तालिबान ने कट्टर दुश्मन पाक को हराने के लिए अपनाई नई तकनीक, बनाई सुसाइड ड्रोन आर्मी

Highlights तालिबान ने बनाया आत्मघाती ड्रोन और हैलीकॉप्टर से लैस नई एयरफोर्स। ड्रोन आर्मी की टेस्टिंग पूर्व ब्रिटिश सैन्य बेस पर जारी। पाकिस्तान के कराची, रावलपिंडी एवं इस्लामाबाद तक अटैक करने में सक्षम।

तालिबान और पाकिस्तान का रिश्ता शुरू से ही हर किसी की समझ से परे रहा है और विरोधाभासी और रणनीतिक रहा है। एक ओर पाक ने तालिबान को शुरुआती दौर में समर्थन देकर उसकी सत्ता स्थापना में अपनी अहम् भूमिका अदा की थी, वहीं दूसरी ओर आज वही तालिबान पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर सामने आया है। यह रिश्ता "पालनहार से पीड़ित तक" की कहानी की तरह हो गया है, जिसमें भरोसे की जगह अब शंका और संघर्ष ने ले ली है।

तालिबान की स्थापना वर्ष 1994 में अफगान में हुई थी, जब सोवियत संघ के अफगान से हटने के पश्चात देश गृहयुद्ध की चपेट में था। तालिबान ने कट्टरपंथी इस्लामी शासन की बात की और वर्ष 1996 में सत्ता पर कब्ज़ा किया। इतना ही नहीं पाक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ऐसे देश थे जिन्होंने तालिबान गवर्नमेंट को सबसे पहले मान्यता दे डाली है। इतना ही नहीं  ISI (Inter-Services Intelligence) ने तालिबान को हथियार, प्रशिक्षण और आर्थिक सहायता प्रदान की। वहीं पाकिस्तान की नीति यह थी कि अफगान में एक मित्रवत गवर्नमेंट होनी चाहिए जो भारत विरोधी हो और रणनीतिक गहराई (Strategic Depth) में सहायता करे।

लेकिन अब खबरें का कहना है कि अफगान पर कब्जा जमाए बैठे तालिबान ने अब एक नया तरीका निकाल लिया है। उसने आत्मघाती ड्रोन यानी 'कामिकेज़ ड्रोन' से लैस एक विशेष एयरफोर्स बना चुका है। इस ड्रोन आर्मी में कुछ हेलीकॉप्टर भी शामिल भी किए गए है। यह ड्रोन सेना इतनी शक्तिशाली बताई जा रही है कि कराची, रावलपिंडी या इस्लामाबाद जैसे पाक के किसी भी बड़े शहर पर हमला करने में सक्षम हो सकती है । इस कदम से पाकिस्तान की चिंता बढ़ना तय है।

नई एयरफोर्स की शुरुआत, पूर्व ब्रिटिश बेस से हो रही है टेस्टिंग : 

कुछ रिपोर्ट्स में इस बात का खुलासा हुआ है कि तालिबान ने अफगान में अपनी खुद की एक नई एयरफोर्स की नींव रख दी है। तालिबान फिलहाल इन ड्रोन की टेस्टिंग कर रहा है और इसके लिए पूर्व ब्रिटिश SAS सैन्य बेस का इस्तेमाल कर रहा है। इतना ही नहीं यह ड्रोन फोर्स बेहद घातक होगी और किसी भी दुश्मन देश को पलभर में भारी हानि पहुँचा सकती है। हालांकि फिलहाल यह प्रोजेक्ट परीक्षण के चरण में बताया जा रहा है।

इंजीनियरों की बड़े पैमाने पर भर्ती की योजना :

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि तालिबान ड्रोन निर्माण को लेकर अब बड़े पैमाने पर विस्तार की तैयारी में है। इसके लिए वह जल्द ही अंतरराष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञ इंजीनियरों की भर्ती शुरू करेगा। इनमें एक ऐसा इंजीनियर भी शामिल है जिस पर अल-कायदा से जुड़े होने का आरोप है। तालिबान की इस तकनीकी तैयारी को पश्चिमी देशों की सुरक्षा एजेंसियां भी गंभीर खतरे के रूप में देख रही हैं।

बदल रहा है युद्ध का स्वरूप

कुछ ही सालों में ये देखने के लिए मिला है कि युद्ध की पारंपरिक शैली में बड़ा परिवर्तन भी हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध इसका सबसे ताजा उदाहरण है, जहां ड्रोन और मिसाइलों के माध्यम से अटैक किए गए और सैनिकों की सीधी भूमिका को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। यूक्रेन ने ड्रोन के माध्यम से रूस के कई एयरबेस को तबाह कर दिया था। अब युद्ध में तकनीकी रणनीति अहम बन गई है।

भारत में भी हाल ही में चलाए गए ऑपरेशन 'सिंदूर' में ड्रोन तकनीक का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे यह स्पष्ट हो चुका है कि आने वाले समय में युद्धों में ड्रोन और अन्य अत्याधुनिक तकनीकों की भूमिका निर्णायक होने वाली है। तालिबान द्वारा बनाए जा रहे इस आधुनिक ड्रोन बल से न केवल पाकिस्तान की सुरक्षा पर प्रश्न उठ रहे हैं, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी एक नई चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।

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