बढ़ता प्रदूषण..घटता जीवन, यदि नहीं किया इसे कम तो नजदीक है अंत !

Highlights दुनिया भर में बढ़ता प्रदूषण बीमारियों का कारण हैं। ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएं और प्रदूषण से छुटकारा पाएं। हवा में गुणवत्ता की कमी से बढ़ सकता है सांस संबंधित बीमारियों का खतरा।

प्रदूषण वर्तमान समय की सबसे गंभीर पर्यावरणीय समस्याओं में से एक माना जा रहा है। यह हमारे स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र और वैश्विक जलवायु पर प्रभाव डाल रहा है। आधुनिक औद्योगीकरण, शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि की वजह से प्रदूषण के लेवल में लगातार बढ़ोतरी देखने के लिए मिली है। चारो तरह से सुनने के लिए मिलने वाली ऐसी बातें जो सोचने के लिए मजबूर कर देती है। बात प्रदूषण की उठे, तो लोग सामाजिक, सांस्कृतिक या भाषायी प्रदूषण की बात भी करते हैं। सामाजिक मान्यताओं को झकझोरने वाले व्यवहारिक प्रदूषण के दायरों का तो कोई आकलन करना भी नहीं चाहता। किंतु पर्यावरण प्रदूषण का क्षेत्र इस समय बढ़ता ही जा रहा है।

प्रदूषण पर प्रमुख शोधकर्ता और उनके अध्ययन:-

थॉमस मिडगली जूनियर: वर्ष 1920 के दशक में, थॉमस मिडगली जूनियर ने लेडेड पेट्रोल और क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) का आविष्कार किया, जो बाद में वायु प्रदूषण और ओजोन परत के क्षरण की प्रमुख वजह बन गई।

रैचल कार्सन: रैचल कार्सन की प्रसिद्ध पुस्तक Silent Spring (1962) ने पर्यावरणीय प्रदूषण, विशेष रूप से कीटनाशकों के प्रभावों पर व्यापक शोध प्रस्तुत किया और पर्यावरण आंदोलन को बढ़ावा दिया।

पॉल क्रुटज़ेन, मारियो मोलिना और एफ. शेरवुड रोलैंड: इन वैज्ञानिकों ने ओजोन परत के क्षरण में क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) की भूमिका को स्पष्ट कर दिया, जिसके लिए उन्हें 1995 में नोबेल पुरस्कार मिला।

डॉ. वी. रामनाथन ने प्रदूषणकारी एरोसोल (जैसे ब्लैक कार्बन) और जलवायु परिवर्तन पर उनके प्रभावों का विस्तृत अध्ययन किया। 

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और IPCC: इन संगठनों द्वारा किए गए शोध कार्यों ने जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के कारणों और प्रभावों को उजागर किया।

वायु प्रदूषण:-

वायु प्रदूषण वातावरण में हानिकारक गैसों और कणों की उपस्थिति की वजह से पैदा होता है। मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOₓ) और पार्टिकुलेट मैटर (PM) इसके प्रमुख घटक हैं। इसके प्रमुख कारणों में औद्योगिक गतिविधियाँ, वाहनों से निकलने वाला धुआं और जीवाश्म ईंधनों का जलना शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक वायु प्रदूषण एक ऐसी स्थिति है जिसके बाह्य वातावरण में मनुष्य और उसके पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्व सघन रूप में जमा हो जाते हैं। मानवीय छेड़छाड़ या प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर इसका विस्तार स्थानीय, क्षेत्रीय, महादेशीय अथवा वैश्विक रूप में देखने के लिए मिल सकता है। कैंसर, अस्थमा और सांस की अन्य बीमारियां वायु प्रदूषण की देन है। अम्लीय वर्षा से ऐतिहासिक इमारतों और मूर्तियों का क्षय, फसल एवं जंगलों की बर्बादी या जलीय प्रदूषण के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है।

वायु प्रदूषण से बचने के लिए

घर, फैक्ट्री, वाहन के धुंए को सीमा में रखें। पटाखों का इस्तेमाल न करें। कूड़ा-कचरा न जलाएं अथवा नियत स्थान पर डालें। वायु प्रदूषण संबंधी सभी कानूनों का पालन करें। जल प्रदूषण:- 

