लखनऊ : उत्तर प्रदेश के राजधानी लखनऊ के निवासी शुभांशु शुक्ला जिनकी उम्र 39 साल है आज उनकी अंतरिक्ष यात्रा शुरू होने जा रही है, यात्रा के क्षेत्र में अपनी एक अलग ही पहचान बना चुके है। इंडियन एयरफोर्स के गौरप कैप्टेन, शुभांशु शुक्ला को कुछ ही समय में एक्सिओम-4 मिशन में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) चुन लिया गया है। इस मिशन के अंतरगत वे 11 जून यानी आज Spacex के फाल्कन 9 रॉकेट से उड़ान भरने वाले है, इतना ही नहीं वे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रहने वाले प्रथम भारतीय बताए जा रहे है।
प्रेरणादायक है शुभांशी शुक्ल की कहानी :शुभांशु शुक्ला की कहानी एक अत्यंत प्रेरणादायक है। उनका जन्म 10 अक्टूबर 1985 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ। शुरूआती शिक्षा उन्होंने सिटी मॉन्टेसरी स्कूल से प्राप्त की। इतना ही नहीं साल 2006 में उन्होंने भारतीय वायुसेना में कमीशन प्राप्त किया। अपने सेवा काल के दौरान उन्होंने वायुसेना के विभिन्न लड़ाकू विमानों में 2,000 घंटे से भी अधिक उड़ान भरने का अनुभव अर्जित किया है। उन्होंने सुखोई-30 एमकेआई, मिग-21, मिग-29, जगुआर, हॉक, डॉर्नियर और एएन-32 जैसे अनेक विमान न सिर्फ उड़ाए बल्कि उनका परीक्षण भी किया है।
कई बार ले चुके है ट्रेनिंग :उनकी अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत उस वक़्त हुई जब उन्हें इसरो के गगनयान मिशन के लिए चुन लिया गया। यह मिशन भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है, और शुभांशु इसके प्रमुख उम्मीदवारों में शामिल रहे हैं। इसके अंतर्गत उन्होंने रूस स्थित गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर और बेंगलुरु में स्थित इसरो के अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र में विशेष प्रशिक्षण हासिल किया है।
माता-पिता ने हमेशा किया सपोर्ट :शुभांशु शुक्ला की कामयाबी में उनके परिवार का अहम योगदान साबित हुआ है। उनके पिता, राम्भू दयाल शुक्ला, उत्तर प्रदेश सचिवालय में संयुक्त सचिव पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। उनकी मां ने हमेशा उनके सपनों में विश्वास किया और हर कदम पर उनका समर्थन किया। शुभांशु की पत्नी काम्या, जो एक डेंटिस्ट हैं, और उनका छह साल का बेटा कियाश भी इस विशेष क्षण का हिस्सा बनने को लेकर बेहद उत्साहित हैं। शुभांशु की यह यात्रा केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं के लिए भी एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
राकेश शर्मा थे पहले इंडियन स्पेस यात्री थे :इस मिशन के माध्यम से भारत को अंतरिक्ष में कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग करने और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिलेगा, जिससे देश की अंतरिक्ष यात्रा को एक नई दिशा और गति मिलेगी। शुभांशु शुक्ला का परिवार लखनऊ के त्रिवेणी नगर में निवास करता है। तीन भाई-बहनों में शुभांशु सबसे छोटे हैं। उनकी दो बहनें हैं — निधि और शुचि। शुभांशु शुक्ला अपने परिवार से डिफेंस फोर्स में शामिल होने वाले पहले सदस्य हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, 1984 के बाद यह पहला अवसर है जब कोई भारतीय अंतरिक्ष की यात्रा करेगा। शुभांशु, राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय बनने जा रहे हैं।
क्या है स्पेस स्टेशन पर होने वाले 7 प्रयोग मायोजेनेसिस :यह widely ज्ञात है कि अंतरिक्ष में अंतरिक्षयात्रियों को मांसपेशियों की क्षति का सामना करना पड़ता है। यह परेशानी विशेष रूप से लंबे अंतरिक्ष मिशनों और सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रैविटी) पर आधारित अनुसंधान के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरकर सामने आती है। उदाहरण पर बात की जाए तो ये नासा की अंतरिक्षयात्री सुनीता विलियम्स जब 9.5 महीने तक अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में रहीं, तो उनकी पीठ और पैरों की मांसपेशियों में कमजोरी आ गई थी। वहीं यह अनुसंधान स्टेम सेल विज्ञान और पुनर्योजी चिकित्सा संस्थान (रीजेनेरेटिव मेडिसिन इंस्टीट्यूट) से जुड़े भारतीय प्रधान जांचकर्ताओं द्वारा प्रस्तावित किया गया है। यह अध्ययन मांसपेशियों से संबंधित रोगों, बढ़ती उम्र के प्रभावों और लंबे समय तक निष्क्रिय रहने की स्थिति में होने वाली समस्याओं के उपचार इलाज के रूप में सहायक साबित हो सकता है।
