नई दिल्ली : प्रदूषण को आम तौर पर हम लोग जितना हल्के में लेते हैं, ये उतनी सामान्य समस्या है नहीं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, ये इंसान के लिए तम्बाखू से भी जानलेवा है। तम्बाखू तो फिर भी अधिकतर उसकी जान लेती है, जो उसका सेवन करता है, किन्तु हवा में फैला प्रदूषण, नवजात बच्चे से लेकर घरों के अंदर रहने वाले बुजुर्गों तक के लिए हानिकारक है। इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि, 2021 में पूरे विश्व में तंबाकू के चलते अनुमानित 75 से 76 लाख मौतें हुई होंगीं। जबकि, वायु प्रदूषण ने लगभग 81 लाख लोगों की जिंदगी छीनी है। यानी पूरे विश्व में लगभग, 22 हज़ार लोग हर दिन, वायु प्रदूषण के कारण जान गंवाते हैं। इन आंकड़ों की चर्चा इसलिए की जा रही है, क्योंकि भारत की राजधानी दिल्ली ने पूरे विश्व के सबसे प्रमुख शहरों में सबसे प्रदूषित शहर बनकर चिंता बढ़ा दी है।
स्विट्जरलैंड स्थित वायु गुणवत्ता निगरानी कंपनी IQAir ने मार्च 2025 में एक हैरान करने वाली रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार 2024 के आंकड़ों के आधार पर, दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में प्रथम स्थान पर है, वहीं भारत विश्व का पांचवा सबसे प्रदूषित देश है। देशों के मामले में भारत ने दो स्थानों का सुधार अवश्य किया है, 2023 के आंकड़ों में हम तीसरे स्थान पर थे। किन्तु दिल्ली ने लगातार छटवीं बार सबसे प्रदूषित राजधानी बनकर खतरे की घंटी बजा दी है।
IQAir के अनुसार, 2024 में पांच सबसे प्रदूषित देश : चाड (91.8 µg/m3): विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के PM2.5 वार्षिक दिशानिर्देश से 18 गुना अधिक। बांग्लादेश (78.0 µg/m3): WHO के PM2.5 वार्षिक दिशानिर्देश से 15 गुना अधिक। पाकिस्तान (73.7 µg/m3): WHO के PM2.5 वार्षिक दिशानिर्देश से 14 गुना अधिक। कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (58.2 µg/m3): WHO के PM2.5 वार्षिक दिशानिर्देश से 11 गुना अधिक। भारत (50.6 µg/m3): WHO के PM2.5 वार्षिक दिशानिर्देश से 10 गुना अधिक।IQAir की रिपोर्ट में बताया गया है कि, दुनिया में सिर्फ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, बहामास, बारबाडोस, ग्रेनेडा, एस्टोनिया और आइसलैंड ही ऐसे देश हैं, जहां की वायु गुणवत्ता WHO द्वारा निर्धारित किए गए मानकों के भीतर पाई गई है, इसके अलावा, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस जैसे बड़े और समृद्ध देश भी अपनी जनता को शुद्ध हवा देने में नाकाम रहे हैं। जिसमे भारत की स्थिति तो बेहद ही ख़राब है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2021 में वायु प्रदूषण 21 लाख लोगों की मौत का कारण बना था, जिसमे 1।69 लाख से अधिक 5 वर्ष से छोटी आयु के बच्चे शामिल थे, जिनका प्रदूषण फैलाने में कोई योगदान ही नहीं था। भारत के बाद दूसरे स्थान पर अफ्रीकी देश नाइजीरिया रहा था, जहाँ 5 साल से छोटी उम्र के लगभग 1।15 लाख बच्चों ने जान गंवाई थी। ये भारत के लिए बेहद चिंता की बात है कि आतंक पीड़ित और गरीब देश नाइजीरिया भी इस मामले में उससे बेहतर रहा था। क्या होते हैं PM कण ? जो बनते हैं मौत का कारण
