इतनी भारी मात्रा में सोना क्यों खरीद रहा भारत? रूस से है कनेक्शन

Highlights भारत ने ख़रीदा 72.6 टन सोना। कुछ बड़ा करने जा रही मोदी सरकार। रूस के गोल्ड फ्रीज़ से भारत ने लिया सबक।
नई दिल्ली : दुनिया में सोने को हमेशा से ही सर्वाधिक भरोसे की संपत्ति माना गया है। सदियों से दुनिया इस पीली धातु के प्रति आकर्षित रही है और आज भी ये सोच उतनी ही प्रासंगिक है। विश्वभर की सरकारें अपने गोल्ड रिजर्व को सुरक्षित निवेश मानती हैं, और यही कारण है कि बीते वर्षों में विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों ने बड़े पैमाने पर सोना खरीदा है, इस मामले में आज का भारत भी पीछे नहीं है।
 
वर्ल्ड गोल्ड कॉउन्सिल के आंकड़ों के अनुसार,  2024 में, दुनिया के विभिन्न केंद्रीय बैंकों ने 1045 टन सोना खरीदा, जो 2021 के बाद सबसे अधिक रहा। इसमें सबसे बड़ा खरीदार नेशनल बैंक ऑफ पोलैंड (90 टन) रहा, उसके बाद भारतीय रिजर्व बैंक (72.6 टन) और फिर सेंट्रल बैंक ऑफ तुर्की (70 टन) का स्थान था। चीन, हंगरी, सर्बिया, उज्बेकिस्तान और चेक गणराज्य ने भी अपने सोने के भंडार में वृद्धि की। भारत के केंद्रीय बैंक ने वर्ष 2024 में 72.6 टन सोना खरीदा, जिससे उसका कुल भंडार 876.18 टन हो गया। यह 2017 में सोना खरीदने की नीति अपनाने के बाद से किसी भी वर्ष की दूसरी सबसे बड़ी खरीदारी थी। 2014 में भारत के पास 557.75 टन सोने का आधिकारिक भंडार था, जो दुनिया में स्वर्ण भंडार रखने वाले देशों में 10वें स्थान पर था और 2024 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत 8वें स्थान पर है। 
 
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की यह सोना खरीदारी केवल आर्थिक स्थिरता के लिए नहीं, बल्कि किसी भविष्य की रणनीतिक योजना का हिस्सा भी हो सकती है। दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध के समय, पश्चिमी देशों ने रूस के 600 बिलियन डॉलर के विदेशी भंडार को फ्रीज कर दिया था, जिससे रूस को आर्थिक संकट उठाना पड़ा था। इससे यह साफ हो गया कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में किसी भी देश के विदेशी संपत्तियों को जब्त किया जा सकता है।
भारत शायद इसी जोखिम से बचने के लिए विदेशों में रखे अपने सोने को वापस मंगा रहा है। अगर भविष्य में भारत को पाकिस्तान के खिलाफ किसी सैन्य कार्रवाई में जाना पड़ा और पश्चिमी देश रूस की तरह भारत पर भी आर्थिक प्रतिबंध लगाते हैं, तो भारत को अपनी अर्थव्यवस्था स्थिर बनाए रखने के लिए सोने की जरूरत पड़ेगी। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार का अगला बड़ा मिशन पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) को वापस लेना हो सकता है। इसके लिए अगर भारत को पाकिस्तान पर सैन्य आक्रमण करना पड़ा, तो यह संभव है कि अमेरिका और यूरोपीय देश भारत के विदेशी भंडार को फ्रीज कर दें। ऐसी स्थिति में भारत की अर्थव्यवस्था पर असर न पड़े, इसके लिए सरकार पहले से ही सोना जमा कर रही है और विदेशों में पड़ा अपना सोना वापस ला रही है।
 
हालाँकि, यह सिर्फ एक अनुमान है, असली रणनीति केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके करीबी मंत्रियों को ही पता होगी। भाजपा सरकार पिछले कुछ वर्षों में अचानक चौंकाने वाले फैसले लेने के लिए जानी जाती रही है, इसलिए यह संभव है कि यह भी किसी बड़े निर्णय की तैयारी का हिस्सा हो। लोकसभा में कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने सवाल उठाया कि क्या भारत द्वारा अधिक सोना खरीदना अमेरिका के डॉलर से दूरी बनाने का संकेत है?

इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया कि भारत के बढ़ते गोल्ड रिजर्व का मकसद किसी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा को रिप्लेस करना नहीं है, बल्कि यह एक संतुलित रिजर्व पोर्टफोलियो बनाए रखने की रणनीति का हिस्सा है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को लेकर वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बनी हुई है। उन्होंने आयातित वस्तुओं पर 10% का टैरिफ लगाने की धमकी दी है, जिससे सोने की कीमतों में तेज़ी आई है और ये अधिक बढ़ने वाली हैं। इससे पहले ही भारत अपने भंडार भर रहा है, ताकि देश को अधिक से अधिक लाभ हो। इसका एक और बड़ा कारण हमास-इजरायल युद्ध, यूक्रेन-रूस युद्ध और महामारी की वापसी का डर भी है। निवेशकों को आशंका है कि ये घटनाएं मुद्रास्फीति बढ़ा सकती हैं, जिससे दुनिया के देश सोने को एक सुरक्षित संपत्ति के रूप में देख रहे हैं। भारत और अन्य देश यह समझ चुके हैं कि वैश्विक राजनीति में अस्थिरता बढ़ रही है और अमेरिका जैसी बड़ी शक्तियां अपनी शर्तों पर देशों की संपत्ति फ्रीज कर सकती हैं। ऐसे में सोना एक सुरक्षित निवेश साबित हो सकता है।

भारत की सरकार न केवल अधिक सोना खरीद रही है, बल्कि विदेशों में जमा अपने गोल्ड रिजर्व को वापस भी ला रही है। यह कदम किसी भी आर्थिक संकट से निपटने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है। सोने की खरीदारी केवल निवेश का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह आर्थिक और रणनीतिक सुरक्षा का भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत की बढ़ती सोना खरीदारी और अपने विदेशी भंडार को वापस बुलाने की प्रक्रिया इस बात का संकेत देती है कि सरकार किसी भी वैश्विक अस्थिरता से पहले ही खुद को मजबूत कर रही है। क्या मोदी सरकार इस सोने का उपयोग किसी बड़े भू-राजनीतिक फैसले के लिए कर रही है? यह तो आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा, लेकिन इतना तय है कि भारत अब किसी भी वैश्विक वित्तीय जाल में फँसने को तैयार नहीं है।

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