
नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों लोकसभा में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की विदेश नीति को लेकर एक पुस्तक की चर्चा की, जिससे सदन में हंगामा मच गया। पीएम मोदी ने पंडित नेहरू के समय लिए गए फैसलों की आलोचना की और खासतौर पर भारत-चीन सीमा विवाद से जुड़ी उनकी नीतियों को सवालों के घेरे में रखा। इस दौरान उन्होंने विपक्ष के नेताओं को मशहूर अमेरिकी लेखक और विदेश नीति विशेषज्ञ ब्रूस रिडेल की किताब 'JFK’s Forgotten Crisis' पढ़ने की सलाह दी।
PM Shri Narendra Modi during his speech in the Parliament mentioned how the book ‘JFK’s Forgotten Crisis’ has thrown light on former Prime Minister Nehru and his activities on pretext of foreign diplomacy, when the nation was facing challenging times.
— Amit Malviya (@amitmalviya) February 4, 2025
The book, written by… pic.twitter.com/Y2YjK7HFmh
पीएम मोदी ने कहा कि इस किताब में भारत के पहले प्रधानमंत्री के विदेश नीति से जुड़े कई अहम पहलुओं पर रोशनी डाली गई है। उन्होंने विपक्षी सांसदों को संबोधित करते हुए कहा, "जो लोग विदेश नीति को समझना चाहते हैं, उन्हें इस किताब को जरूर पढ़ना चाहिए।" प्रधानमंत्री ने यह टिप्पणी तब की जब लोकसभा में विपक्ष ने उनकी सरकार की चीन नीति को लेकर सवाल उठाए। कांग्रेस सांसद और नेता विपक्ष राहुल गांधी तथा समाजवादी पार्टी (सपा) सांसद अखिलेश यादव ने भारत-चीन सीमा पर हो रही गतिविधियों को लेकर सरकार पर निशाना साधा था। इसके जवाब में मोदी ने कहा कि नेहरू के दौर की विदेश नीति और फैसले ही आज की कई समस्याओं की जड़ हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने चर्चा के दौरान इस किताब के कुछ अंशों का उल्लेख भी किया। उन्होंने बताया कि किताब में 1962 में अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी की पत्नी जैकलीन केनेडी की भारत यात्रा का जिक्र है और इसमें कहा गया है कि उस दौरान विदेश नीति को लेकर पंडित नेहरू की प्राथमिकताएं क्या थीं। किताब में यह दावा किया गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी ने भारत में तैनात अमेरिकी राजदूत जॉन केनेथ गैलब्रेथ से कहा था कि नेहरू को कूटनीति और रणनीति से ज्यादा दिलचस्पी जैकलीन केनेडी के साथ बातचीत में थी। यहां तक कि जब अमेरिकी दूतावास ने जैकलीन के लिए एक अलग विला किराए पर लिया था, तब भी नेहरू ने जोर दिया कि वह प्रधानमंत्री आवास के उसी कमरे में रहें जिसका उपयोग कभी एडविना माउंटबेटन करती थीं। एडविना के साथ भी नेहरू जी के संबंध काफी विवादित रहे हैं।
इसके अलावा, किताब के मुताबिक, नेहरू को केनेडी की बहन पैट कैनेडी में भी विशेष रुचि थी। 1962 की इस यात्रा के दौरान नेहरू 73 साल के थे और इस यात्रा को अमेरिकी सरकार ने भारत और अमेरिका के रिश्तों को मजबूत करने के प्रयास के रूप में देखा था। प्रधानमंत्री मोदी ने यह बयान तब दिया जब कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सरकार पर चीन को लेकर गंभीर आरोप लगाए। दरअसल, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर शुरू से आरोप लगते रहे है कि उन्होंने देश की नीति-नियमों पर अपने व्यक्तिगत संबंधों को प्राथमिकता दी, जिसके कारण कई समस्याएं खड़ी हुईं।
संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A को जम्मू कश्मीर में आतंकवाद की जननी कहा जाता है, इससे प्रदेश को विशेषाधिकार मिल गए थे और यहाँ तक कि जम्मू कश्मीर का भारत से अलग, अपना संविधान बन चुका था। इसके चलते घाटी ने काफी नरसंहार झेला, और पाकिस्तानी घुसपैठ आसान हो गई। देश के प्रथम कानून मंत्री बाबा साहेब अंबेडकर को शायद पहले से इसका अनुमान था, इसलिए उन्होंने संविधान की मसौदा समिति का अध्यक्ष होने के नाते अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार करने से साफ़ इंकार कर दिया था। बाबा साहेब का कहना था कि ये देश के साथ विश्वासघात होगा।
My father used his wife Edwina to influence Nehru on Kashmir - Pamela Mountbatton
— Viक़as (@VlKAS_PR0NAM0) September 30, 2022
Gems of Chacha.. pic.twitter.com/4LTdzT0Shz
बाबा साहेब ने शेख अब्दुल्ला को पत्र लिखकर दो टूक कह दिया था कि ''आप चाहते हैं कि भारत, जम्मू कश्मीर में अन्न की आपूर्ति करे, सीमा की रक्षा करे, प्रदेश में विकास कार्य करे, आपको तमाम अधिकार दे, किन्तु जम्मू कश्मीर में भारत के अधिकार सीमित हो जाएं, मैं ऐसे अनुच्छेद को कतई स्वीकार नहीं करूँगा, ये देश के साथ विश्वासघात होगा।' अब्दुल्ला समझ गए थे कि आंबेडकर नहीं मानेंगे, इसलिए उन्होंने पीएम नेहरू से संपर्क किया, जो उनके घनिष्ट मित्र माने जाते थे। अंबेडकर के इंकार करने पर नेहरू ने संविधान सभा की निर्मात्री समिति के सदस्य, नरसिंह गोपालस्वामी अयंगर से अनुच्छेद 370 का मसौदा तैयार करवा दिया। पंडित नेहरू और शेख अब्दुल्ला के दबाव में ही ये अनुच्छेद भारतीय संविधान में शामिल हुआ।
जिसके कारण लाखों दलित, जम्मू कश्मीर में वोट डालने से वंचित हो गए, उन्हें केवल मैला उठाने तक सीमित कर दिया गया, चाहे उन्होंने कितनी भी शिक्षा ग्रहण की हो। कश्मीरी लड़कियों से निकाह कर पाकिस्तानी आतंकी, कश्मीर के नागरिक बनने लगे और सालों से वहां रह रहे दलित समुदाय को कश्मीर की नागरिकता न मिली। 5 अगस्त 2019 को जब भारतीय संसद ने इस अनुच्छेद को खत्म किया, तब जाकर 2024 में हुए विधानसभा चुनावों में उन दलितों ने पहली बार वोट डाला और उन्हें सरकारी नौकरियों में आवेदन करने का अधिकार मिला। किन्तु तब तक पाकिस्तानी कट्टरपंथ का जहर कश्मीर में फैल चुका था, जो आज भी बेकसूरों की जान का दुश्मन बना हुआ है।
उल्लेखनीय है कि 1962 में ही भारत और चीन का युद्ध हुआ था, जिसमे भारत को बुरी पराजय का सामना करना पड़ा था, क्योंकि उस समय नेहरू जी हिंदी-चीनी भाई भाई का नारा बुलंद कर रहे थे और सैन्य आवश्यकताओं तथा विदेश नीति पर उनका ध्यान अपेक्षाकृत कम था। मार्च 1962 को केनेडी ने भारत का दौरा किया था, और उसी साल अक्टूबर में भारत को चीन के सामने सरेंडर करना पड़ा। इसके आलावा तत्कालीन पीएम नेहरू ने भारतीय वायुसेना को भी इस युद्ध में शामिल होने की मंजूरी नहीं दी, जिसके कारण थल सेना को सपोर्ट नहीं मिला और चीन ने कई हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। जब संसद में ये मुद्दा उठा तो, पंडित नेहरू ने भारत की खोई हुई जमीन को बंजर और बेकार कहकर इसे कमतर बताने का प्रयास किया। उन्हने कहा कि उस जमीन पर तो घास का एक तिनका तक नहीं उगता, शायद पंडित नेहरू उस स्थान के रणनीतिक महत्त्व को पहचानने में भूल कर बैठे थे। , तब भरी संसद में महावीर त्यागी ने अपना गंजा सिर दिखा कर पंडित नेहरू से कहा था कि, ‘इस पर भी बाल नहीं उगते, क्या आप इसे भी दुश्मन को सौंप देंगे?' इस जवाब से नेहरू हड़बड़ा गए थे और अपना भाषण पूरा करने लगे।
