बिहार में पहले चरण के चुनाव से पूर्व मचा सियासी बवाल, संतोष सहनी ने किया RJD का समर्थन

बिहार चुनाव 2025 में पहले चरण के मतदान से पूर्व महागठबंधन में त्याग एवं समर्थन की राजनीति दिखाई दी, जहानाबाद में प्रमोद यादव एवं दरभंगा में मुकेश सहनी और उनके भाई संतोष सहनी ने अपने उम्मीदवारों को हटाकर RJD प्रत्याशियों का समर्थन किया, ये कदम गठबंधन की एकता दिखाने का प्रयास माना जा रहा है

बिहार में पहले चरण के चुनाव से पूर्व मचा सियासी बवाल, संतोष सहनी ने किया RJD का समर्थन

महागठबंधन, RJD को मिला प्रमोद यादव और संतोष सहनी का समर्थन

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Highlights

  • बिहार चुनाव से पूर्व महागठबंधन में जहानाबाद एवं दरभंगा सीटों पर बदले उम्मीवारों के सियासी समीकरण।
  • प्रमोद यादव और संतोष सहनी ने RJD प्रत्याशियों को दिया समर्थन।
  • NDA ने नेताओं के समर्थन को बताया महाघठबंधन की मजबूरी।

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव के प्रथम चरण के मतदान से ठीक पहले महागठबंधन में निरंतर हो रहे उलटफेर ने नई राजनीतिक तस्वीर बनाई है। जहां कुछ फैसले अंतिम समय में कन्फ्यूजन खत्म करने वाले लग रहे है, वहीं कुछ घटनाएं यह प्रश्न भी खड़ा कर रही हैं कि क्या महागठबंधन की एकजुटता सिर्फ चुनाव को लेकर ही मजबूरी है या असल रणनीति। जहानाबाद की सीट इसका ताजा उदाहरण कहा जा रहा है, क्योंकि महागठबंधन प्रत्याशी राहुल शर्मा को पशुपति पारस गुट के उम्मीदवार प्रमोद यादव ने अपना समर्थन देने का एलान किया है। दरअसल, यहां RLJP (पशुपति पारस गुट) के प्रमोद यादव के मैदान में आने से वोट स्प्लिट का संकट बढ़ता जा रहा है, लेकिन पहले चरण के चुनाव प्रचार के अंतिम दिन 4 नवंबर को प्रमोद यादव ने नाम वापस लेकर राहुल शर्मा को अपना समर्थन दिया। यह कदम साफ तौर पर RJD के लिए राहत वाली बात साबित हो सकती है, क्योंकि वोट बंटवारे का खतरा टल गया एवं पारस गुट का एक भाग भी लालटेन के साथ आ गया है।

त्याग की राजनीति या रणनीति ? 

जानकारों का इस बारें में कहना है कि प्रमोद यादव का यह निर्णय महागठबंधन में कन्फ्यूजन दूर करने की कवायद भी की है। इस बारें में कहते है कि पहले यह सीट महागठबंधन के लिए चुनौती बन चुकी थी, लेकिन अब राहुल शर्मा के पक्ष में माहौल साफ होता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसा कहा जा रहा है कि RJD ने आखिरी वक्त में एक झटका टाल दिया। हालांकि, अंत-अंत कायम रही कन्फ्यूजन की स्थिति के पश्चात अब यह निर्णय राजद के लिए कितना फायदेमंद होगा यह तो आने वाला समय ही बता सकता है। लेकिन, इतना तो तय लग रहा है कि महागठबंधन के भीतर कन्फ्यूजन बने रहने के मध्य एवं कन्फ्यूजन दूर करने का प्रयास जारी है।

इतना ही नहीं ठीक ऐसा ही दृश्य दरभंगा की गौड़ा बौराम सीट पर भी देखने के लिए मिला है। यहां RJD एवं VIP (मुकेश सहनी की पार्टी) के मध्य फ्रेंडली फाइट जैसी स्थिति थी। VIP के संतोष सहनी (मुकेश सहनी के भाई) एवं RJD के अफजल अली खान दोनों लालटेन सिंबल पर उतर चुके है। तेजस्वी यादव ने 30 अक्टूबर 2025 को संतोष सहनी के लिए समर्थन की मांग की थी। जिसके पश्चात तस्वीर साफ होती हुई दिखाई दे रही है। फिर 4 नवंबर को तेजस्वी यादव ने संतोष सहनी को समर्थन की फिर से अपील की है, लेकिन 4 नवंबर को मुकेश सहनी ने खुद अपने भाई का नाम वापस लेकर अफजल को समर्थन देने की घोषणा कर दी है। मुकेश सहनी ने इसे महागठबंधन की एकता के लिए बड़ा त्याग है। लेकिन, राजनीति के जानकार भी मुकेश सहनी के इस कदम से हैरान रह गए कि अचानक ऐसा निर्णय क्यों किया?

त्याग और समर्थन की बन गई सियासत : 

मुकेश सहनी की तरफ से कहा गया है कि इस फैसले ने एक ओर निषाद-मल्लाह वोट के साथ ही महागठबंधन के समर्थक वर्ग को एकजुट कर दिया है। वहीं, जानकार यह भी मानते हैं कि इस निर्णय से VIP और RJD के मध्य चल रही सीट-शेयरिंग की कड़वाहट को भी कुछ हद तक कम किया जा सकता है। लेकिन, इसकी अंदरूनी कहानी यह है कि यह एक तरह का नुकसान-से-बचाव कदम की है। इन दोनों घटनाओं से ये बात तो साफ़ हो चुकी है कि महागठबंधन ने अंतिम समय में अपने अंदरूनी मतभेदों को संभालने का प्रयास किया है। सीट शेयरिंग पर विवाद के पश्चात, अब एक-दूसरे के प्रत्याशियों को समर्थन देने का पैटर्न दिखाई देने लगा है। इसका लाभ सीधे RJD को मिल रहा है जो पूरे गठबंधन की केंद्रीय शक्ति बनकर उभरी है।

महागठबंधन में कन्फ्यूजन :

इतना ही नहीं NDA ने इसे ‘डर और बिखराव की राजनीति’ का करार भी दे दिया है। बीजेपी नेताओं  का इस बारें में कहना है कि त्याग का तमाशा कर रहे है, लेकिन जनता सब देख रही है। बीजेपी-JDU खेमे का कहना है कि ये घटनाएं महागठबंधन की मजबूरी को दर्शाती है न कि एकता को। बहरहाल, कुल मिलाकर पहले चरण के मतदान से ठीक पहले महागठबंधन ने अपने भीतर के कई पेंच भी सुलझा दिए। जहानाबाद एवं गौड़ा बौराम जैसे उदाहरण बताते हैं कि कन्फ्यूजन कम चुका है, लेकिन अंत-अंत तक बनी रही असमंजस की स्थिति के कारण यह स्थायी समाधान नहीं है। जानकारों की नजर में फिलहाल RJD की रणनीति काम करती हुई नजर आ रही है, पर असली परीक्षा 6 नवंबर को डाले गए मतों से 14 नवंबर को निकलने वाले नतीजों  में होने वाली है, जहां पता चलेगा कि ये एकजुटता वोटों में तब्दील हुई या सिर्फ बयानबाजियों में।

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