कुदरत की बेमिसाल कारीगरी कहें या फिर दो शिलाओं का अद्भुत संतुलन, बैलेंसिंग रॉक पर सबकी नजर ठहर जाती है. दुनियाभर के पर्यटक उसे देखने खिंचे चले आते हैं. मध्यप्रदेश के एक देवी मंदिर के ऊपर यह झूलती हुई एक अनोखी चट्टान है. आकाशीय बिजली के चमकने के दौरान यह चट्टान हिलने के साथ हल्की आवाज भी करती है. यहां 20 फीट से ज्यादा लंबी-चौड़ी यह चट्टान देवी मंदिर के ठीक ऊपर झूल रही है. इससे यह स्थानीय लोगों में श्रद्धा का केंद्र है.
बैलेंसिंग रॉक्स के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण हजारों साल पहले ज्वालामुखी फटने से हुआ था. भू-गर्भशास्त्रियों के अनुसार, यह करीब 650 लाख वर्ष पूर्व मुंबई की तरफ फटे ज्वालामुखी का लावा है. इन्हें जियोलॉजी में आग्नेय चट्टानें कहा जाता है. 20 टन से ज्यादा भारी इस चट्टान को बैलेंसिंग रॉक कहा जाता है, क्योंकि यह अपने ऊपरी कोने से और निचले हिस्से में कुछ इंच ही दूसरी चट्टानों में फंसी हुई है. इसे नीचे और ऊपर की चट्टानों के वजन ने अटकाए रखा है.
आग्नेय चट्टान वह चट्टानें हैं, जिनका निर्माण ज्वालामुखी से निकले मैग्मा या लावा से होता है. जब तप्त एवं तरल मैग्मा ठण्डा होकर जम जाता है और ठोस अवस्था को प्राप्त कर लेता है, तो इस प्रकार की चट्टानों का निर्माण होता है. माना जाता है कि पृथ्वी की उत्पत्ति के पश्चात सर्वप्रथम इन चट्टानों का ही निर्माण हुआ था. इसीलिए ये चट्टानें ‘प्राथमिक चट्टानें’ भी कही जाती हैं.