पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार के मुजफ्फरपुर में गमछा लहराने वाला वीडियो राज्य की सियासत का नया मुद्दा बन गया है। बीते दिन 30 अक्टूबर 2025 को जैसे ही पीएम मोदी का हेलिकॉप्टर मुजफ्फरपुर के मैदान में उतरा, हज़ारों समर्थकों ने ‘मोदी-मोदी’ के नारों से उनका स्वागत किया। भीड़ के उत्साह को देख प्रधानमंत्री ने मुस्कुराते हुए अपने माधुबनी प्रिंट वाले पारंपरिक गमछे को हवा में लहराया और जनता की ओर हाथ जोड़कर अभिवादन किया। यह नजारा कुछ ही पलों में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में प्रधानमंत्री लगभग 30 सेकंड तक गमछा लहराते और भीड़ की ओर देखते हुए दिखाई दिए। इसके बाद वे अपने अगले कार्यक्रम, छपरा रैली के लिए रवाना हुए। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार में ऐसा भावनात्मक और सांस्कृतिक संकेत दिया हो। इससे पहले अगस्त महीने में औंता-सिमरिया पुल के उद्घाटन के दौरान भी उन्होंने गमछा लहराकर जनता का अभिवादन किया था। गमछा – सिर्फ वस्त्र नहीं, भावनाओं का प्रतीक :
पीएम मोदी का यह छोटा-सा इशारा अपने भीतर एक बड़ा संदेश समेटे हुए है। बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में गमछा किसानों, मजदूरों और मेहनतकश वर्ग का प्रतीक माना जाता है। यह सिर्फ पसीना पोंछने या धूप से बचने का साधन नहीं, बल्कि श्रम और आत्मसम्मान की पहचान है। राजनीतिक दृष्टि से भी गमछा अब एक प्रतीक बन चुका है। जब प्रधानमंत्री मोदी इसे लहराते हैं, तो यह सिर्फ भीड़ को संबोधित करने का तरीका नहीं होता, बल्कि यह संदेश भी होता है कि वे स्वयं को आम जनता, विशेषकर किसानों और मजदूरों से जोड़ते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रधानमंत्री की “जनसंपर्क राजनीति” का हिस्सा है, जो भावनात्मक जुड़ाव के ज़रिए वोटरों के मन तक पहुंचने की कोशिश है।
बिहार के सामाजिक समीकरणों पर असर :
बिहार की अर्थव्यवस्था और राजनीति, दोनों पर ग्रामीण और कृषक वर्ग का गहरा प्रभाव है। राज्य के हालिया आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार की 53.2 प्रतिशत कार्यशील आबादी कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई है। इसके अलावा, भूमिहीन मजदूरों और प्रवासी श्रमिकों की संख्या भी बड़ी है यही वर्ग राज्य के चुनावी समीकरणों को निर्णायक रूप से प्रभावित करता है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आगामी चुनावी माहौल में प्रधानमंत्री मोदी का यह “गमछा लहराना” प्रतीकात्मक होते हुए भी एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश देता है। यह ग्रामीण और किसान समुदाय को सीधे संबोधित करने की कोशिश है। एनडीए अगर तेजस्वी यादव और राहुल गांधी के नेतृत्व वाले गठबंधन के सामने अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है, तो उसे ग्रामीण मतदाताओं में विश्वास जगाना होगा। पीएम मोदी का यह भावनात्मक इशारा उसी दिशा में एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। लोक संस्कृति और राजनीति का मेल :
प्रधानमंत्री मोदी अक्सर अपने पारंपरिक पहनावे और प्रतीकात्मक वस्त्रों के ज़रिए स्थानीय संस्कृति से जुड़ाव दिखाते हैं। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और क्षेत्रीय कार्यक्रमों में वे कभी साफा, कभी हेडगियर, तो कभी गमछा धारण करते हैं जो जनता के प्रति सम्मान और जुड़ाव का प्रतीक बन जाता है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार जैसे राज्य में जहां लोक संस्कृति और राजनीति का गहरा संबंध है, वहां पीएम मोदी का यह “गमछा लहराना” केवल सांस्कृतिक अभिव्यक्ति नहीं बल्कि एक मजबूत राजनीतिक संदेश भी है कि यह संदेश कि प्रधानमंत्री खुद को किसानों, मजदूरों और आम जनता के साथ खड़ा महसूस करते हैं। मुजफ्फरपुर की इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि एक छोटा-सा इशारा भी बिहार की राजनीति में बड़े मायने रखता है। पीएम मोदी का “गमछा लहराना” जनता से जुड़ाव का प्रतीक होने के साथ-साथ राजनीतिक रणनीति का हिस्सा भी बन गया है जहां एक ओर यह भावनाओं को छूता है, वहीं दूसरी ओर यह एनडीए की ग्रामीण वोटबैंक नीति को और मज़बूत करने की दिशा में संकेत देता है।