ऑनलाइन गेमिंग, EMI जैसी चीजों में जा रहा युवाओं का आधा वेतन !

भारत की समान मासिक किस्तों (EMI) पर बढ़ती निर्भरता ने घरेलू वित्तीय व्यवहार को पूरी तरह से बदल डाला है, इससे दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता (Long Term Economic Stability) को काफी जोखिम में डाल रहा है।

ऑनलाइन गेमिंग, EMI जैसी चीजों में जा रहा युवाओं का आधा वेतन !

बिना वजह की चीजों में जाता है आज के युवाओं का आधा वेतन

Share:

Highlights

  • ऑनलाइन गेमिंग में सबसे ज्यादा वेतन खर्च कर रहे भारत के युवा।
  • जरुरत से ज्यादा लोग भर रहे बैंक ऋण।
  • फिजूलखर्ची की वजह से बढ़ता है लोन और EMI का खर्चा।

भारत की समान मासिक किस्तों (EMI) पर बढ़ती निर्भरता आम व्यक्ति के लिए उसके घरेलू वित्तीय परिदृश्य (Domestic financial scenario) बन गई है। EMI जो कि एक व्यक्ति को समय से साथ भरना होता है, ये EMI किसी भी तरह की वस्ती जैसे- घर की क़िस्त, वाहन, मोबाइल आदि वस्तुएं जिनका इस्तेमाल हर कोई कर रहा है। सीआरआईएफ की वर्ष 2024 की रिपोर्ट्स में बताया गया है कि  गृह ऋण (Home Loan) के अलावा, व्यक्तिगत ऋण की मात्रा में वित्त वर्ष 20 और वित्त वर्ष 23 के मध्य 150% की वृद्धि देखने के लिए मिली, क्योंकि भारतीय परिवार अपनी जीवन शैली को वित्तपोषित करने के लिए तेजी से ऋण की ओर रुख कर रहे हैं।

हालांकि, EMI पर इस बढ़ती निर्भरता के साथ-साथ घरेलू वित्तीय लचीलेपन में गिरावट देखने के लिए मिली है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार, वित्त वर्ष 22 में शुद्ध वित्तीय बचत दर 47 वर्ष के निचले स्तर 5.3% पर आ गई थी, जो दर्शाता है कि अधिक परिवार बचत करने के बजाय भारी मात्रा में उधार ले रहे हैं। बचत में यह गिरावट, बढ़ते कर्ज के स्तर के साथ मिलकर, घरेलू वित्तीय स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा करने लगी। अब कई परिवार अपनी इनकम का एक जरुरी हिस्सा लंम्बे समय के लिए EMI के रूप में बैंक को अदा कर रहें है, और इसी वजह से उन्हें की तरह की आर्थिक परेशानियों से भी गुजरना पड़ता है।

वहीं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और डिजिटल लेंडिंग प्लेटफ़ॉर्म द्वारा सुगमता से ऋण तक पहुंचने के लिए EMI में उछाल को और बढ़ावा दिया है, खासकर मिडिल क्लास के परिवार के लिए। ऋण-सेवा-से-आय अनुपात पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ा है, क्योंकि परिवार अपनी तत्काल वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज़्यादा लोन उठा लेते हैं। ऋण उठाने के बाद भी परिवार के एक सदस्य के पास क्रेडिट कार्ड होता ही है, जिससे असुरक्षित ऋण 2021 और 2024 के बीच 21.3% की औसत वार्षिक दर से बढ़े है, और इसी वजह से परिवार पर बोझ और भी ज्यादा बढ़ गया है। इसी तरह उधारी का आंकड़ा बढ़ गया है और इस उधारी बढ़ाने वाले युवाओं की आयु 35 वर्ष से कम पाई गयी है, जो अपने शौक को पूरा करने के लिए कर रहे है। वर्ष 2015 से लेकर 2021 तक कई व्यक्तियों ने अपनी ऋण को दोगुना होते हुए देखा है, जो कि वास्तव में चिंता का विषय बन गया है। ऐसे युवा को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए भविष्य के लिए जमा आय या पूंजी से लाभ उठा रहे है, और आने वाले समय के लिए तनाव को जन्म दे रहे है।