2. अंतरिक्ष स्टेशन पर फसल बीजों का करेंगे अध्ययन :अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर छह विभिन्न फसल बीज किस्मों का अध्ययन किया जाने वाला है, ताकि यह समझा जा सके कि स्पेसफ्लाइट का इन पर क्या असर होगा। इसके पश्चात इन बीजों की खेती कर वांछित गुणों और उनके आनुवंशिक स्वरूप का विश्लेषण भी किया जाने वाला है। केरला एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी द्वारा प्रस्तावित यह शोध भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए यह जानने की कोशिश पर ध्यान देने वाले है कि अंतरिक्ष में फसलों की खेती कैसे संभव हो सकती है।
3. वॉयेजर टार्डिग्रेड्स – अंतरिक्ष के सूक्ष्म योद्धा :अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला के साथ एक बहुत अनोखा साथी भी होगा—टार्डिग्रेड्स, जिन्हें वॉटर बियर्स भी कहा जाता है। ये छोटे, 8 पैरों वाले सूक्ष्म जीव होते हैं जिनके पंजे या पैड होते हैं। ‘वॉयेजर टार्डिग्रेड्स’ नामक यह प्रयोग, एक्सिओम-4 मिशन पर इंडिया के 7 वैज्ञानिक अध्ययनों में से एक है, जिसका उद्देश्य इन लचीले जीवों का सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में अध्ययन करना जरुरी है।
टार्डिग्रेड्स अत्यधिक कठोर परिस्थितियों जैसे निर्जलीकरण, अत्यधिक तापमान, दबाव, विकिरण और अंतरिक्ष के निर्वात को भी सहन कर सकते हैं। वे क्रिप्टोबायोसिस नामक सुप्त अवस्था में चले जाते हैं, जहां उनका चयापचय लगभग रुक जाता है। इनके अद्भुत लचीलापन और जैविक तंत्र को समझने से न केवल मंगल या चंद्रमा पर दीर्घकालिक मिशनों की योजना में मदद मिलेगी, बल्कि पृथ्वी पर जैव प्रौद्योगिकी के नए आयाम भी खुल सकते हैं।
4. स्पेस में माइक्रोएल्गी का व्यवहार :इस प्रयोग के इस्तेमाल अंतरिक्ष में माइक्रोएल्गी की वृद्धि, चयापचय और आनुवंशिक गतिविधि का अध्ययन किया जाने वाला है। इसका उद्देश्य यह समझना है कि गुरुत्वाकर्षण रहित वातावरण में माइक्रोएल्गी कैसे व्यवहार करते हैं और उनका उपयोग अंतरिक्ष जीवन समर्थन प्रणालियों में कैसे कर सकते है।
5. अंकुरित बीजों पर अनुसंधान :यह इसरो का प्रयोग स्पेसफ्लाइट के दौरान फसल बीजों के अंकुरण और उनकी वृद्धि पर प्रभावों की जांच करेगा। मिशन के बाद इन बीजों को कई पीढ़ियों तक उगाया जाएगा ताकि यह अध्ययन किया जा सके कि उनके जेनेटिक मेकअप, माइक्रोबियल लोड और पोषण मूल्य में क्या परिवर्तन होते हैं।
6. ISS पर सायनोबैक्टीरिया का अध्ययन :एक अन्य रोचक प्रयोग सायनोबैक्टीरिया पर आधारित है—ये ऐसे जलजीव बैक्टीरिया हैं जो प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम होते हैं। इसरो और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) मिलकर दो प्रकार के सायनोबैक्टीरिया की वृद्धि दर, कोशिकीय प्रतिक्रिया और जैव-रासायनिक गतिविधियों का विश्लेषण करेंगे, ताकि अंतरिक्ष में जीवन समर्थन प्रणालियों में इनके उपयोग की संभावना को जांचा जा सके।
7. वॉयेजर डिस्प्ले – स्पेस में स्क्रीन का व्यवहार :क्या आपने कभी सोचा है कि अंतरिक्ष में शून्य गुरुत्वाकर्षण के बीच स्क्रीन का उपयोग कैसे होता है? शुभांशु शुक्ला इस विषय पर विशेष अध्ययन करेंगे। यह रिसर्च इस बात की जांच करेगी कि अंतरिक्ष में कंप्यूटर स्क्रीन पर काम करने के दौरान आंखों की गति, फोकस, इशारों से नियंत्रण और मानसिक थकान जैसे कारकों पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह अध्ययन यह भी देखेगा कि ये गतिविधियां अंतरिक्ष यात्रियों के मानसिक तनाव को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।