क्या थी दिल्ली दंगों की सच्चाई? जिसके सामने आने से बौखलाए शरजील इमाम

Highlights ट्रम्प के दौरे पर ही क्यों हुआ था दिल्ली दंगा? शरजील इमाम पर देशद्रोह के आरोप। हिन्दुओं पर सुनियोजित हमला था दिल्ली दंगा।

नई दिल्ली : दिल्ली हिंसा के आरोपी और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र शरजील इमाम ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों पर आधारित फिल्म ‘2020 दिल्ली’ की रिलीज को स्थगित करने की मांग करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शरजील का कहना है कि इस फिल्म का प्लॉट पक्षपातपूर्ण है और इससे उनके खिलाफ चल रही अदालती कार्यवाही प्रभावित हो सकती है। इस याचिका पर हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर दिया है और फिल्म की रिलीज़ टालने पर सुनवाई होने वाली है। पहले ये फिल्म 2 फ़रवरी को रिलीज़ होने वाली थी, लेकिन CBFC सर्टिफिकेट और कानूनी कार्रवाइयों के कारण इसकी रिलीज़ टल गई है और कोर्ट का फैसला आने तक फिल्म के रिलीज़ होने की कोई संभावना नहीं है।

क्या था दिल्ली दंगों का मकसद?

उल्लेखनीय है कि, फरवरी 2020 में दिल्ली में हिंसा भड़की थी, जिसका आधार नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) थे। इन दोनों कानूनों का मुस्लिम समुदाय द्वारा जबरदस्त विरोध किया जा रहा था और वोट बैंक की राजनीति के चलते विपक्षी दल भी खुलकर इनके समर्थन में आ गए थे। इस विरोध का स्पष्ट मतलब ये था कि कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत आने नहीं देंगे (CAA) और भारत में बसे बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठियों को बाहर जाने नहीं देंगे (NRC)। हालांकि, इस मुद्दे को खुलकर इस रूप में नहीं बताया जा रहा था। लेकिन इसी बीच दिल्ली में सुनियोजित दंगे भड़काए गए, वो भी तब, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे पर थे, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि धूमिल की जा सके।

अल-जजीरा, बीबीसी जैसे कुछ अंतर्राष्ट्रीय और भारत के भी कुछ मीडिया संस्थानों ने इस दंगे को एक खास नैरेटिव के तहत दिखाया, लेकिन असल में यह दंगा नहीं, बल्कि हिन्दुओं पर किया गया एक योजनाबद्ध हमला था। इस हमले के पीछे आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन का हाथ था, जिसने खुद कोर्ट में कबूला है कि वह हिन्दुओं को सबक सिखाने के लिए इस साजिश का मास्टरमाइंड बना। लेकिन, हिन्दुओं पर हमला करने से पहले ताहिर हुसैन ने एक चाल चली, उसने एक वीडियो बनाया और उसमे कहा कि उस पर हमला हो गया है, और इसी वीडियो को चलाकर कई मीडिया संस्थानों ने दंगाई ताहिर को ही पीड़ित बनाने का प्रयास किया। किन्तु पुलिस जांच में सब सामने आ गया, ताहिर का घर इस हमले के लिए एक लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल किया गया था, जहाँ पत्थर, कांच की बोतलें, और अन्य सामग्री की भरमार थी। साथ ही उसके घर की छत पर कई दंगाई जमा थे, जो पथराव कर रहे थे। दंगे को भड़काने में  उमर खालिद, शरजील इमाम समेत कई नाम शामिल थे। शरजील इमाम का एक पुराना वीडियो आज भी यूट्यूब पर मौजूद है, जिसमें वह असम को भारत से काटकर अलग करने की खुलेआम साजिश रच रहा है।

इस वीडियो में उसके आसपास खड़ी मुस्लिम भीड़ बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रही थी, जैसे उन्हें इसी प्लान का पालन करना हो, लेकिन किसी ने भी देश के टुकड़े करने की इस साजिश का विरोध नहीं किया। आप इसी से समझ सकते हैं कि साजिश कितनी गहरी थी और देशभक्त होने का दिखावा करने वालों के दिल में क्या है? हालाँकि, अब वही शरजील इमाम अदालत में यह कह रहा है कि जज साहब, दिल्ली दंगों पर बनी फिल्म को रिलीज मत होने दीजिए, क्योंकि यह ‘पक्षपातपूर्ण’ है। 