भारत में बढ़ रहा EMI का बोझ:

EMI को लेकर सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि बीते दो दशकों में भारत की ऋण प्रणाली के विकास में बहुत बड़े बदलाव देखने के लिए मिले है, जो देश के नकदी आधारित अर्थव्यवस्था से ऋण-संचालित अर्थव्यवस्था में बदलाव को बहुत ही अच्छी तरह से दर्शाता है। 2000 के दशक की शुरुआत तक, उधार लेना बड़े पैमाने पर उच्च आय (High Income) वाले समूहों तक ही सीमित था, और मध्यम और निम्न-मध्यम वर्गों के लिए ऋण की पहुँच सीमित थी। लेकिन कुछ समय के बाद ये बदल गया क्योंकि भारत में बैंकिंग क्षेत्र का विस्तार हुआ, जिसमें नियामक सुधारों और तकनीकी नवाचारों ने वित्तीय समावेशन को सक्षम किया।

वहीं गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के प्रसार और डिजिटल ऋण देने वाले प्लेटफ़ॉर्म के उदय ने इस परिवर्तन को गति दी है, जिससे समाज के व्यापक वर्ग के लिए ऋण अधिक सुलभ बन चुका है। विशेष रूप से, समान मासिक किस्तें (EMI) उपभोक्ता वित्तपोषण की एक प्रमुख विशेषता बन गई हैं, जिससे परिवारों को बिना अग्रिम भुगतान के सामान और सेवाएँ खरीदने की अनुमति मिलती है। वर्ष 2010 के पश्चात की अवधि में EMI-संचालित ऋण में विस्फोट देखा गया, जिसमें आवास ऋण सबसे आगे थे। होम लोन की सुलभता, ब्याज भुगतान पर कर कटौती जैसे सरकारी प्रोत्साहनों के साथ, मध्यम वर्ग के मध्य घर के स्वामित्व में उल्लेखनीय वृद्धि में योगदान दिया। वित्तीय वर्ष 2023 तक, होम लोन कुल खुदरा ऋण पोर्टफोलियो का 47.4% हिस्सा था, जबकि 2005 में यह केवल 25% था।

रिपोर्ट से जुड़ी खास बातें:

परफियोस ने PwC इंडिया (Pricewaterhousecoopers) के साथ मिलकर एक रिपोर्ट लॉन्च की है, इस रिपोर्ट का अहम् उद्देश्य ये है कि भारत का युवा व्यक्ति किस तरह से अपने पैसे खर्च करता है। वहीं इस परफियोस और PwC की रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि 30 लाख से अधिक तकनीक प्रेमी उपभोक्ताओं (tech-savvy consumers) के खर्च को लेकर जांच करके भारतीयों के उपभोग पैटर्न का गहन विश्लेषण प्रदान करने का प्रयास किया गया है।  रिपोर्ट में विश्लेषण किए गए डेटासेट में तकनीक-प्रेमी (tech-savvy) उधारकर्ता शामिल हैं जो मुख्य रूप से फिनटेक, एनबीएफसी (NBFC) और अन्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करते हैं। ये उधारकर्ता विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों (टियर 3 से लेकर मेट्रो शहरों तक) और आय स्तरों (20,000 रुपये से लेकर 1,00,000 रुपये से अधिक) में वितरित कर दिए गए। इसके अलावा  पाया गया कि अधिकांश युवा ऑनलाइन गेमिंग में अपने पैसे खर्च कर रहे है।

