कैसे हुई थी आर्टीफ़शियल इंटेलिजेंस की शुरुआत? अमेरिका-चीन के बाद अब मैदान में उतरेगा भारत

Highlights आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत। क्या हैं AI के फायदे और नुकसान। भारत लॉन्च करेगा अपना AI मॉडल।

नई दिल्ली: इंसानी बुद्धिमत्ता तो शुरू से दुनिया पर राज करती रही है, किन्तु मानव ने अब मशीनों को इतना बुद्धिमान बनान शुरू कर दिया है कि वो अपने आप सोच-विचारकर निर्णय ले सकें, इसी को कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी Artificial Intelligence (AI) कहा गया। इसके अनुसार, मशीनें बिना इंसानी हस्तक्षेप के या कम से कम इंसानी दखल के साथ बेहतर काम कर सकती हैं। जैसे बिना ड्राइवर के चलने वाली कार, ये कृत्रिम बुद्धिमत्ता का ही एक उदाहरण है, जिसमे मशीनी बुद्धिमत्ता अपनी समझ के अनुसार व्यक्ति को सुरक्षित तरीके से उसके गंतव्य तक पहुंचा सकती है। इंसानी वाणी को समझने वाली Alexa भी इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो है तो मशीन, किन्तु इंसानी वाणी को समझकर उसके साथ संवाद भी करती है और कमांड के अनुरूप अन्य कार्य भी करती है। इसके जरिए सोचने, विश्लेषण करने व याद रखने का काम भी अब इंसानी दिमाग की जगह मशीनों द्वारा करवाया जा रहा है। आसान शब्दों में कहें तो, आर्टीफ़शियल इंटेलिजेंस, कंप्यूटर विज्ञान की वो शाखा है, जिसमे सॉफ्टवेयर के माध्यम से मशीनों की बुद्धि को विकसित किया जाता है, ताकि वो अपनी समझ के अनुसार काम कर सके। किन्तु हर तकनीक की तरह, इसके भी फायदे और नुकसान दोनों हैं।  

आर्टफिशियल इंटेलिजेंस के फायदे और नुकसान : AI के फायदे AI के नुकसान ये आपकी कार्यक्षमता बढ़ाकर समय की बचत कर सकता है।   AI के अधिक उपयोग से नौकरियां जाने का खतरा बन सकता है।   मानवीय त्रुटियों की गुंजाईश को कम कर सकता है।   तकनीक पर निर्भरता बढ़ने से मानव सुस्त हो सकता है।    इंसानों के लिए 24 घंटे काम कर सकता है।      AI में मौजूद डाटा और पूर्वाग्रह के कारण गलतियां हो सकती हैं।    मानव श्रम को कम करके कंपनियों की लागत में कटौती कर सकता है।   मनुष्य की निजता को इससे खतरा हो सकता है।   एक ही जगह पर अधिक से अधिक जानकारी दे सकता है।  

AI के जरिए धोखाधड़ी का खतरा भी बढ़ सकता है, जैसे Deepfake।

कौन है AI का जनक और क्या है इसका इतिहास?

मशीनों को उनकी अपनी बुद्धि देने का विचार और उस पर शोध कार्य 1943 के मध्य में शुरू हो चुका था, किन्तु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शब्द का पहली बार इस्तेमाल अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन मैकार्थी (John McCarthy) ने 1956 में डार्टमाउथ वर्कशॉप (Dartmouth workshop) के दौरान किया। इस वर्कशॉप का उद्देश्य ही मशीनों को सोचने समझने की शक्ति प्रदान करना था। हालाँकि, इसमें मैकार्थी के अतिरिक्त  क्लाउड शैनन, नाथनियल रोचेस्टर और मार्विन मिंस्की जैसे वैज्ञानिक और विद्वान् भी शामिल थे, किन्तु पहली बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नाम देने के कारण मैकार्थी को ही AI का जनक माना जाता है। इस वर्कशॉप को 'AI का संवैधानिक सम्मेलन' भी कहा जाता है। इसमें मैकार्थी ने पूरी दुनिया के सामने ये सोच रखी थी कि, विज्ञान और इंजीनियरिंग का इस्तेमाल करके ऐसी कंप्यूटर मशीनें तैयार की जा सकती हैं, जो खुद ही सोच-समझकर फैसले लेने में सक्षम हो। ये वर्कशॉप लगभग 8 सप्ताह तक चली, जिसमे 11 विद्वानों ने हिस्सा लिया। 

