क्या बिना ब्रिक्स करेंसी के भारत-चीन-रूस ने ट्रंप के डॉलर डॉमिनेंस को दी चुनौती ?

Highlights भारत ने रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए चीनी युआन में भुगतान किया शुरू। भारत, चीन और रूस स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाकर डॉलर निर्भरता को कर रहे कम। रूस के उप-प्रधानमंत्री ने की युआन और रूबल में भुगतान की पुष्टि।

नई दिल्ली : अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा बाजार से आई एक बड़ी खबर ने वैश्विक वित्तीय जगत में हलचल मचा दी है। भारत ने अब रूस से कच्चा तेल खरीदने के लिए चीनी मुद्रा युआन में भुगतान शुरू कर दिया है। यह कदम अमेरिकी डॉलर के दशकों से चले आ रहे वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है।

हालांकि भारत के कुल तेल भुगतान में युआन का हिस्सा अभी बहुत कम है, लेकिन यह परिवर्तन पेमेंट सिस्टम में भारत के रणनीतिक बदलाव की शुरुआत को दर्शाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत, चीन और रूस ने बिना किसी औपचारिक ब्रिक्स करेंसी के ही डॉलर निर्भरता से बाहर निकलने का रास्ता तलाशना शुरू कर दिया है।

रूस ने पुष्टि की युआन में भुगतान :

रूस के उप-प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने पुष्टि की है कि भारत अब मुख्य रूप से रूसी मुद्रा रूबल में भुगतान कर रहा है, जबकि युआन का उपयोग भी तेजी से बढ़ रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) ने हाल ही में रूस से खरीदे गए 2 से 3 तेल कार्गो के लिए युआन में भुगतान किया है। यह 2023 के बाद एक बड़ा बदलाव है, जब चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों के चलते सरकारी रिफाइनरियों ने युआन में भुगतान रोक दिया था।

 भू-राजनीतिक संदेश और आर्थिक संकेत :

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में वर्तमान में एक युआन की कीमत लगभग ₹12.34 है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह कदम छोटा जरूर है, लेकिन इसके भू-राजनीतिक निहितार्थ गहरे हैं। यह संकेत है कि भारत और चीन के बीच आर्थिक संबंधों में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है, और भारत अब डॉलर-आधारित वैश्विक प्रणाली पर कम निर्भर रहना चाहता है।

ट्रंप की धमकी और डी-डॉलरीकरण :

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2024 में ब्रिक्स देशों को चेतावनी दी थी कि यदि वे डॉलर के विकल्प के रूप में कोई नई मुद्रा बनाते हैं, तो उन पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा। ट्रंप की यह ‘अमेरिका फर्स्ट नीति’ डॉलर की वैश्विक पकड़ बनाए रखने की कोशिश थी। लेकिन इसके बाद से ब्रिक्स देशों ने डी-डॉलरीकरण (De-dollarization) की दिशा में अपने कदम और मजबूत कर लिए हैं।

क्यों बढ़ रहा है डी-डॉलरीकरण :

ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देश मिलकर विश्व GDP का 40% और विश्व जनसंख्या का 45% हिस्सा रखते हैं। 2025 तक अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर का हिस्सा घटकर 73% से 54% रह गया है। ब्रिक्स देश डॉलर की प्रभुता कम करना चाहते हैं ताकि अमेरिकी प्रतिबंधों और डॉलर आधारित नियंत्रण से अपनी आर्थिक स्वतंत्रता सुरक्षित रख सकें।

भारत-चीन-रूस का ‘मध्य मार्ग’ :

ट्रंप की धमकी के बाद ब्रिक्स ने संयुक्त मुद्रा की योजना को स्थगित कर दिया और इसके बजाय स्थानीय मुद्राओं में व्यापार पर जोर दिया। अब भारत, चीन और रूस के बीच युआन आधारित भुगतान इसी ‘बीच के रास्ते’ का हिस्सा है — जिससे डॉलर निर्भरता भी घटे और अमेरिका से सीधा टकराव भी न हो।

रणनीतिक और व्यावहारिक दोनों कदम :

भारत, जो विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, ने सितंबर में रूस से कच्चा तेल खरीदने पर 2.5 बिलियन यूरो खर्च किए। युआन आधारित भुगतान भारत के लिए एक व्यावहारिक कदम भी है ताकि रूस से सस्ता तेल मिल सके और पश्चिमी प्रतिबंधों से बचा जा सके।

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के अनुसार, भारत का यह निर्णय केवल आर्थिक नहीं बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टि से भी ऐतिहासिक कदम है — जो दर्शाता है कि नई विश्व व्यवस्था में डॉलर के वर्चस्व का दौर धीरे-धीरे कमजोर पड़ रहा है, और एशिया की नई मुद्रा गठजोड़ शक्तिशाली हो रही है।

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