प्राचीन काल से हम कई मणियो के बारे में सुनते आ रहे हैं. वेद, रामायण, महाभारत और पुराणों में कई तरह की चमत्कारिक मणियों का जिक्र मिलता है। पौराणिक कथाओं में सर्प के सिर पर मणि के होने का उल्लेख मिलता है। मणि एक प्रकार का चमकता हुआ पत्थर होता है। मणि को हीरे की श्रेणी में रखा जा सकता है। मणि होती थी यह भी अपने आप में एक रहस्य है। जिसके भी पास मणि होती थी वह कुछ भी कर सकता था।
मान्यता है कि मणियां कई प्रकार की होती थीं। मणि से संबंधित कई कहानी और कथाएं समाज में प्रचलित हैं। इसके अलावा पौराणिक ग्रंथों में भी मणि के किस्से भरे पड़े हैं।मणियों को सामान्य हीरे से कहीं ज्यादा मूल्यवान माना जाता है। जैनियों में मणिभद्र नाम से एक महापुरुष हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि चिंतामणि को स्वयं ब्रह्माजी धारण करते हैं। तो आइये जानते हैं हम कुछ मणियों के बारे में ….
पारस मणि:
पारस मणि से लोहे की किसी भी चीज को छुआ देने से वह सोने की बन जाती थी। इससे लोहा काटा भी जा सकता है। कहते हैं कि कौवों को इसकी पहचान होती है और यह हिमालय के आस-पास ही पाई जाती है। हिमालय के साधु-संत ही जानते हैं कि पारस मणि को कैसे ढूंढा जाए, क्योंकि वे यह जानते हैं कि कैसे कौवे को ढूंढने के लिए मजबूर किया जाए।
नीलमणि :
नीलमणि एक रहस्यमय मणि है। असली नीलमणि जिसके भी पास होती है उसे जीवन में भूमि, भवन, वाहन और राजपद का सुख होता है। इसे ‘नीलम’ भी कहा जाता है। लेकिन शनि का रत्न नीलम और नीलमणि में फर्क है। असली नीलमणि या नीलम से नीली या बैंगनी रोशनी निकली है, जो दूर तक फैल जाती है।
नागमणि :
नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। नागमणि का रहस्य आज भी अनसुलझा हुआ है। नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नाग इसे अपने पास इसलिए रखते हैं ताकि उसकी रोशनी के आसपास इकट्ठे हो गए कीड़े-मकोड़ों को वह खाता रहे। हालांकि इसके अलावा भी नागों द्वारा मणि को रखने के और भी कारण हैं।
कौस्तुभ मणि :
कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। कौस्तुभ मणि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। पुराणों के अनुसार यह मणि समुद्र मंथन के समय प्राप्त 14 मूल्यवान रत्नों में से एक थी। यह बहुत ही कांतिमान मणि है।
चंद्रकांता मणि :
भारत में चंद्रकांता मणि के नाम पर अब उसका उपरत्न ही मिलता है। इस मणि को धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है। किसी भी प्रकार की गंभीर दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। इससे वैवाहिक जीवन भी सुखमय व्यतीत होता है। चंद्रकांता मणि का उपरत्न पारदर्शी जल की तरह साफ-सुथरा होता है। यह चंद्रमा से संबंधित रत्न होता है।
स्यमंतक मणि :
स्यमंतक मणि को इंद्रदेव धारण करते हैं। कहते हैं कि प्राचीनकाल में कोहिनूर को ही स्यमंतक मणि कहा जाता था। कई स्रोतों के अनुसार कोहिनूर हीरा लगभग 5,000 वर्ष पहले मिला था और यह प्राचीन संस्कृत इतिहास में लिखे अनुसार स्यमंतक मणि नाम से प्रसिद्ध रहा था। दुनिया के सभी हीरों का राजा है कोहिनूर हीरा। यह बहुत काल तक भारत के क्षत्रिय शासकों के पास रहा फिर यह मुगलों के हाथ लगा। इसके बाद अंग्रेजों ने इसे हासिल किया और अब यह हीरा ब्रिटेन के म्यूजियम में रखा है।
स्फटिक मणि :
स्फटिक मणि सफेद रंग की चमकदार होती है। यह आसानी से मिल जाती है। फिर भी इसके असली होने की जांच कर ली जानी चाहिए।
लाजावर्त मणि :
इस मणि का रंग मयूर की गर्दन की भांति नील-श्याम वर्ण के स्वर्णिम छींटों से युक्त होता है। यह मणि भी प्राय: कम ही पाई जाती है।
उलूक मणि :
उलूक मणि के बारे में ऐसी कहावत है कि यह मणि उल्लू पक्षी के घोंसले में पाई जाती है। हालांकि अभी तक इसे किसी ने देखा नहीं है। माना जाता है कि इसका रंग मटमैला होता है।