डार्टमाउथ वर्कशॉप के सदस्य थे : डॉ. मार्विन मिंस्की (अमेरिकी वैज्ञानिक) डॉ. जूलियन बिगेलो (अमेरिकी कंप्यूटर इंजिनियर) प्रोफेसर डीएम मैके (ब्रिटिश वैज्ञानिक) रे सोलोमनॉफ (अमेरिकी गणितज्ञ) जॉन हॉलैंड (अमेरिकी वैज्ञानिक) डॉ. जॉन मैकार्थी (अमेरिकी वैज्ञानिक) डॉ. क्लाउड शैनन (अमेरिकी वैज्ञानिक) नाथनियल रोचेस्टर (अमेरिकी वैज्ञानिक) ओलिवर सेल्फ्रिज (ब्रिटिश वैज्ञानिक) डॉ. एलन न्यूवेल (अमेरिकी शोधकर्ता) प्रोफेसर हर्बर्ट साइमन (अमेरिकी शोधकर्ता)

इन विद्वानों के अतिरिक्त ये वर्कशॉप जॉन वॉन न्यूमैन और एलन ट्यूरिंग जैसे वैज्ञानिकों के विचारों और सिद्धांतों से भी प्रभावित थी, जिन्होंने एक सार्वभौमिक कंप्यूटिंग मशीन की अवधारणा दी थी और AI के लिए बुनियाद की तरह काम किया। हालाँकि, इसे 1950 के दशक में सफलता नहीं मिली, किन्तु वैज्ञानिकों ने जो चर्चा छेड़ दी थी, और जो बुनियाद तैयार कर दी थी, उसने दुनिया भर के देशों का ध्यान आकर्षित किया। तकनीक में आगे रहने वाले जापान की भी नज़र इस पर पड़ी और 1981 में उसने फिफ्थ जनरेशन योजना नाम से एक 10 वर्षीय कार्यक्रम शुरू किया, जिसका उद्देश्य था सुपर कंप्यूटर बनाना, यानी सोचने वाली मशीन। जापान के कदम बढ़ते देख, अमेरिका-ब्रिटेन जैसे देशों में भी खलबली मच गई, और उन्होंने AI पर काम तेज कर दिया। ब्रिटेन ने जहाँ 'एल्वी' (Alvey) नाम से प्रोजेक्ट शुरू किया, वहीं यूरोपीय संघ के देशों ने भी 'एस्प्रिट' नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इसके बाद से ये सिलसिला सा चल पड़ा और दुनियाभर में इस पर चिंतन शुरू हो गया, जिसके नतीजे आज हम देख ही रहे हैं।  

अमेरिका का ChatGpt यानी OpenAI :

अमेरिकन कंपनी OpenAI ने नवंबर 2022 को ChatGPT लॉन्च करके दुनियाभर में तहलका मचा दिया, ये विश्व का पहला बड़ा भाषा मॉडल (LLM) वाला AI चैटबॉट बना, जो इंसानी कमांड को समझकर अपनी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जरिए जवाब देने में सक्षम है। ये लेख लिख सकता है, इंसानों द्वारा दी गई किसी भी कमांड के अनुसार उससे संवाद कर सकता है। ChatGPT का पूरा नाम "Chat Generative Pre-trained Transformer" है। विद्यार्थियों से लेकर पेशेवर तक इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे विद्यार्थी इसके जरिए अपने आवेदन और प्रोजेक्ट्स में मदद ले सकते हैं, वहीं पेशेवर भी रिसर्च पेपर तैयार करने में ChatGPT की सहायता ले सकते हैं। ChatGPT के पास सूचनाओं और जानकारियों का एक विशाल भंडार है, जिसके जरिए वो चंद सेकंड में ही आपकी कमांड का जवाब दे सकता है। ये लगातार अपडेट होता रहता है और नई जानकारियां अपने डेटाबेस में जोड़ता रहता है। किन्तु एक सावधानी भी है, आँख मूंदकर ChatGPT पर भरोसा करना आपके लिए भारी पड़ सकता है, क्योंकि इसकी कुछ जानकारियां गलत भी हो सकती हैं, ये बात खुद OpenAI कहता है कि ChatGPT से मिलने वाले जवाबों की जांच कर लेना जरूरी है।   