PM कण (Particulate Matter) हवा में मौजूद सूक्ष्म कण होते हैं, जिनमें PM2.5 और PM10 शामिल हैं। ये धूल, गंदगी, कालिख, धुआं और तरल बूंदों में मिले हुए होते हैं, ये इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हे नग्न आँखों से देखना असंभव है। ये 'सूक्ष्म कण' डीजल वाहनों से निकलने वाले धुंए, कचरे और फसल जलाने पर पैदा होने वाले धुंए और कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों जैसे कई छोटे-मोटे स्रोतों से पैदा होते हैं। 10 माइक्रोमीटर से कम व्यास वाले कणों को PM10 कहते हैं, ये कण सांस के माध्यम से श्वसन प्रणाली में प्रवेश कर सकते हैं तथा वहां जमा हो सकते हैं, जिनसे जटिल स्वास्थ्य परेशानियां पैदा हो सकती हैं। विशेषकर, अस्थमा रोगियों के लिए ये अधिक घातक हो सकते हैं।
वहीं,,2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास वाले कणों को PM2.5 कहा जाता है, ये इतने सूक्ष्म होते हैं, जिनकी तुलना मानव बाल की चौड़ाई के 30वें हिस्से से की जाती है, ये सर्वाधिक घातक होते है। क्योंकि ये शरीर के काफी अंदर तक उतर सकते हैं, और फेफड़ों की गहराई तक समा सकते हैं, जिससे मौत होने की आशंका अधिक हो जाती है। विशेषकर, गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद घातक होते हैं, जो स्वास्थ भ्रूण को भी विकृत कर सकते हैं। इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने PM2.5 को लेकर मानक तय किए हैं कि PM2.5 के लिए वार्षिक औसत सांद्रता 5 μg/m³ से अधिक नहीं होनी चाहिए। किन्तु भारत के लिए चिंता की बात ये है कि भारत में PM2.5 की मात्रा, इस मानक से 10 गुना अधिक यानी 50.6 µg/m3 दर्ज की गई है। इस बढ़ते प्रदूषण के कारण भारतीयों की उम्र औसतन 5 साल कम हो रही है। IQAir की रिपोर्ट के अनुसार, केवल दिल्ली ही नहीं, बल्कि भारत के लगभग 35% शहर ऐसे हैं, जो WHO के मानकों से 10 गुना अधिक प्रदूषित हैं। इन शहरों में नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद जैसे बड़े शहर भी शामिल हैं और लोनी, गंगानगर, भिवाड़ी, मुज़फ्फरनगर जैसे छोटे शहर भी।
भारत में कब उठा वायु प्रदूषण का मुद्दा ? WHO की 1989 की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली उस समय विश्व का चौथा सबसे प्रदूषित शहर था। मार्च 1995 में पर्यावरणविद् और वकील एम।सी। मेहता ने दिल्ली वायु प्रदूषण का मुद्दा उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। अदालती सुनवाई में दिल्ली के वाहनों को प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण माना गया और दूसरी वजह थी कारखाने। अदालत ने लगभग 1300 फैक्टरियों और ईंट-भट्टों को राजधानी की सीमा से बाहर करने का आदेश दिया। इसी साल केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने दिल्ली प्रदूषण पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसका SC ने स्वतः संज्ञान लिया। रिपोर्ट में प्रदूषण के 4 मुख्य कारण बताए गए, जिसमे एक 'विकास' भी था। दिल्ली की गाड़ियां (67%), थर्मल प्लांट (13%), अन्य कारखाने (12%) और घरों से होने वाला प्रदूषण (8%) बताया गया। तब जाकर इससे निपटने के लिए 1998 में पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) की स्थापना की गई। EPCA ने प्रदूषण से निपटने के लिए दो वर्षीय प्लान अदालत के सामने रखा। जिसमे 15 साल से अधिक पुराने वाहनों को हटाया गया। सीसा युक्त पेट्रोल को बंद किया गया। ट्व-स्ट्रोक इंजन वाले ऑटो पर रोक लगा दी गई। कोयले से चलने वाले पॉवर प्लांट्स को गैस संचालित पॉवर प्लांट्स से बदला गया।सबसे हैरान करने वाली बात तो ये रही कि दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण आज से लगभग 30 वर्ष पहले 90 के दशक में ही पता चल चुका था। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने 1997 में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि राजधानी में परिवहन के लिए 15000 DTC बसों की आवश्यकता है, जो कि प्राकृतिक गैस से चलती थीं और बहुत कम प्रदूषण फैलाती थीं। हालाँकि, उस समय दिल्ली में महज 3000 बसें चलती थीं। और इसी कारण लोग आवागमन के लिए ऑटो, ट्व व्हीलर, डीजल टेम्पो आदि का इस्तेमाल शुरू किया, जिससे प्रदूषण और बढ़ने लगा। वक़्त गुजरता गया और दिल्ली हांफती रही।