कश्मीर के मुद्दे को तो नेहरू जी, लार्ड मॉउंटबैटन के कहने पर संयुक्त राष्ट्र (UN) में ले गए थे, जिसे खुद सुलझाया जा सकता था, चीन द्वारा कब्जाई भूमि पर नेहरू जी उसे बंजर कहकर मौन हो गए। आज चीन पहले के मुकाबले कहीं अधिक ताकतवर हो चुका है और भारत के आसपास के देशों को कर्ज के जाल में उलझाकर उसने अपनी बुनियाद तैयार कर ली है, पाकिस्तान से लेकर, मालदीव्स और अब बांग्लादेश तक चीन के इशारे पर भारत विरोधी हो चुके हैं, लिहाजा आज वो खोई हुई जमीन वापस पाना बहुत मुश्किल है।
15 अगस्त को आज़ाद होने के बाद भारत तो अपनी राह पर आगे बढ़ रहा था, किन्तु पाकिस्तान बेचैन था। वो कश्मीर को अपने कब्जे में करना चाहता था, जिसके लिए उसने 22 अक्तूबर 1947 को ही भारत पर आक्रमण कर दिया और देस की 83000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर लिया, जिसे आज पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) कहा जाता है। इस हमले में हज़ारों हिन्दुओं-सिखों की मौत हुई। इसमें पहले तो सेना को आदेश देने में देर हुई, इसके बाद जब सेना आगे बढ़कर पाकिस्तानियों को खदेड़ने लगी, तो पंडित नेहरू ने युद्धविराम की घोषणा कर दी, जिससे पाकिस्तान द्वारा कब्जा किया गया कश्मीर उसके पास ही रह गया और उसके सैनिक भी सकुशल वापस लौट गए। आज उसी PoK में पाकिस्तानी आतंकियों के कई शिविर हैं, जहाँ से वो उरी-पुलवामा जैसे हमलों की साजिश रचते रहते हैं। इसी मसले को नेहरू जी मॉउंटबैटन के कहने पर संयुक्त राष्ट्र में ले गए थे, जबकि ये सैन्य कार्रवाई से हल हो सकता था और पाकिस्तान को सबक भी सिखाया जा सकता था।
नेपाल शुरू से दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था, 2008 में वामपंथी उभार के बाद वहां कम्युनिस्ट विचारधारा पनपने लगी और आज वो भारत से दूर होते हुए चीन के करीब हो गया है। किन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि एक समय नेपाल भारत में विलय होना चाहता था। कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 'द प्रेसिडेंटियल इयर्स' में बताया है कि सन 1952 में नेपाल के राजा विक्रमशाह ने पंडित नेहरू के सामने नेपाल को भारत में मिलाने का प्रस्ताव रखा था। किन्तु नेहरू जी ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय दबाव को इसका कारण बताया। लेकिन, आज वही नेपाल, भारत के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है, और वहां की वामपंथी सरकार दावा करती है कि भारत ने उसके क्षेत्रों पर कब्जा कर रखा है। बीते दिनों नेपाल ने एक विवादित नक्शा भी जारी किया था, जिसमे भारत के कई हिस्सों को उसकी सीमा में दर्शाया गया था। एक समय जो नेपाल खुद भारत का हिस्सा होना चाहता था, वो आज चीन के इशारे पर भारत विरोधी कार्यों का समर्थन करने लगा है।
इसके अलावा भी नेहरू जी की कुछ रणनीतिक गलतियां रही हैं, जिसने उनके अच्छे कार्यों पर पानी फेरने का काम किया है। फिर चाहे वो पंचशील समझौता हो, या कोको आइलैंड म्यांमार को दे देना, इन दोनों से चीन को लाभ पहुंचा और भारत पिछड़ गया। इतिहास में अगर ये भूलें न हुईं होती, तो आज भारत का परिदृश्य कुछ और हो सकता था।