चीन ने भी लॉन्च किया DeepSeek :

चीन की एआई कंपनी DeepSeek ने हाल ही में DeepSeek-R1 नाम का नया मॉडल लॉन्च किया है, जिसने दुनिया का ध्यान खींचा है। इसकी लॉजिकल रीजनिंग क्षमता काफी मजबूत बताई जा रही है। इतना ही नहीं, DeepSeek का AI Assistant ऐप Apple के ऐप स्टोर पर सबसे ज्यादा डाउनलोड किया गया मुफ्त ऐप बन गया है। इस लॉन्च के बाद अमेरिकी शेयर बाजार में हलचल भी देखी गई। Liang Wenfeng द्वारा बनाए गए इस AI मॉडल ने कम समय में ही काफी लोकप्रियता हासिल कर ली है। कई लोगों का मानना है कि ये ChatGPT से भी तेज और बेहतर है, और Deepseek के पास अधिक जानकारियां हैं। शायद यही कारण है कि अमेरिका-ब्रिटेन जैसे चीन के प्रतिद्वंदी देशों में भी Deepseek काफी पॉपुलर हो रहा है। हालाँकि, कुछ लोगों का ये भी कहना है कि चीन इस AI टूल के जरिए लोगों की जानकरियां चुराने के फिराक में है, किन्तु इस आधार पर ये आरोप तो हर AI टूल पर लगेगा, जिस पर भी लोग अपनी पर्सनल चीज़ें शेयर करेंगे।      

AI जगत में कदम रखने जा रहा भारत :

दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को लेकर तेजी से बदलाव हो रहे हैं, और अब भारत भी इस दौड़ में पीछे नहीं रहना चाहता। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ऐलान किया है कि भारत अपना स्वदेशी जेनरेटिव एआई मॉडल तैयार कर रहा है, जो देश की भाषाई, आर्थिक और सामाजिक जरूरतों के अनुरूप होगा। इसका मतलब साफ है, भारत अब OpenAI के ChatGPT और चीन के DeepSeek जैसी तकनीकों को टक्कर देने की तैयारी में है।  

उत्कर्ष ओडिशा कॉन्क्लेव के दौरान वैष्णव ने बताया कि भारत में एआई डेटा सेंटर बनाए जा रहे हैं, और इन्हें AI Compute Facility द्वारा संचालित किया जाएगा। इस परियोजना के तहत 18,000 GPU जुटाए गए हैं, जिससे भारत का अपना Large Language Model (LLM) विकसित किया जाएगा। यह मॉडल खासतौर पर भारत की जरूरतों के अनुसार डिज़ाइन किया जाएगा, जिसमें स्थानीय भाषाओं को भी अहमियत दी जाएगी। सरकार का कहना है कि यह एआई मॉडल सिर्फ चैटबॉट तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसे स्वास्थ्य सेवाओं, प्रशासन, शिक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में भी इस्तेमाल किया जाएगा। यह मॉडल देश की बहुभाषी विविधता को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है, ताकि हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी जैसी भाषाओं में भी इसका प्रभावी उपयोग हो सके।

ChatGPT की पेरेंट कंपनी OpenAI के CEO सैम अल्टमैन के भारत दौरे पर आने की संभावना है। माना जा रहा है कि भारत में AI सेक्टर को लेकर वे किसी बड़ी घोषणा कर सकते हैं। भारत के एआई मॉडल का मकसद सिर्फ वैश्विक कंपनियों को टक्कर देना नहीं, बल्कि इसे भारतीय संदर्भ में उपयोगी बनाना भी है। खासतौर पर सरकारी सेवाओं में एआई का व्यापक इस्तेमाल करने की योजना है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशासन में सुधार लाया जा सके। भारत ने 5G, सेमीकंडक्टर और डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में जो सफलता हासिल की है, उसे देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि भारतीय एआई मॉडल भी जल्द ही बाजार में दस्तक देगा और देश को तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर एक और कदम आगे बढ़ाएगा।

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