यह गांव नागालैंड के मोन जिले में है लेकिन यहीं से अंतरराष्ट्रीय सीमा भी गुजरती है, जो दुनिया की तमाम सरहदों के लिए अमन की मिसाल हो सकता है. अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे इस गांव का नाम लोंगवा है और ये भारत के नागालैंड प्रांत में स्थित है. इस गांव पर कुदरत भी बहुत मेहरबान है.
इस जनजाति के राजा का नाम अंग नगोवांग है और इसके अधीन लोंगवा समेत कुल 75 गांव आते हैं. इस गांव से जुड़ी रोचक बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा गांव के मुखिया के घर से निकलती है. उनका आधा घर भारत में है और आधा म्यांमार में. इस परिवार के लोगों का खाना म्यांमार में पकता है और वे आराम भारत में करते हैं, ऐसा कई घरों के साथ है. यह खूबी इस गांव को दूसरों से अलग बनाती है.
लोंगवा गांव के लोगों के पास दोनों ही देशों के नागरिकता है यानी वे भारत के नागरिक भी हैं और म्यांमार के भी. गांव के मुखिया का एक बेटा तो म्यांमार की सेना में भी है. यहां देश के नाम पर टकराव तथा तनाव बिल्कुल नहीं दिखाई देता. मूलत: यह गांव आदिवासियों एवं उनकी प्राचीन परंपराओं से जुड़ा है.
मुखिया एक से ज्यादा शादी करते हैं. यहां तक कि उनकी की संख्या 60 भी रही है. बहुत पहले यहां कबीलों में आपसी युद्ध होते थे. तब एक कबीला दूसरे कबीले के लोगों की गर्दनें काटकर उसे विजय के प्रतीक के रूप में सहेजकर रखता था. अब यह परंपरा बंद हो चुकी है लेकिन आज भी खोपडिय़ों के ढेर उन परंपराओं की यादें ताजा कर देते हैं.