नई दिल्ली : चीन की राजधानी बीजिंग में बुधवार यानि 02 सितंबर 2025 को आयोजित भव्य विक्ट्री डे परेड ने एक बार फिर हर किसी का ध्यान खींच लिया है। इस खास अवसर पर चीन ने अपने विशाल शस्त्रागार का प्रदर्शन भी जमकर किया, जिसमें व्लादिमीर पुतिन एवं किम जोंग उन जैसे दिग्गज नेताओं के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, मालदीव, ईरान, मलेशिया, म्यांमार एवं मंगोलिया के शीर्ष नेता भी इसमें शामिल हुए थे। लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सूची में नहीं थे। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुपस्थिति चर्चा का विषय बन गई, खासकर इसलिए क्योंकि 2 दिन पूर्व ही वे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट में शामिल होने चीन गए थे और वहां राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात भी की थी। सवाल उठने लगे कि आखिर मोदी परेड तक क्यों रुके।
सोची-समझी रणनीति :
इतना ही नहीं अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी का यह निर्णय एक सोची-समझी कूटनीतिक रणनीति है। चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की परेड में शिरकत करना भारत की ओर से अप्रत्यक्ष समर्थन कहा जाता है, जबकि 2020 में गलवान घाटी में इसी सेना से हुई झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए थे।
इसके साथ साथ, पाकिस्तान को चीन से निरंतर मिल रहे सैन्य सहयोग ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले को प्रभावित कर दिया। आंकड़ों के अनुसार, पिछले 5 सालों में पाकिस्तान ने अपने तकरीबन 81 प्रतिशत हथियार चीन से खरीदे हैं। इन हथियारों का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध होता रहा है। असल वजह ये है कि प्रधानमंत्री मोदी ने बीजिंग की परेड से दूरी बनाकर एक सख्त संदेश देने का प्रयास किया।
जापान को भेजा गया खास संदेश :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परेड में न जाने के पीछे बहुत ही बड़ा कारण है। इतना ही नहीं यह परेड द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के औपचारिक आत्मसमर्पण की याद में आयोजित की गई थी। ऐसे में यदि भारत के पीएम मोदी इस आयोजन में शामिल होते तो टोक्यो के साथ संबंधों पर प्रभाव पड़ सकता था। भारत ने अपने अहम रणनीतिक एवं आर्थिक साझेदार जापान को नाराज करने से बचना अधिक जरूरी समझा।
भारत का संतुलित रुख :
कुछ रिपोर्ट्स का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस रणनीति से भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह बहुपक्षीय मंचों जैसे SCO में चीन के साथ बातचीत के लिए तैयार हो चुके है, लेकिन द्विपक्षीय रिश्तों में राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को नजरअंदाज नहीं करने वाला है। यानी भारत कूटनीति और सुरक्षा के बीच संतुलन साधते हुए आगे बढ़ेगा।