आखिर कब तक भारत में बाल विवाह और घरेलू हिंसा के शिकार होते रहेंगे लोग !

Highlights  बाल विवाह की स्थिति : भारत में हर चार में से एक लड़की की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है। बाल विवाह और घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के लिए लागू है कई कानून। NCRB के अनुसार 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 31.4% मामले घरेलू हिंसा से संबंधित थे।

भारत में बाल विवाह और घरेलू हिंसा जैसे सामाजिक कुरीतियाँ आज भी व्यापक रूप से व्याप्त हैं, जो महिलाओं और किशोरियों के अधिकारों और जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर प्रभाव डालती हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठन (NGOs) और समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन इनकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि पूरी तरह से उन्मूलन अभी भी एक चुनौती बना हुआ है।

बाल विवाह: एक अनवरत समस्यावर्तमान स्थितियूनिसेफ की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर चार में से एक युवती (23%) की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है। विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार और त्रिपुरा जैसे राज्यों में यह प्रतिशत 40% से अधिक है। कानूनी पहलभारत सरकार ने 2006 में "बाल विवाह निषेध अधिनियम" लागू किया, जिसमें लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष निर्धारित की गई। इस अधिनियम के तहत बाल विवाह को अपराध घोषित किया गया है, और इसके उल्लंघन पर दंड का प्रावधान है। 

सरकारी योजनाएँ 

कन्याश्री प्रकल्प: पश्चिम बंगाल सरकार की यह योजना किशोरियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करती है और बाल विवाह को रोकने में मदद करती है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ: यह राष्ट्रीय योजना बालिकाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण को बढ़ावा देती है, जिससे बाल विवाह की प्रवृत्ति में कमी लाई जा सके।  सामाजिक पहल बाल विवाह मुक्त भारत अभियान: यह अभियान 2030 तक भारत को बाल विवाह मुक्त बनाने का लक्ष्य रखता है।  असम में पहल: असम सरकार ने 2021-24 के बीच बाल विवाह के मामलों में 81% की कमी दर्ज की है, जो एक सकारात्मक संकेत है।

घरेलू हिंसा: एक छिपी हुई त्रासदी आंकड़े और तथ्य: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में महिलाओं के खिलाफ दर्ज अपराधों में से 31.4% मामले पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता के थे।

कानूनी संरचना: घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: इस अधिनियम के तहत महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, यौन, आर्थिक और मौखिक हिंसा से सुरक्षा प्रदान की जाती है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 498A: यह धारा पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता को अपराध घोषित करती है।

सहायता और समर्थन: राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): 2024 में आयोग को घरेलू हिंसा से संबंधित 6,237 शिकायतें प्राप्त हुईं, जो कुल शिकायतों का 24% थीं।

बेल बजाओ अभियान: यह अभियान समुदाय को घरेलू हिंसा के मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे पीड़ित महिलाओं को सहायता मिल सके।

सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाएँ: बाल विवाह और घरेलू हिंसा की जड़ें सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं में गहराई से समाई हुई हैं। गरीबी, अशिक्षा, पितृसत्तात्मक सोच और सामाजिक दबाव इन कुरीतियों को बढ़ावा देते हैं। कई बार पीड़ित महिलाएं और लड़कियां सामाजिक बदनामी के डर से शिकायत दर्ज नहीं करातीं, जिससे अपराधियों को प्रोत्साहन मिलता है।

समाधान की दिशा में कदम

शिक्षा और जागरूकता: बालिकाओं की शिक्षा को प्रोत्साहित करना और समाज में जागरूकता फैलाना आवश्यक है। कानूनी प्रवर्तन: कानूनों का सख्ती से पालन और दोषियों को शीघ्र दंडित करना जरूरी है। सामाजिक समर्थन: पीड़ितों को परामर्श, आश्रय और पुनर्वास सेवाएं प्रदान करना चाहिए। सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को इन कुरीतियों के खिलाफ सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

बाल विवाह और घरेलू हिंसा जैसी सामाजिक कुरीतियाँ भारत में आज भी एक सच्चाई हैं। हालांकि सरकार और समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन इन समस्याओं का पूर्ण उन्मूलन अभी भी एक लंबा रास्ता है। इसके लिए सामूहिक प्रयास, जागरूकता, शिक्षा और सशक्तिकरण की आवश्यकता है, ताकि एक सुरक्षित और समान समाज की स्थापना हो सके।

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