SIR प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस, कपिल सिब्बल ने उठाए सवाल

Highlights SIR पर याचिकाकर्ता मनोज झा ने नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया को अव्यवहारिक बताया। नागरिकता साबित करने पर और SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट में छिड़ी बहस। SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट में छिड़ी बहस कपिल सिब्बल ने उठाए प्रश्न।

वोटर लिस्ट को अद्यतन करने के लिए जारी स्पेशल इन्टेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। आरजेडी सांसद मनोज झा द्वारा दायर याचिका में इस प्रक्रिया को “व्यवहारिक रूप से अनुचित और लागू करने में असंभव” बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए, जो नई प्रक्रिया की तार्किकता पर गंभीर संदेह पैदा करते हैं।

नागरिकता साबित करने की नई अनिवार्यता पर सवाल :

याचिकाकर्ता के अनुसार SIR के तहत वोटर को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए जन्म प्रमाणपत्र, या ऐसा कोई दस्तावेज देना अनिवार्य किया गया है जो यह दर्शाता हो कि माता-पिता में से कम से कम एक भारतीय नागरिक थे। लेकिन व्यवहारिक रूप से यह न केवल जटिल है, बल्कि लाखों परिवारों के लिए यह प्रक्रिया पूरी करना लगभग असंभव होगा।

मनोज झा ने उदाहरण देकर कहा कि अगर किसी वोटर के पिता ने 2003 के चुनाव में वोट नहीं डाला और उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई—तो वह व्यक्ति यह कैसे साबित करेगा कि उसके माता-पिता भारतीय थे? देश में ऐसे असंख्य परिवार हैं जहाँ दस्तावेज नदारद हैं या उपलब्ध जानकारी अधूरी है।

बीएलओ की शक्तियों पर भी उठे सवाल : 

सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) की भूमिका पर गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने अदालत से पूछा: क्या एक बीएलओ यह तय कर सकता है कि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ है? क्या एक स्कूल शिक्षक, जिसे BLO बनाया गया है, यह निर्णय ले सकता है कि कोई भारतीय नागरिक है या नहीं?

सिब्बल के अनुसार नागरिकता का निर्धारण बेहद संवेदनशील और कानूनी रूप से जटिल मुद्दा है, जिसे स्कूल शिक्षक या BLO के हाथों में छोड़ना “खतरनाक, अनुचित और प्रक्रिया के विरुद्ध” कदम है।

व्यक्ति नागरिक हैं या नहीं यह निर्धारित करना BLO की भूमिका नहीं :

कपिल सिब्बल ने कहा कि SIR के तहत लागू नियमों की संरचना विदेशी अधिनियम (Foreigners Act) जैसी है, जहाँ नागरिकता साबित करने का बोझ व्यक्ति पर ही होता है। उन्होंने सवाल उठाया कि कोई व्यक्ति यह कैसे साबित करेगा कि उसके पिता का जन्म कब हुआ था या उनके भारतीय होने का क्या प्रमाण है—जब दस्तावेज़ ही उपलब्ध न हों? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा है कि “गणनाकर्ता वोटर से पूछेगा—आपके पिता का जन्म कब हुआ? इसका प्रमाण दीजिए। अगर पिता का नाम 2003 की मतदाता सूची में ही नहीं था, या उनकी मृत्यु उससे पहले हो गई—तो यह सबूत कैसे मिलेगा?”

CJI ने किया सवाल :

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने दलीलों को सुनने के बाद टिप्पणी की: “अगर आपके पिता का नाम सूची में नहीं था और आपने भी इस पर कभी काम नहीं किया… तो शायद आप चूक गए।” यह टिप्पणी दर्शाती है कि अदालत SIR प्रक्रिया की चुनौतियों को समझ रही है, पर साथ ही यह भी मानती है कि मतदाता की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

2 दिसंबर को होगी मामले की अगली सुनवाई :

मामले की जटिलता और गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने अगली सुनवाई 2 दिसंबर को तय की है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट SIR के इन नए नियमों पर रोक लगाएगा, या सरकार से प्रक्रिया को और स्पष्ट तथा सहज बनाने के लिए कहेगा।

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