अब भारत-रूस साथ मिलकर करेंगे AK-19 और PPK-20 का निर्माण, जानिए क्या होगी इनकी खासियत

Highlights भारत और रूस मिलकर AK-19 और PPK-20 का करेंगे निर्माण। PPK-20 सबमशीन गन में हैं कई खूबियां। दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका एवं मिडिल ईस्ट से आर्डर की संभावना।

नई दिल्ली : भारत और रूस की रणनीतिक रक्षा साझेदारी एक नई ऊंचाई की तरफ बढ़ रहे है। दोनों देशों ने AK-19 कार्बाइन और PPK-20 सबमशीन गन के संयुक्त निर्माण की योजना बनाई। यह उत्पादन यूपी के अमेठी स्थित इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड (IRRPL) में किया जाने वाला है, जहां पहले ही AK-203 राइफल्स का निर्माण किया जा रहा है। इस पहल का अहम उद्देश्य है भारत को छोटे हथियारों के निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान देना है, तकनीक हस्तांतरण को बढ़ावा देना और भविष्य में वैश्विक रक्षा बाजार में मजबूत उपस्थिति को लोगों के समक्ष दिखाना है।

इतना ही नहीं भारत अब तक अपनी सैन्य जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर हथियारों का आयात करता हुआ आ रहा है, जिससे न केवल विदेशी मुद्रा खर्च होती है, बल्कि सामरिक निर्भरता भी बढ़ रही है। सीमावर्ती क्षेत्रों जैसे लद्दाख और पूर्वोत्तर में क्लोज-कॉम्बैट या ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए हल्के और आधुनिक हथियारों की आवश्यकता लगातार बनी हुई रहती है।

AK-19 कार्बाइन : 

यह 5.56×45mm NATO गोला-बारूद उपयोग करता है और 500 मीटर तक सटीक फायरिंग करने के काबिल है। इसका हल्का वजन और नाइट ऑपरेशन के लिए फ्लैश हाइडर जैसे फीचर्स इसे आधुनिक युद्ध की जरूरतों के अनुरूप बना रहे है।

PPK-20 सबमशीन गन : 

दरअसल ये गन 9×19mm कारतूस चलाती है और शहरी इलाकों में करीबी मुकाबले के लिए बहुत है। इसकी फायरिंग रेंज 200 मीटर तक की बताई जा रही है, और हैंडलिंग बेहद ही सरल है, जो इसे विशेष बलों और पुलिस के लिए उपयुक्त बनाता है।

हालांकि इंडिया में AK-203 राइफल्स का निर्माण किया जा रहा है, फिर भी तकनीक हस्तांतरण और 100% स्वदेशी उत्पादन में देरी और लागत वृद्धि जैसी बाधाएं हमेशा से ही सामने आती रहीं है। इसके साथ साथ रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का पर प्रभाव सप्लाई चेन और डिप्लोमैटिक प्रेशर पर भी पड़ने लगा है।

खबरों की माने तो रूस से तकनीक हस्तांतरण के साथ भारत AK-19 और PPK-20 का घरेलू निर्माण का काम शुरू करने जा रहा है। यह आत्मनिर्भर भारत अभियान को नया बल देने का काम करेगा। IRRPL का लक्ष्य है कि 2030 तक 6 लाख से अधिक हथियार तैयार किए जाने वाले है, जिसे वक़्त से पूर्व ही पूरा करने की योजना भी बनाई है।

इस परियोजना के लाभ :

आत्मनिर्भरता: भारत की आयात पर निर्भरता घटेगी। रोजगार: 90% भारतीयों को शामिल करते हुए 500 से ज्यादा नौकरियों की भर्ती होगी। निर्यात: साउथ एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व देशों से ऑर्डर मिलने से इंडिया को हथियार निर्यातक के रूप में नई पहचान मिल जाएगी। सुरक्षा: सेना और पुलिस के पास अधिक प्रभावशाली और आधुनिक हथियार भी मिलेंगे। तकनीकी उन्नयन: भारत को छोटे हथियारों के इलाके में विशेषज्ञता हासिल होगी।

इतना ही नहीं रूस के साथ यह साझेदारी केवल हथियार उत्पादन तक सीमित नहीं होने वाला, बल्कि यह भारत की रक्षा नीति, रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक शक्ति संतुलन में निर्णायक भूमिका निभाने वाला कदम साबित भी साबित हो सकता है। यदि सही दिशा में योजनाबद्ध तरीके से कार्य पूरा किया गया है, तो आने वाले सालों में भारत वैश्विक रक्षा उत्पादन मानचित्र पर एक मजबूत स्थान बना लेगा।

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