वायुमंडल का प्रदूषण, मोटर कार और कल कारखानों से निकलने वाला धुआँ, तापमान में तेजी से बदलाव, नमी-सीलन एवं एसी की आदत भी इस बीमारी को बढ़ा रही है। एलर्जिक राइनाइटिस और जेनेटिक भी इस बीमारी के मूल कारक माने जाते हैं। उम्रदराज मरीजों में यह बेहद हावी हो जाती है।

अस्थमा के लक्षण
सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द, भारीपन, सीटी जैसी आवाज, रात को एवं सुबह जल्दी खांसी आना, अत्यधिक थकान, नाक से पानी एवं छीके आना आदि प्रमुख लक्षण पाए जाते हैं।

बचाव ही उपचार
अस्थमा के प्रारंभिक समय में यदि मरीज अपनी आदतों में बदलाव कर ले तो इसे कुछ ही समय में ठीक किया जा सकता है। नियमित व्यायाम, योग और ध्यान के साथ ही अल सुबह की ताजी हवा में गहरी सांस लें और छोड़ें। खानपान चिकित्सक की सलाह से लें। घर से बाहर स्कार्फ लगाकर निकलें। वाहनों के साइलेंसर के ठीक पीछे खड़े नहीं रहें। समय-समय पर अस्थमा विशेषज्ञ से सलाह लेते रहें। फेफड़े का टेस्ट कराएं। इससे अस्थमा का उपचार किया जा सकता है और इस गंभीर बीमारी पर भी काबू पाया जा सकता है। सजगता से अस्थमा को बढऩे से रोका जा सकता है।