मालेगांव ब्लास्ट: ATS पर उठे सवाल, RSS प्रमुख मोहन भागवत को फंसाने का दबाव

वर्ष 2008 मालेगांव बम धमाके में NIA कोर्ट ने प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत 7 आरोपियों को बरी किया। ATS की जांच पर सवाल उठे। पूर्व ATS अधिकारी ने RSS प्रमुख को फंसाने के दबाव का खुलासा किया।

मालेगांव ब्लास्ट: ATS पर उठे सवाल, RSS प्रमुख मोहन भागवत को फंसाने का दबाव

NIA कोर्ट द्वारा 2008 मालेगांव बम धमाके में RSS प्रमुख मोहन भागवत को फ़साने की कोशिश

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Highlights

  • NIA कोर्ट ने मालेगांव बम धमाके के सभी 7 आरोपियों को बरी किया।
  • पूर्व ATS अधिकारी मुजावर का दावा: RSS प्रमुख मोहन भागवत को फंसाने का दबाव।
  • ATS की जांच में खामियां, अधिकारियों की जांच के आदेश।

मुंबई: वर्ष 2008 के मालेगांव बम विस्फोट के केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने बीते गुरुवार यानि 31 जुलाई 2025 को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। तकरीबन 17 वर्षों के बाद कोर्ट ने पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित समेत सात आरोपियों को बरी कर दिया। विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी ने इस बारें में कहा कि अभियोजन पक्ष विश्वसनीय साक्ष्य पेश करने में विफल रहा, जिसके आधार पर सभी आरोपियों के पक्ष में फैसला कर दिया। अदालत ने जांच से जुड़े महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) के अधिकारियों पर सवाल उठाते हुए उनकी जांच के आदेश भी जारी किए।

29 सितंबर 2008 को मालेगांव में रमजान के समय एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर रखे गए विस्फोटक उपकरण से हुए विस्फोट में 6 लोगों की जान चली गई थी एवं 95 लोग घायल हुए थे। इस केस में ATS ने शुरूआती कार्रवाई की थी, जिसे 2011 में NIA को सौंप दिया गया। ATS ने दावा किया था कि यह धमाका हिंदू दक्षिणपंथी संगठन 'अभिनव भारत' द्वारा किया गया, जिसमें प्रज्ञा ठाकुर की मोटरसाइकिल का उपयोग भी किया गया। हालांकि, इस पर कोर्ट ने कहा है कि मोटरसाइकिल के स्वामित्व और RDX के उपयोग के दावों को साबित करने में अभियोजन पक्ष असफल रहा।

महबूब मुजावर का सनसनीखेज खुलासा :

फैसले के पश्चात महाराष्ट्र ATS के पूर्व पुलिस निरीक्षक महबूब अब्दुल करीम मुजावर ने चौंकाने वाला दावा कर दिया है। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा है कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत और अन्य लोगों को इस केस में फंसाने के लिए निर्देश जारी किए गए थे ताकि 'हिंदू आतंकवाद' का नैरेटिव स्थापित किया जा सके। मुजावर ने इल्जाम लगाया कि तत्कालीन IPS अधिकारी परम बीर सिंह के दबाव में उन्हें मृत व्यक्तियों को रिकॉर्ड में जीवित दिखाने के लिए कहा गया। इनकार करने पर उन्हें झूठे मामले में फंसाकर निलंबित कर दिया गया।

मुजावर ने यह भी दावा किया कि मालेगांव मामले के 2 संदिग्धों को 17 वर्ष पहले ATS ने मारा था, लेकिन रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया। उन्होंने इस बारें में आगे कहा है कि ATS की जांच में कई खामियां थीं, जिसे NIA ने बाद में उजागर किया। इस खुलासे ने जांच की विश्वसनीयता पर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।

कोर्ट के अवलोकन और पीड़ितों की टिप्पणी :

कोर्ट ने नोट किया कि अपराध स्थल को ठीक से संरक्षित बिलकुल भी नहीं किया, जिससे साक्ष्य दूषित हुए। साथ ही, UAPA के तहत स्वीकृति में प्रक्रियागत खामियां भी देखने के लिए मिली। पीड़ितों के वकील शाहिद नदीम ने फैसले के विरुद्ध  बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील करने की बात कही है। प्रज्ञा ठाकुर ने फैसले को 'हिंदुत्व की जीत' करार दिया, जबकि पुरोहित ने न्यायपालिका और सेना का आभार भी व्यक्त किया है। NIA ने ये भी कहा है कि वह फैसले की प्रति का अध्ययन करने के पश्चात अपील पर निर्णय लेगी। इस मामले ने जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली और 'हिंदू आतंकवाद' जैसे शब्दों के राजनीतिक उपयोग पर बहस को फिर से हवा दी है।

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