आज तक हमने देवी देवताओ के मंदिर के बारे में तो बहुत सुना है जहा पर लोग आस्था के साथ पूजा करते है, किन्तु हम आपके एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जो भगवान का नही बल्कि एक कुतिया का है. इतना ही नही लोग इस मंदिर में आस्था के साथ आते है और कुतिया महारानी की पूजा करते है. यह मंदिर झांसी के मऊरानीपुर के गांव रेवन और ककवारा के बीच एक सड़क पर स्थित है.
इस मंदिर के पीछे जो घटना बताई जाती है वो यह है कि दोनों गांवों में जब भी किसी भी आयोजन में होने वाला खाना यानी पंगत होती थी, तो यह कुतिया वहां पहुंचकर पंगत खाती थी. पुराने समय में पंगत शुरू होने से पहले बुंदेलखंडी लोक संगीत का एक वाद्य यंत्र रमतूला बजाया जाता था. उसकी आवाज सुनकर उस आयोजन में आमंत्रित सभी लोग पंगत खाने पहुंच जाते थे. एक बार ककवारा और रेवन दोनों गांवों में कार्यक्रम था. कुतिया को दोनों जगह जाना था. किन्तु उसके साथ हुआ यह कि वह पहले गांव में गयी तब तक वहां पंगत हो चुकी थी, फिर थक हारकर दूसरे गांव पहुंची तो वहां भी यही घटना हुई.
भूख और थक जाने के कारण जब वह दोनों गांव के बिच में आ रही थी तब ही उसकी मृत्यु हो गयी. जब गांववालों को इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने वहां पर उस कुतिया को दफना दिया तथा बाद में उसका एक छोटा सा मंदिर बनाया गया. जहा पर आज भी दोनों गांव की महिलाये आकर कुतिया महारानी को जल चढ़ाती है, तथा प्रार्थना करती है.
श्रद्धालु यहां सुख-समृद्धि और परिवार एवं फसलों की खुशहाली की मन्नतें मांगते हैं. वैसे तो आबादी से दूर यह छोटा सा मंदिर सुनसान सड़क पर बना है, मगर यहां के लोगों की कुतिया महारानी के प्रति अपार श्रद्धा है. ग्रामीणों के मुताबिक, कुतिया का यह मंदिर उनकी आस्था का केंद्र है.