महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर "ठाकरे ब्रांड" का सियासी जलवा लौटने की संभावना बनती दिख रही है। आगामी बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनावों के लिए उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) ने साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। करीब दो दशकों बाद दोनों ठाकरे एक मंच पर नजर आए और इस गठबंधन की औपचारिक घोषणा एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए की। इसके बाद दोनों नेताओं ने मुंबई के शिवाजी पार्क स्थित बाळासाहेब ठाकरे के स्मारक पर श्रद्धांजलि भी अर्पित की।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में उद्धव ठाकरे ने कहा कि दोनों पार्टियां बीएमसी चुनावों में एकजुट होकर उतरेंगी और गठबंधन लंबे समय तक बनाए रखने के इरादे से यह फैसला लिया गया है। वहीं राज ठाकरे ने कहा कि मुंबई का अगला मेयर मराठी होगा और वह इसी गठबंधन से आएगा। हालांकि, बीएमसी चुनावों के लिए सीट शेयरिंग को लेकर कोई औपचारिक घोषणा फिलहाल नहीं की गई है।
गौरतलब है कि साल 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया था। इसके बाद से दोनों ठाकरे गुटों के बीच टकराव देखने को मिलता रहा। ऐसे में लंबे समय बाद दोनों का बीएमसी चुनावों के लिए एक साथ आना मुंबई की राजनीति में एक अहम मोड़ माना जा रहा है, खासकर ‘मराठी मानुष’ के मुद्दे को लेकर।
इस गठबंधन के पीछे कई राजनीतिक कारण माने जा रहे हैं। अलग-अलग चुनाव लड़ने से मराठी वोटों का बंटवारा होता रहा है, जिसका फायदा विरोधी दलों को मिलता रहा। शिवसेना में फूट के बाद उद्धव ठाकरे को एक राजनीतिक सहयोगी की जरूरत महसूस हो रही थी, वहीं राज ठाकरे के लिए यह गठबंधन अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने का मौका माना जा रहा है। इसके साथ ही ‘ठाकरे’ नाम का एक साथ आना कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के बीच भावनात्मक असर भी छोड़ सकता है।
इसका राजनीतिक विश्लेषण किया जाए तो शिवसेना में विभाजन के बाद उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) का जनाधार पहले जैसा व्यापक नहीं रहा है और फिलहाल इसे एक सीमित वोटबैंक वाला दल माना जाता है। ऐसे में यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि केवल इस गठबंधन से पूरी तस्वीर ही बदल जाएगी, लेकिन मुंबई और मराठी वोटरों की राजनीति पर इसका कुछ असर पड़ सकता है। इस गठबंधन के बाद अब बीएमसी चुनाव की लड़ाई ‘ठाकरे बनाम महायुति’ के बीच और अधिक रोचक हो गई है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि यह ठाकरे एकजुटता चुनावी नतीजों में कितनी सीटों के रूप में सामने आती है।