नई दिल्ली : भारतीय रेलवे ने एक बड़ा एवं नया कदम उठाया है। वहीं ये देश की प्रथम हइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन कोच का सफल ट्रायल किया जा चुका है। यह ट्रायल इंटीग्रेटेड कोच फैक्टरी (ICF), चेन्नई में ही पूरा किया गया है। इस कोच को सबसे पहले डीजल से चलने वाली ट्रेन में इसका उपयोग किया जाता था, लेकिन अब कुछ इस तरह का बना दिया गया है कि ये डीजल के स्थान पर हाइड्रोजन गैस से चलेगा। यानी इसमें कोई नया कोच शामिल नहीं किया गया, बल्कि पुराने को ही नए सिस्टम में ही कई तरह के परिवर्तन कर दिए गए है।
क्या होगा हइड्रोजन से लाभ :
खबरों का कहना है कि हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे धुंआ एवं प्रदूषण जरा भी नहीं फैलता। जब ट्रेन हाइड्रोजन से काम करती है तो उससे सिर्फ पानी की भाप बनती है, कोई जहरीली गैस नहीं। जिससे वातावरण को हानि बिलकुल भी नहीं पहुंचती एवं ट्रेन चलाने का खर्चा भी कम हो जाता है।
किस वजह से खास है हाइड्रोजन ट्रेन :
खबरों की माने तो जिस कोच का टेस्ट किया गया उसको ड्राइविंग पावर कार के नाम से पहचाना जाता है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस बात पर जोर दिया कि यह कदम हरित ऊर्जा (Green Energy) एवं भविष्य के लिए तैयार परिवहन समाधानों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को बिलकुल सामने रखता है। उन्होंने कहा भारत 1,200 हॉर्सपावर की हाइड्रोजन ट्रेन विकसित कर रहा है, जो इसे दुनिया की सबसे शक्तिशाली हाइड्रोजन ट्रेनों में से एक बनाएगी। यह ट्रेन 1,200 हॉर्सपावर की क्षमता के साथ डिजाइन की गई है, जो इसे जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन और चीन जैसे देशों की मौजूदा हाइड्रोजन ट्रेनों से कहीं अधिक शक्तिशाली बनाती है, जिनकी क्षमता 500-600 हॉर्सपावर के बीच है।
किस तरह चलती है हइड्रोजन से ट्रेन? :
इतना ही नहीं अब बात की जाए उस प्रोसेस के बारें में, जिससे ये ट्रेन हाइड्रोजन पर चलती है। ये दरअसल एक स्मार्ट टेक्नोलॉजी का ही एक रूप है। इस कोच में एक खास डिवाइस लगाया गया है, जिसे हाइड्रोजन फ्यूल सेल सिस्टम बोला जाता है। इसमें दो चीजें ली जाती हैं:
जब ये दोनों चीजें आपस में मिल जाती है, तो एक केमिकल रिएक्शन होना शुरू हो जाता है। इस क्रिया से तीन चीजें बनाई जाती है:
इतना ही नहीं ट्रेन के कोच में या उसके साथ एक हाइड्रोजन टैंक भी दिया जाता है। इसमें हाइड्रोजन को बहुत अधिक दबाव (हाई प्रेशर) में रखता है। जरूरत के अनुसार से ये गैस फ्यूल सेल में भेजी जाती है एवं वहां से बिजली बनना शुरू हो जाती है। इस पूरी ट्रेन में एक बैटरी सिस्टम भी दिया गया है। वहीं ये ट्रेन को अधिक पावर की आवश्यकता होती है, जैसे की किसी चढ़ाई वाले इलाके पर तो तुरंत सहायता करती है। लेकिन जब पावर की आवश्यकता कम होती है, तो फ्यूल सेल ही बैटरी को चार्ज करने का काम करता है।
आखिर किन देशों के पास पहले से है हइड्रोजन ट्रैन? :
खबरों का कहना है कि इंडिया अब उन गिनती के देशों में जुड़ चुका है, जिनके पास हइड्रोजन ट्रेन है, इसके पूर्व जर्मनी एवं फ्रांस जैसे देशों ने भी इस तकनीक का उपयोग किया है। लेकिन अच्छी बात ये है कि इस रेस में भारत भी शामिल है और आने वाले समय में इसे और जगहों पर चलाने का प्लान है।
भारत के भविष्य के लिए अहम् है ये कदम :
मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि भारत ने दुनिया से वादा कर लिया है कि, वह 2070 तक 'नेट-जीरो' कार्बन उत्सर्जन हासिल करने वाला है। यानि कुछ वर्षों में भारत ऐसा देश बन जाएगा जो जितना प्रदूषण फैलाएगा, उतना ही कम भी कर देगा, हाइड्रोजन ट्रेन इसी दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे न सिर्फ पर्यावरण की रक्षा होने वाली है, बल्कि भविष्य की ट्रेनों को चलाने का तरीका भी बदल सकता है।
कितनी लागत में बनी है ये ट्रेन :
वर्ष 2023 में, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राज्यसभा को सूचित किया था कि इंडियन रेलवे “विरासत के लिए हाइड्रोजन” पहल के अंतर्गत 35 हाइड्रोजन-संचालित ट्रेनें चलाने की योजना भी बना रहे है। प्रत्येक ट्रेन की अनुमानित लागत 80 करोड़ रूपए है। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए ये भी कहा था कि उत्तर रेलवे के जींद-सोनीपत खंड पर चलने वाली एक डीजल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट (DEMU) को हाइड्रोजन ईंधन कोशिकाओं के साथ पुनर्निर्मित करने के लिए 111.83 करोड़ रूपए की एक पायलट परियोजना भी शुरू की गई है।