नई दिल्ली : बीते सोमवार की शाम को लाल किले के पास हुए कार धमाके की वजह से 12 लोगों की मौत हो गई। वहीं 25 लोग घायल हुए। इस विस्फोट ने 14 वर्ष बाद दिल्ली के अमन में खलल पैदा कर दी है। इससे पूर्व 2008 में राजधानी बम धमाकों की गवाह बन गई थी। भारत की राजधानी न केवल सत्ता का केंद्र है, बल्कि देश की सुरक्षा और शांति का प्रतीक भी कही जाती है। लेकिन बीते चार दशकों में यह शहर कई बार आतंक की आग में झुलस चुका है, दरअसल यहां हुए धमाके सिर्फ जान-माल की हानि नहीं थे बल्कि संपूर्ण देश की सुरक्षा व्यवस्था, खुफिया तंत्र और लोगों के भरोसे को भीतर तक हिला कर रख देने वाले साबित हुए।
1985 में आतंकी हमले में दहली दिल्ली :
वर्ष 1985 में दिल्ली में पहले बड़े धमाके की खबर सामने आई थी, जब 10 मई को ट्रांजिस्टर में फिट किए गए बम एक साथ कई स्थानों पर फट पड़े। इन धमाकों की वजह से केवल दिल्ली में ही 49 लोगों की जान चली गई थी और 127 लोग बुरी तरह से जख्मी हुए थे। यह अटैक बसों, बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर हुए थे। आजादी के पश्चात की यह शुरुआती बड़ी आतंकी वारदात थी, जिसने दिल्ली के दिल में डर का बीज बोया था।
1996 और 2005 के वो धमाके जिसे कभी भुला न पाई दिल्ली :
इसके पश्चात 21 मई 1996 को लाजपत नगर के सेंट्रल मार्केट में भयानक धमाका हुआ। शाम के समय भीड़भाड़ के मध्य हुए इस विस्फोट में 13 लोगों की जान चली गई और 38 से अधिक लोग जख्मी हुए। इस हमले की जिम्मेदारी जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट ने ले ली थी। यह वह दौर था जब कश्मीर में आतंकवाद तेजी से बढ़ रहा था और उसकी लपटें दिल्ली तक आ चुकी थीं। वहीं इस घटना ने साफ़ कर दिया था कि अब आतंक केवल सीमावर्ती क्षेत्रों तक ही सिमित नहीं रह गया है, बल्कि अब ये मामला राजधानी में भी पहुंच चुका है। दरअसल वर्ष 2005 में दीपावली से ठीक दो दिन पूर्व, 29 अक्टूबर को दिल्ली के तीन स्थानों पर एक साथ धमाके हुए, ये धमाके पहाड़गंज, गोविंदपुरी और सरोजिनी नगर मार्केट में हुए थे, इन धमाकों की वजह से पूरा देश दहल गया था। वहीं इन ब्लास्ट में 62 लोगों की जान चली गई थी एवं 200 से अधिक लोग जख्मी हुए थे।
2008 के आतंकी हमले में दिल्ली से छीनी कई जिंदगियां :
इस अटैक की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े एक संगठन ने अपने हाथ ली थी। त्योहारों के मौसम में हुई इस वारदात ने यह दिखाया कि आतंकी किसी भी पल को अपने फायदे के लिए उपयोग कर सकते है। 13 सितंबर 2008 को एक बार फिर दिल्ली आतंक की चपेट में आ गई थी। उस दिन पांच स्थानों करोल बाग, कनॉट प्लेस एवं ग्रेटर कैलाश में लगभग एक ही वक़्त में ब्लास्ट हुए थे।
इन अटैकों में तकरीबन 30 लोगों की जान चली गई थी एवं 100 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे। इन धमकों की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन ने अपने हाथों ली थी। यह वह दौर था जब देश के कई शहरों में सिलसिलेवार धमाके होने लगे थे। इसी के साथ जयपुर, अहमदाबाद एवं हैदराबाद के बाद दिल्ली में भी वही पैटर्न फिर से सामने आया। 27 सितंबर 2008 को महरौली के फूल बाजार में एक टिफिन में रखा हुआ बम ब्लास्ट हो गया।
रिपोर्ट्स का कहना है कि मोटरसाइकिल पर आए 2 युवकों ने वह टिफिन वहीं छोड़ दिया इसके कुछ समय के पश्चात ही तेज धमाका हुआ। इस धमाके में 3 लोगों की मौत और 23 लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। इसके पश्चात 7 सितम्बर 2011 को दिल्ली हाई-कोर्ट के बाहर विस्फोट हुआ था। विस्फोटक ब्रिफकेस में रखा गया था। इस धमाके में कई लोग घायल हुए थे, लेकिन कोई हानि नहीं हो पाई थी।
IDSA की रिपोर्ट में खुलासा :
रक्षा अध्ययन संस्थान (IDSA) की रिपोर्ट्स के अनुसार कि अब तक दिल्ली में कुल 26 बड़े धमाके हुए है, जिनमें 92 से ज्यादा लोगों की मौत और 600 से अधिक लोग जख्मी हुए। इन घटनाओं के पश्चात सुरक्षा एजेंसियों ने कई अहम कदम उठाने शुरू कर दिए। बाजारों और सार्वजनिक स्थलों पर CCTV निगरानी बढ़ा दी गई, दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और NIA को सशक्त बनाया गया।
बम डिटेक्शन स्क्वॉड और क्विक रिस्पॉन्स टीमों को विस्तृत किया गया। दरअसल दिल्ली आतंकवादियों के निशाने पर इस वजह से रहती है क्योंकि यह देश का राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र है। यहां पीएम कार्यालय, संसद भवन एवं विदेशी दूतावास जैसे संवेदनशील ठिकाने हैं। राजधानी की घनी आबादी, भीड़भाड़ वाले बाजार और त्योहारी मौसम आतंकियों के लिए आसान लक्ष्य बन जाती है।