दरअसल, इसी तरह की आड़ लेकर सच को छुपाने की कोशिशें  हमेशा से की जाती रही हैं, कश्मीर फाइल्स के समय भी एक वकील ने यही कहा था कि जज साहब इस फिल्म की रिलीज़ रोक दीजिए, इससे माहौल बिगड़ेगा । लेकिन, वो वकील साहब कोर्ट में ये नहीं कह पाए कि फिल्म झूठी है, क्योंकि बाहर कहने में और कोर्ट में कहने में फर्क होता है, कोर्ट में साबित करना पड़ता है, लेकिन साबित करने लायक कोई चीज़ वकील साहब के पास थी ही नहीं। तो वकील साहब ने कहा कि इससे दंगे भड़क सकते हैं, तो फिर वही सवाल उठा कि दंगे करेगा कौन ? वो कश्मीरी हिन्दू जो, 30 साल पहले घर-बार छोड़कर भाग गए, किसी को एक पत्थर तक नहीं मारा, वो अब फिल्म देखकर दंगे करेंगे? या वो लोग दंगे करेंगे, जो अपनी घिनौनी सच्चाई परदे पर देखकर बौखला गए होंगे ? दिल्ली दंगों पर भी वही कहानी सुनाई जा रही है। अगर कोई बात सत्य है, तो उसे पूरी ताकत से उठाया जाए, अन्यथा उसे तथ्यों के आधार पर झूठा साबित करके उस पर रोक लगाई जाए, केवल दंगों की धमकियाँ देने से कब तक सत्य को छुपाया जाता रहेगा?

शरजील इमाम ने अपनी याचिका में क्या कहा ?

शरजील इमाम की ओर से अदालत में दायर याचिका में कहा गया है कि फिल्म ‘2020 दिल्ली’ का ट्रेलर उनकी जमानत याचिका को प्रभावित कर सकता है। साथ ही, इससे स्पेशल जज के समक्ष चल रही सुनवाई पर भी असर पड़ सकता है। उन्होंने मांग की है कि फिल्म की रिलीज़ को तब तक के लिए टाल दिया जाए, जब तक कि उनके खिलाफ चल रहे UAPA मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती।

याचिका में यह भी कहा गया है कि फिल्म निर्माताओं ने कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी की है और दंगों की घटनाओं को गलत तरीके से पेश किया है। शरजील इमाम ने फिल्म के ट्रेलर, पोस्टर, फोटो, टीजर और वीडियो को इंटरनेट से हटाने की भी अपील की है, ताकि उनका मुकदमा प्रभावित न हो। उन्होंने अदालत से यह अनुरोध किया कि फिल्म की रिलीज से पहले इसकी समीक्षा सेंसर बोर्ड और अदालत द्वारा की जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसमें किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लंघन तो नहीं हुआ है। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC), दिल्ली पुलिस, फिल्म के निर्देशक देवेंद्र मालवीय और निर्माता नंदकिशोर मालवीय, आशु मालवीय और अमित मालवीय को प्रतिवादी बनाया है।

जाहिर है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते पूरा विपक्ष इस फिल्म को ‘प्रोपेगेंडा’ करार देगा, क्योंकि उन्हें अपने वोट बचाने हैं। लेकिन क्या इससे सच्चाई छुप जाएगी? क्या ताहिर हुसैन का अदालत में किया गया कबूलनामा गायब हो जाएगा? क्या शरजील इमाम के भड़काऊ भाषणों की रिकॉर्डिंग मिट जाएगी? सवाल यह भी है कि जब दिल्ली दंगों में हिन्दू समुदाय को निशाना बनाया गया था, तब उन घटनाओं को फिल्म में दिखाने पर इतनी आपत्ति क्यों? अब सबकी नजरें हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं कि क्या यह फिल्म अपने तय शेड्यूल के मुताबिक 2 फरवरी को रिलीज होगी या फिर इसे रोक दिया जाएगा।

क्या था शरजील इमाम का भाषण :

वैसे तो शरजील इमाम का भाषण काफी लंबा है, लेकिन हम यहाँ उस हिस्से को पाठकों के समक्ष रख रहे हैं, जिसमे भड़काऊ और देश की अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली बातें कही गई हैं। CAA विरोधी कार्यक्रम में शरजील ने कहा था कि 'अब समय आ गया है कि हम गैर-मुस्लिमों से बोलें कि यदि वो हमारे हमदर्द हैं, तो हमारी शर्तों पर आकर खड़े हों। अगर वो हमारी शर्तों पर खड़े नहीं होते तो वो हमारे हमदर्द नहीं हैं। अगर 5 लाख लोग हमारे पास ऑर्गेनाइज्ड हों तो हम नॉर्थ-ईस्ट को हिंदुस्तान से परमानेंटली काट कर अलग कर सकते हैं। परमानेंटली नहीं तो कम से कम एक-आध महीने के लिए असम को हिंदुस्तान से काट ही सकते हैं। इतना मवाद डालो पटरियों पर, रोड पर कि उनको हटाने में एक महीना लगे। जाना हो तो जाएँ एयरफोर्स से।' इसका वीडियो आप You tube पर भी देख सकते हैं। पूरी भीड़ ध्यान से शरजील के बयान को सुन रही थी और उसे मौन समर्थन दे रही थी।

 

 

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