जानिए घुटने में दर्द से कैसे पाए निजात ?

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मोटे होने से डायबीटीज और दिल संबंधी बीमारियों से निजात पाने के लिए लोग कई तरह की फिजिकल ऐक्टिविटीज करते हैं। यह अच्छी बात है लेकिन ऐसा करते हुए ये लोग अनजाने में अपने घुटनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

मैक्स साकेत अस्पताल के डायरेक्टर और घुटना व कंधा विभाग के प्रमुख डॉ. जे. माहेश्वरी ने बताया कि एक बार उनके पास 40 साल की एक महिला पेशंट घुटने में दर्द की शिकायत लेकर आई। उन्होंने बताया कि यह महिला खेल कोच थी और उसको 8 साल पहले घुटने में चोट आई थी। उसने घरेलू थेरपी को आजमाया और दर्द से कुछ दिनों के लिए निजात पाया। लेकिन ऐसा करना उसके लिए भारी पड़ गया। घुटने में मामूली चोटें तो फिजियोथेरपी या आराम से ठीक हो जाती हैं लेकिन अगर चोट गंभीर है तो उसकी सर्जरी करनी पड़ती है। ऐसा ही कुछ केस था बिहार के ऋषभ कुमार का। उनके घुटने में कुल 6 बार चोट लगी थी और यह लग-भग डैमेज हो चुका था। उनके पिता के मुताबिक है कि बिहार में डॉक्टर्स ने उसको खेलने से मना कर दिया और उसको आराम की सलाह दी लेकिन इससे उसकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ।

सफदरगंज स्पोर्ट्स इंजरी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. दीपक चौधरी ने बताया कि घुटने के लिगामेंट में चोट वाला दीपक उनका अब तक पहला सबसे युवा पेशंट है। दीपक की मानें तो स्पोर्ट्स से जुड़े युवाओं के चोटें लना स्वाभाविक है। उन्होंने कई जिम जाने वालें लोगों के घुटने का भी इलाजा किया है। उन्होंने बताया कि अगर लिगामेंट डैमेज हो गया और इसको नजरअंदाज कर दिया गया तो इससे सॉफ्ट टिशूज को नुकसान पहुंचता है और इससे इंसान जिंदगी भर के लिए अपंग भी हो सकता है।

सफदरगंज अस्पताल में ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. बलवीर सिंह के मुताबिक, एक्स-रे सॉफ्ट टिशूज या लिगामेंट को पहुंचने वाले नुकसान को ट्रेस नहीं कर पाता है। ऐसे में एक्स-रे रिपोर्ट को अंतिम मानकर पेशंट दर्द निवारक दवाएं लेना और घरेलू उपचार लेना शुरू कर देते हैं। उनके मुताबिक, एमआरई के जरिए ही घुटने के सॉफ्ट टिशू या लिगामेंट से जुड़ी ठीक रिपोर्ट मिलती है। आज से तकरीबन एक दशक पहले घुटना प्रत्यर्पण ही अंतिम विकल्प माना जाता था लेकिन टेक्नॉलजी और विज्ञान के बढ़ने के साथ ही इसमें बदलाव आया है। अब घुटने की गंभीर चोटों को कीहोल सर्जरी या ऑर्थोस्कोपी के जरिए भी ठीक किया जा सकता है। इसमें डैमेज हुए लिगामेंट्स को दोबारा तैयार किया जाता है और घुटने के जोड़ से मकैनिकल ब्लॉक हटाया जाता है। कई सर्जन कार्टिलेज रिस्टोरेशन और ट्रांसप्लांट तकनीक के जरिए भी घुटनों की गंभीर चोटों के उपचार के लिए इस्तमेमाल करते हैं। इसके अलावा प्लेटलेट रिच प्लाज्मा यानी पीआरपी के जरिए भी उपचार करना एक विकल्प है। इसमें भी सॉफ्ट टिशू को री-जेनरेट किया जाता है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के अध्ययन ने भी 2015 में यह खुलासा किया था कि ऑर्थोस्कोपिक सर्जरी ज्यादा बेहतर विकल्प है। अधेड़ और बुजुर्ग लोगों के घुटनों में गठिया रोग के इलाज के लिए एक्सरसाइज और वजन आदि घटाने से उपचार की शुरुआत की जा सकती है।