कॉमेडियन से राष्ट्रपति बने जेलेंस्की..! क्या यूक्रेन को डूबाकर ही मानेंगे?

Highlights ट्रम्प और जेलेंस्की के बीच बिगड़े रिश्ते। क्या अब यूक्रेन की मदद करेगा अमेरिका? जेलेंस्की की कूटनीतिक समझ पर उठे सवाल।

वाशिंगटन : बीते तीन वर्षों से दुनिया में एक राष्ट्राध्यक्ष का नाम सुर्ख़ियों में है, वो हैं यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की। कुछ लोग रूस के खिलाफ लिए गए उनके फैसलों के लिए उनकी आलोचना करते हैं, तो कुछ उन्हें एक निडर और बेबाक योद्धा बताते हैं, जो किसी के सामने नहीं झुकता। हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि, जेलेंस्की के इस रवैये ने यूक्रेन का काफी नुकसान करवा दिया है। वहीं, हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के साथ बहस करके जेलेंस्की ने एक और ऐसा कदम उठा लिया है, जो उनके देश के खिलाफ जा सकता है।   

दरअसल, बीते दिनों वॉशिंगटन डीसी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की की बहुप्रतीक्षित बैठक एक बड़े ड्रामे के साथ खत्म हुई थी। इस मुलाकात के दौरान दोनों देशों के संबंधों में जो तनाव सामने आया, उसने न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी, बल्कि ज़ेलेंस्की की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक समझ पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए। 

बैठक के दौरान जब एक पत्रकार ने यूक्रेन की सुरक्षा को लेकर सवाल किया, तो ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्हें केवल एक डील चाहिए। उन्होंने यूरोप के देशों — फ्रांस, ब्रिटेन आदि — को यूक्रेन की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने की बात कही और यह भी कहा कि अमेरिका केवल खनिज संपदाओं के जरिए अपने सुरक्षा हित देखेगा। ट्रंप का कहना था कि अमेरिका भी मदद के बदले यूक्रेन से कुछ तो लेगा ही, किन्तु इस पर ज़ेलेंस्की ने नाराज़गी जताई और कहा कि बिना ठोस सुरक्षा गारंटी के किसी भी तरह के संघर्षविराम का कोई मतलब नहीं है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहले भी 25 बार संघर्षविराम तोड़ा है।

ट्रंप ने ज़ेलेंस्की की इस प्रतिक्रिया को अमेरिका का अपमान बताया। उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा कि ज़ेलेंस्की शांति नहीं चाहते, बल्कि अमेरिका की मदद का फायदा उठाना चाहते हैं। उन्होंने लिखा, "जब ज़ेलेंस्की शांति के लिए तैयार हों, तभी वे वापस आएं।" इसके बाद ज़ेलेंस्की तय समय से पहले ही व्हाइट हाउस छोड़कर चले गए और जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस भी रद्द कर दी गई।

इस घटनाक्रम के बाद रूस ने खुशी जाहिर की। पूर्व रूसी राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव ने इसे ज़ेलेंस्की के लिए 'करारा थप्पड़' करार दिया, जबकि रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने कहा कि ''ज़ेलेंस्की उसी हाथ को काट रहे हैं जो उन्हें खाना देता है।'' इस बात ने एक बार फिर से बहस छेड़ दी है कि क्या जेलेंस्की समझ नहीं पा रहे हैं कि उनके देश के लिए क्या सही है ? क्या शक्तिशाली देशों से संबंध खराब करके जेलेंस्की यूक्रेन को कमज़ोर नहीं कर रहे हैं?

राष्ट्रपति पद तक कैसे पहुंचे जेलेंस्की?

उल्लेखनीय है कि, ज़ेलेंस्की की राजनीतिक समझ पर सवाल पहले से भी उठते रहे हैं। दरअसल, ज़ेलेंस्की ने एक कॉमेडियन के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्होंने 'सर्वेंट ऑफ द पीपल' नामक एक  टीवी शो में एक काल्पनिक यूक्रेनी राष्ट्रपति की भूमिका निभाई थी, जो बेहद लोकप्रिय हुई। इसी शो की पॉपुलैरिटी के चलते 2018 में इसी नाम की एक राजनीतिक पार्टी बनाई गई और ज़ेलेंस्की ने राष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की। लोगों ने उन्हें जमकर वोट दिया, और 2019 में वे 73% वोटों के साथ यूक्रेन के राष्ट्रपति बने, बिना उनका कोई पहले का सरकारी कार्य देखे। लेकिन उनके पास कोई राजनीतिक अनुभव नहीं था, भारत की भाषा में कहें तो न वे कभी पार्षद रहे, न विधायक, न सांसद और न ही मंत्री, सीधे राष्ट्रपति बनकर उन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा।

यही राजनीतिक अनुभव की कमी शायद रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान साफ नजर आई। कूटनीतिक समझ के अभाव में ज़ेलेंस्की ने रूस जैसे शक्तिशाली देश से टकराव मोल लिया, जिसके चलते यूक्रेन को भारी नुकसान उठाना पड़ा। कई विशेषज्ञों का मानना है कि ज़ेलेंस्की को शुरुआत से ही अपने लोगों को बचाने के लिए रूस से बातचीत और शांति वार्ता का प्रस्ताव रखना चाहिए था। लेकिन उन्होंने अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता दिखाई। अमेरिका ने भले ही यूक्रेन को धन दिया, हथियार दिए, लेकिन मरे तो यूक्रेन के ही लोग, और अब अमेरिका उस मदद का बदला भी मांग रहा है, तो जेलेंस्की नाराज़ हो रहे हैं।

अब जब अमेरिका के साथ भी उनके संबंध बिगड़ते नजर आ रहे हैं, यूक्रेन की स्थिति और कमजोर होती जा रही है। रूस इस मौके पर खुश है और अगर अमेरिका ने भी यूक्रेन से समर्थन वापस ले लिया, तो यूक्रेन के लिए हालात और खराब हो सकते हैं। इस पूरे घटनाक्रम में ज़ेलेंस्की की भूमिका को लेकर नए सिरे से सवाल उठने लगे हैं — क्या उनके फैसले यूक्रेन को घुटनों पर ला देंगे?

 

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