नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने संभवतः इतिहास में पहली बार राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जाहिर करते हुए सवाल उठाया कि दोषी ठहराए गए राजनेता सजा पूरी करने के बाद विधायिका में कैसे लौट सकते हैं? कोर्ट ने कहा कि जब कोई अपराधी साबित हो चुका हो, तो उसे जनता का प्रतिनिधित्व करने और कानून बनाने का अधिकार कैसे दिया जा सकता है? जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने यह अहम टिप्पणी की।
दागी नेता, फिर भी सियासत में सक्रीय :उल्लेखनीय है कि, देश में कई ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जहां बड़े घोटाले और गंभीर अपराधों में दोषी पाए गए नेता राजनीति में सक्रिय हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को ही लें, जो चारा घोटाले में दोषी साबित हो चुके हैं। उन्हें सजा भी हुई, लेकिन वे अब भी राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं और जनता की भलाई का वादा करते हैं। सवाल यह उठता है कि जो व्यक्ति जानवरों के चारे तक का पैसा खा गया, वह जनता की भलाई कैसे करेगा? अपराधी राजनेताओं को राजनीतिक संरक्षण मिलने के कारण वे चुनाव भी लड़ते हैं और सत्ता में भी आ जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर दिल्ली दंगों के आरोपी और आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन को लिया जा सकता है, जिसने खुद कोर्ट में स्वीकार किया कि उसने दंगों को भड़काने में अहम भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद, राजनीतिक दलों ने उसे खुला समर्थन दिया और उसे चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर ली। कोर्ट से उसे प्रचार के लिए जमानत भी मिल गई। हालाँकि, जनता ने उन्हें नकार दिया।
इसी प्रकार भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर भी काफी दिनों तक अपने रसूख के बल पर सत्ता सुख भोगते रहे, किन्तु जब उनके अपराध सामने आए और कानून का डंडा चला, तो आज उनका पूरा राजनितिक करियर ख़त्म हो चुका है। सेंगर को बलात्कार, हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश और आपराधिक धमकी का दोषी ठहराया गया है और वो अभी जेल में है।
वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी की एक सेक्स सीडी वायरल हुई थी, जिसमें वे एक महिला वकील के साथ ओरल सेक्स कर रहे थे और महिला वकील उनसे पूछ रही थी कि ''मुझे जज कब बना रहे हैं।'' इससे साफ होता है कि कांग्रेस के नेता अपनी ताकत का इस्तेमाल, इस तरह से लोगों को जज तक बनाने में किया करते थे, जबकि वे खुद वकील हैं। आज भी वही सिंघवी उसी सुप्रीम कोर्ट में जब किसी आरोपी का केस लड़ते हैं, तो अदालत उन्हें बोलने की अनुमति कैसे देती होगी? जिसके खुद के चरित्र पर इतने दाग हैं, क्या वह व्यक्ति अदालत में न्याय की दलील देता होगा? यह दर्शाता है कि किस तरह सत्ता का दुरुपयोग होता रहा है।
ये तो मात्र कुछ उदाहरण हैं, कई नेता ऐसे हैं, जो सालों से जमानत पर चल रहे हैं। देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी के नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी, नेशनल हेराल्ड केस में 10 सालों से जमानत पर हैं, उन्हें क्लीन चिट नहीं मिली है। जब भी एजेंसियां इस मामले में जांच बढ़ाने की कोशिश करती हैं, पूछताछ करने की कोशिश करती हैं, तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं का धरना प्रदर्शन विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाता है। और मामला लंबित का लंबित रह जाता है। अगर वे दोनों दोषी हैं, तो उन्हें सजा मिले और अगर नहीं हैं, तो उन्हें बरी किया जाए, इस तरह जमानत पर कब तक मुकदमा चलेगा? मौजूदा सत्ताधारी पार्टी में भी ऐसे लोग हैं, जो कभी न कभी किसी मामले में दोषी करार दिए गए होंगे, या अपराधी होंगे, उनके खिलाफ भी ऐसे ही कदम उठाने की जरूरत है, ताकि राजनीति में शुचिता बनी रहे। अन्यथा जिस नेता की नियत ही ठीक नहीं, वो जनता के साथ क्या न्याय कर पाएगा?
दोषी सांसदों/विधायकों के चुनाव लड़ने पर लगे रोक :सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में मांग की गई है कि किसी भी दोषी सांसद या विधायक के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। वर्तमान में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 के तहत, दोषी व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर केवल छह साल का प्रतिबंध है। इसके बाद वे फिर से चुनाव लड़ सकते हैं और सत्ता में वापस आ सकते हैं। यह स्थिति केवल नेताओं के प्रभाव और राजनीतिक गठजोड़ की वजह से बनी हुई है। उदाहरण के तौर पर, कई नेता भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बावजूद, जमानत पर बाहर आकर चुनाव लड़ लेते हैं और अपनी सफेदी की छवि बनाने में सफल हो जाते हैं।
आरोप मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी लगे थे, CBI -ED ने जांच भी की, सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमे भी चले, पेगासस, राफेल डील, गुजरात दंगों आदि में उन्होंने मुकदमों का सामना किया, किन्तु तीनों मामलों में उन्हें सर्वोच्च अदालत से क्लीन चिट मिली, जिससे जनता का भरोसा कायम हुआ और जनता ने उन्हें तीसरी बार सत्ता सौंपी। वहीं, राहुल-सोनिया 10 वर्षों से अभी तक भ्रष्टाचार के एक ही मामले (नेशनल हेराल्ड) में जमानत लिए घूम रहे हैं, क्या उन्हें अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए खुद आगे नहीं बढ़ना चाहिए, ताकि जनता में उनके प्रति भी विश्वास बने ?
अगर सुप्रीम कोर्ट वास्तव में अपराधी नेताओं को राजनीति से दूर रखना चाहता है, तो उसे तेज़ और ठोस फैसले लेने होंगे। अभी अदालतों में हजारों आपराधिक मामले वर्षों से लंबित हैं, जिससे आरोपी नेता अपने प्रभाव का फायदा उठाकर गवाहों को प्रभावित करते हैं और सबूत मिटा देते हैं। अगर दोषी नेता चुनावी राजनीति से दूर नहीं रखे गए, तो जनता के हितों की रक्षा कैसे होगी?
यह सवाल उठता है कि जब अदालत खुद स्वीकार कर रही है कि दोषी नेता कानून नहीं बना सकते, तो फिर उन्हें राजनीति में बने रहने की छूट क्यों दी जाती है? क्यों नहीं ऐसे नेताओं पर चुनाव लड़ने और राजनीतिक भाषण देने पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया जाता? जब तक ऐसा नहीं होगा, अपराधी नेता जनता को गुमराह करते रहेंगे और लोकतंत्र पर प्रश्नचिन्ह लगता रहेगा। यदि सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला लागू हो जाता है, तो आधी सांसद खाली हो सकती है, क्योंकि अधिकतर नेता या तो दोषी करार दिए जा चुके हैं, या फिर किसी अपराध में जमानत पर चल रहे हैं, ये जमानत का खेल अब बंद होना चाहिए, या तो दोषी या फिर बरी। तभी जनता को सही प्रतिनिधित्व मिल पाएगा।