25 वर्ष गुजर गए, कांग्रेस के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी दिल्ली पर शासन कर लिया, किन्तु परिवहन की समस्या ज्यों की त्यों बनी रही। सितंबर 2023 के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में DTC की कुल 4088 बसें ही चलती थीं, जिनमे 3288 गैस संचालित थीं और 800 इलेक्ट्रिक। और ये एक बड़ा कारण रहा कि 2024 में दिल्ली लगातार छटवीं बार दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनकर बदनाम हुई।
मौजूदा सरकार ने क्या उठाए कदम :31 मार्च 2025 से राजधानी में 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों और 10 साल से पुराने डीजल वाहनों के संचालन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग जाएगा। इस फैसले का उद्देश्य शहर में जहरीली हवा को नियंत्रित करना और लोगों को साफ-सुथरी सांस लेने लायक माहौल देना है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली सरकार ने यह साफ कर दिया है कि अगर कोई वाहन इन नियमों का उल्लंघन करता पाया गया तो उसे जब्त कर स्क्रैप किया जाएगा। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि 31 मार्च के बाद शहर के पेट्रोल पंपों पर 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों को ईंधन नहीं दिया जाएगा।
इसके लिए पेट्रोल पंपों पर खास तरह के गैजेट लगाए जाएंगे, जो ऐसे वाहनों की तुरंत पहचान कर लेंगे। जैसे ही कोई पुराना वाहन पंप पर पहुंचेगा, उसे पेट्रोल देने से मना कर दिया जाएगा। इस संबंध में दिल्ली सरकार जल्द ही केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्रालय को भी सूचित करेगी। दिल्ली के सभी ऊंचे भवनों, होटलों और वाणिज्यिक परिसरों में एंटी-स्मॉग गन लगाना अनिवार्य किया जाएगा। इससे निर्माण स्थलों और बड़े भवनों के आसपास उड़ने वाली धूल और प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकेगा।
इसके अलावा दिल्ली के कूड़े के पहाड़ों को लेकर भी कार्ययोजना तैयार की गई है। भलस्वा लैंडफिल के बड़े हिस्से से कूड़ा हटाकर वहां 54 हजार बैंबू प्लांट लगा भी दिए गए हैं, ताकि एक ग्रीन बैल्ट बने और उसके आसपास रहने वाले लोगों को समस्या का सामना न करना पड़े। साथ ही सार्वजनिक परिवहन को भी पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल बनाने का प्रयास है। सिरसा ने बताया है कि दिसंबर 2025 तक दिल्ली में चल रही 90 प्रतिशत CNG बसों को चरणबद्ध तरीके से हटाया जाएगा और इनकी जगह इलेक्ट्रिक बसें लाकर राजधानी में स्वच्छ और टिकाऊ सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत किया जाएगा।
पेट्रोल-डीजल वाहनों पर सख्ती, एंटी-स्मॉग गन की अनिवार्यता और इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत से उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में दिल्ली के लोग बेहतर और स्वस्थ वातावरण में सांस ले सकेंगे। अब देखना यह है कि 31 मार्च के बाद यह नए नियम किस तरह से लागू होते हैं और दिल्ली की हवा को साफ करने में कितने कारगर साबित होते हैं।