Equated Monthly Installments

युवा किस जगह पर खर्च कर रहे अपना वेतन:-

रिपोर्ट्स में ये कहा गया है कि कम सैलरी वाले लोग अपनी कमाई का मैक्सीमम पार्ट अपनी बेसिक आवश्यकताओं को पूरा करने और कर्ज चुकाने में खर्च करते हुए दिखाई देते है। इसके विपरीत हाई सैलरी वाले लोगों का अधिकतर हिस्सा अनिवार्य और विवेकाधीन खर्च किया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार हाई इनकम वाले लोगों में लोन हाई कॉस्ट लिविंग के साथ-साथ लग्जरी आइटम्स और हॉलिडे के प्रति बढ़ते क्रेज की ओर इशारा करते हुए दिखाई दी। रिपोर्ट में आंकड़े साफ कह रहे हैं कि जहां लोअर इनकम वाले लोगों का विवेकाधीन खर्च जहां 22 फीसदी है, जो हाई इनकम में बढ़कर 33 प्रतिशत हो जाता है।

इतना ही नहीं अनिवार्य एक्सपेंडिचर में भी कुछ इसी तरह का ट्रेंड देखने के लिए मिलने लगा है। अनिवार्य एक्सपेंडिचर जहां लोअर इनकम में 34 प्रतिशत है, जो हाई इनकम में बढ़कर 45 प्रतिशत हो जाता है। वहीं दूसरी ओर आवश्यक सामान पर होने वाले खर्च का ट्रेंड थोड़ा अलग देखने के लिए मिला है। इस कैटेगिरी में सैलरी बढ़ने के साथ इस खर्च में निरंतर कमी देखने के लिए मिली है। जहां लो इनकम के लोगों का खर्च इस कैटेगिरी में 44 प्रतिशत है, वहीं हाई इनकम में घटकर ये खर्च सिर्फ 22 प्रतिशत  रह जाता है।

लाइफस्टाइल के साथ जुड़े होते है खर्च:

अब तक मिली जानकारी के अनुसार लाइफस्टाइल से जुड़े विवेकाधीन खर्चों की भागेदारी 62 प्रतिशत से अधिक देखने के लिए मिली थी। हाई इनकम वाले लोग ऐसे सामान पर लोअर इनकम के लोगों के मुकाबले तीन गुना से अधिक खर्च करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक जहां हाई इनकम वाले लोग ऐसे सामनों पर 3200 रुपए से अधिक खर्च करते हैं तो कम कमाई करने वाले लोगों का ये खर्च 958 रुपए है। ऑनलाइन गेमिंग पर लोअर इनकम के लोग 22 प्रतिशत और हाई इनकम वाले लोग 12 प्रतिशत ही खर्च करते हैं। कुछ रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि जो लोग बी ग्रेड शहरों में रहते हैं वो मेडिकल पर अधिक खर्च करते हुए पाए जाते हैं। जो A ग्रेड कैटेगिरी के शहरों की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक हैं।

अनिवार्य खर्च को लेकर बढ़ रहा ट्रेंड:

कुछ रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि सैलरीड लोग अपनी कमाई का औसतन 34-45 प्रतिशत अनिवार्य कैटेगिरी में खर्च कर दिए है। जबकि 22-44 प्रतिशत जरूरतों और 22-33 प्रतिशत विवेकाधीन खर्च में दाल रहे है। वैसे ये अलग खर्च अलग-अलग सैलरी क्लास में डिफ्रेंट हो जाता है। रिपोर्ट में ये भी बोला गया है कि एम्बेडेड फाइनेंस, पीयर-टू-पीयर लोन और क्रेडिट कार्ड, होम, एजुकेशन लोन एवं होम लोन में  वृद्धि होने की वजह से  विवेकाधीन खर्च और भविष्य के दायित्वों के मध्य की रेखाएं एक तरह से मिट गई। परफियोस के CEO सब्यसाची गोस्वामी ने मीडिया रिपोर्ट में बोला है कि कंजंप्शन में निरंतर इजाफा देखने को मिल रहा है। सेविंग में लगातार गिरावट देखने के लिए मिली है। इसके कारण से परिवारों में लगातार प्रेशर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि सैलरी में बीते 6 साल में 9 फीसदी का इजाफा जरूर हुआ है, लेकिन जिस तरह से लोग व्हीकल, घर खरीद रहे हैं, कर्ज के लेवल में भी वृद्धि हो रही है।

रिलेटेड टॉपिक्स