कैसीन रहित व एमिनोग्लोबिन की अधिकता वाले ऊंटनी के दूध का सेवन करने से ऑटिज्म पीडि़त बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ती है,
फरीदकोट। ऑटिज्म रोग से पीडि़त बच्चों के लिए ऊंटनी का दूध रामबाण का काम करेगा। कैसीन रहित व एमिनोग्लोबिन की अधिकता वाले ऊंटनी के दूध का सेवन करने से ऑटिज्म पीडि़त बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ती है, जिससे उनकी बीमारी जल्द ठीक हो जाती है।
इजराइल के वैज्ञानिक डॉ. रेवीन यागिल और बाबा फरीद सेंटर फॉर स्पेशल चिल्ड्रन, फरीदकोट ने वर्ष 2009 में ऑटिज्म पीडि़त बच्चों पर संयुक्त शोध किया। इसमें सामने आया कि ऑटिज्म पीडि़त बच्चे मेंटल डिसऑर्डर का शिकार न होकर मेडिकल डिसऑर्डर का शिकार हैं। यही नहीं, अधिकतर बच्चे आंत रोग, एलर्जी व इंफेक्शन से पीडि़त हैं। ये सभी दूध व गेहूं में पाए जाने वाले कैसीन एवं ग्लूटीन से पीडि़त होते हैं। शोध टीम के वरिष्ठ सदस्य डॉ. अमर सिंह आजाद ने बताया कि बच्चों के लिए दूध का महत्व देखते हुए टीम ने देश में पाए जाने वाले कई जानवरों के दूध पर शोध किया। इसका उद्देश्य यह था कि किस जानवर के दूध में कैसीन नहीं पाया जाता है। ऊंटनी के दूध में जहां कैसीन नहीं मिला, वहीं इसमें एमिनोग्लोबीन अधिक पाया गया। ऑटिज्म पीडि़त बच्चों को ऊंटनी का दूध पिलाया गया तो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से विकसित हुई। इससे उनकी बीमारी में तेजी से सुधार देखा गया।
बाबा फरीद सेंटर फॉर स्पेशल चिल्ड्रन के संचालक डॉ. प्रीतपाल सिंह के अनुसार ऑटिज्म की रोकथाम के लिए अब शोध में राजस्थान की नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर कैमल्स (एनआरसीसी) भी शामिल हो गई है।
क्या है ऑटिज्म
ऑटिज्म एक प्रकार का मेडिकल डिसऑर्डर है। पहले इसे मेंटल डिसऑर्डर माना जाता रहा। बच्चे का अपने आप में मस्त रहना, किसी वस्तु के प्रति अत्यधिक लगाव रखना, चीजों को सूंघते रहना व तोडफ़ोड़ करना, किसी वस्तु को एकटक देखना, बिना मतलब इधर-उधर भागते रहना, बेवजह हंसना और गुस्सा करना इस बीमारी के प्रमुख लक्षणों में है।