जल प्रदूषण उस समय बढ़ता है जब जल स्रोतों में हानिकारक रसायन, प्लास्टिक, औद्योगिक कचरा और कृषि में प्रयुक्त कीटनाशक मिल जाते है। इसकी वजह से न केवल जल जीवन को नुकसान पहुँचता है, बल्कि पीने योग्य पानी की गुणवत्ता में भी भारी गिरावट देखने के लिए मिलती है। वहीं गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियाँ जल प्रदूषण का सामना कर रही हैं, जिससे जलजनित रोगों में वृद्धि हुई है।  तैलीय रिसाव, विषैले रसायनों तथा रासायनिक एवं परमाणु कचरों के छोड़े जाने से समुद्र भी अब प्रदूषण का शिकार होते जा रहे है। नदियों और समुद्र में रहने वाली मछलियां तथा अन्य कई दुर्लभ जीवों का जीवन संकट से गुजर रहा है। समुद्री प्रदूषण फैलाने में विकसित राष्ट्र सबसे अग्रणी हैं। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन तथा प्रदूषण भी विश्व के अधिकांश देशों के लिए एक भयंकर समस्या है। पेय जल या सिंचाई के लिए निकाले गए भूमिगत जल की उच्च दर ने भूगर्भीय जल स्तर को काफी नीचे ले जाकर मरुस्थलीकरण की संभावना को बढावा दिया है। 

जल प्रदूषण से बचने के लिए नालों-कुओं-तालाबों-नदियों में गंदगी न करें। सार्वजनिक जल वितरण के साथ छेडछाड न करें। विसर्जन नियत स्थान पर ही करें। पानी की एक भी बूंद बर्बाद न करें। जल प्रदूषण संबंधी सभी कानूनों का पालन करें।   तेजी से काटे जा रहे जंगल...प्रदूषण का अहम् कारण :  

दुनिया भर में इस बात से कोई भी अनजान नहीं है कि लगातार इंसान खुद के विकास के लिए किस तरह से जंगलों की कटाई करने में लगा हुआ है। लेकिन ये लोग इस बात से अनजान है कि यदि जंगलों को काट दिया तो भारी मात्रा में ऑक्सीजन की मात्र में कमी आने लग जाएगी। जिसकी वजह से कई नई बीमारियाँ जन्म लेंगी और मानवीय जीवन पर संकट बढ़ता जाएगा। यदि आप भी चाहते है कि दुनियाभर में प्रदूषण का स्तर कम हो जाए तो आज से ही ज्यादा से ज्यादा लोगों को वृक्षारोपण के लिए जागरूक करना शुरू कर दें।

मृदा प्रदूषण : 

मृदा या भूमि प्रदूषण मुख्य रूप से प्लास्टिक कचरे, रासायनिक उर्वरकों और औद्योगिक अपशिष्टों की वजह से फैलता है। जब ये तत्व मिट्टी में मिलते हैं, तो इसकी उर्वरता कम होने लग जाती है, जिसकी वजह से कृषि उत्पादकता प्रभावित होती है। साथ ही, कचरे के अनुचित निपटान से पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।

ध्वनि प्रदूषण :

शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण ध्वनि प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि हुई है। वाहनों का शोर, औद्योगिक मशीनें और लाउडस्पीकर जैसी गतिविधियाँ इस समस्या को बढ़ाती हैं। इससे मानसिक तनाव, नींद की समस्या और सुनने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ध्वनि प्रदूषण का गुणात्मक स्वरुप का संबंध भाषाई समझ अथवा ध्वनि की कर्णप्रियता से है। आप अगर हिंदी भाषी हैं और कोई चीनी या जापानी में बात करने लगे तो आप अपना सिर पीटने लग जाएंगे। हिंदुस्तानी अथवा कर्नाटकी शास्त्रीय संगीत के लिए आप अगर स्नेहभाव नहीं रखते तो पंडित भीमसेन जोशी के नाद स्वर भी आपको कर्णकटु लगेंगे। शादी के कुछ वर्ष आप अगर गुजार चुके हों, तो कभी संगीत जैसी मधुर तान सुनाई देने वाली पत्नी की बोली में आपको उच्च डेसीबेल स्तर के ध्वनि प्रदूषण की गुणात्मक झलक मिल जाएगी। किसी भी प्रकार के ध्वनि का मान अगर 50 डेसीबेल से ऊपर हो जाए तो मानवीय स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उसे ध्वनि प्रदूषण की स्थिति समझी जाती है। व्यस्त यातायात या कारखानों से निकली आवाज़ 90 डेसीबेल स्तर की होती है।

ध्वनि प्रदूषण से बचने के लिए :  घर में टी.वी., संगीत संसाधनों की आवाज धीमी रखें।  कार का हार्न अनावश्यक न बजाएं। लाउड स्पीकर का प्रयोग न करें। शादी-विवाह में बैंड-बाजे-पटाखे आदि व्यवहार में न लाएं। ध्वनि प्रदूषण संबंधी सभी कानूनों का पालन करें।

Related News