2024 के भारतीय चुनाव में अमेरिका ने खूब बहाया पैसा, क्या मोदी सरकार का किया समर्थन?

अमेरका दुनियाभर में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए अनगिनत खेल खेलता रहता है, लेकिन अब जो खुलासा हुआ है, वो हैरान करने वाला है. हालाँकि, शपथ लेने के तुरंत बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ये स्वीकार कर लिया था कि अमेरिका ने भारतीय चुनाव को प्रभावित करने के लिए पैसे भेजे, किन्तु अब अमेरिकी अधिकारी माइक बेंज ने बताया है कि चुनाव को किसके पक्ष में और किस तरह प्रभावित किया गया था.

2024 के भारतीय चुनाव में अमेरिका ने खूब बहाया पैसा, क्या मोदी सरकार का किया समर्थन?

भारत के चुनावों को प्रभावित करने के लिए अमेरिका ने खर्चे करोड़ों रूपए

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Highlights

  • भारत में अमेरिका प्रभावित किए चुनाव।
  • भारतीय चुनाव में अमेरिकी फंडिंग।
  • राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी माना, नरेंद्र मोदी थे निशाना।

वाशिंगटन : अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को लेकर एक सनसनीखेज खुलासा किया है। मियामी में आयोजित एक समिट में उन्होंने आरोप लगाया कि बाइडेन प्रशासन ने भारत के चुनावों को प्रभावित करने के लिए 21 मिलियन डॉलर (लगभग 182 करोड़ रुपये) भेजे थे। ट्रम्प ने इस धनराशि पर सवाल उठाते हुए कहा कि अमेरिका को भारत के चुनावी तंत्र में दखल देने की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने सीधे तौर पर बाइडेन सरकार पर आरोप लगाया कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाकर किसी और को सत्ता में लाने की योजना बना रहे थे।

ट्रम्प ने कहा, "हमें भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन डॉलर खर्च करने की क्या जरूरत थी? इससे स्पष्ट है कि वे चुनावी नतीजे प्रभावित करना चाहते थे। हमें भारत सरकार को इसका जवाब देना पड़ेगा।" ट्रम्प ने यह भी जोड़ा कि जब रूस ने अमेरिका में कथित तौर पर 2000 डॉलर खर्च किए थे, तो यह बड़ा मुद्दा बना था, लेकिन भारत में इतनी बड़ी रकम भेजे जाने पर कोई सवाल नहीं उठाया गया। उल्लेखनीय है कि, बीते कुछ वर्षों में भारतीय विपक्षी नेताओं द्वारा लगातार अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की यात्राएँ की गईं, जिनमें वे उन लोगों से मिले, जिनका भारत के प्रति रवैया संदेहास्पद रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा इस संदर्भ में विशेष रूप से चर्चा में रही। उन्होंने वहां अमेरिकी सांसद इल्हान उमर से मुलाकात की थी, जो खुले तौर पर भारत विरोधी बयान देती रही हैं और कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करती हैं।

इसके अलावा, राहुल गांधी अमेरिकी राजनयिक डोनाल्ड लू से भी मिले थे, जिनका नाम पाकिस्तान और बांग्लादेश की सरकारों को अस्थिर करने में सामने आता रहा है। लू पर आरोप है कि उन्होंने कई देशों में तख्तापलट में भूमिका निभाई है और सरकारों के खिलाफ फर्जी आंदोलनों को उकसाने में माहिर हैं। राहुल गांधी को अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में भाषण देने के लिए बुलाया जाता रहा है, जहाँ उन्होंने बार-बार यह नैरेटिव गढ़ा कि भारत में लोकतंत्र और संविधान खत्म हो गए हैं। उनके इन बयानों से कई बार भारत में विवाद भी खड़े हुए। एक बार तो राहुल ने यह तक कह दिया कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है और ब्रिटेन व अमेरिका इसे देखकर मूकदर्शक बने हुए हैं। संसद में सत्ता पक्ष ने इस पर आपत्ति जताते हुए पूछा था कि राहुल गांधी विदेशी शक्तियों से मदद की उम्मीद क्यों कर रहे हैं? अगर उन्हें कोई शिकायत है, तो वे भारत में बोल सकते हैं, संसद में उठा सकते हैं या न्यायालय में जा सकते हैं।

अब डोनाल्ड ट्रम्प के इस बयान ने भारत में राजनीतिक हस्तक्षेप को लेकर एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इससे पहले भी भाजपा और कई विश्लेषकों ने आरोप लगाया था कि अमेरिकी डीप स्टेट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक सुनियोजित एजेंडा चला रहा है। भाजपा नेताओं ने स्पष्ट किया था कि अमेरिकी मीडिया और संस्थाओं के जरिए प्रधानमंत्री मोदी की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही थी। अब जब ट्रम्प ने बाइडेन प्रशासन पर भारत में सरकार बदलने की कोशिश का आरोप लगाया है, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर अमेरिका भारत में किसे सत्ता में लाना चाहता था? यह भी ध्यान देने योग्य है कि भाजपा ने पहले ही यह आरोप लगाया था कि अमेरिकी प्रशासन भारत को अस्थिर करना चाहता है, जिस पर अमेरिका ने आपत्ति जताई थी।

डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने बयान में USAID के जरिए भारत को भेजी गई 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भारत जैसे बड़े और आर्थिक रूप से सक्षम देश को इस तरह की फंडिंग क्यों दी गई? ट्रम्प का यह बयान एलन मस्क की अगुवाई वाले संगठन DOGE के खुलासे के बाद आया है, जिसने यह जानकारी दी थी कि USAID ने भारत में वोटर भागीदारी बढ़ाने के नाम पर 21 मिलियन डॉलर भेजे थे। इस पूरे घटनाक्रम ने अमेरिकी प्रशासन की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

अमेरिकी अधिकारी माइक बेंज ने तो पूरा प्लान खोल दिया :

दरअसल, डोनाल्ड ट्रम्प ने जो आरोप लगाया है, उसमे उन्होंने इतना ही कहा कि भारत के चुनाव को प्रभावित करने के लिए पैसा देने की क्या आवश्यकता थी ? लेकिन अमेरिका के पूर्व विदेश विभाग अधिकारी माइक बेंज ने तो बाइडेन सरकार की पूरी प्लानिंग को परत दर परत खोलकर रख दिया है। बेंज ने बताया है कि अमेरिका ने भारत, बांग्लादेश सहित कई देशों में राजनितिक दखल दिया है और ये अब भी जारी है। 

बेंज ने आगे खुलासा करते हुए बताया कि, अमेरिका मीडिया संस्थान, सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्षी आंदोलनों को फंडिंग करता है, जिसके जरिए वो सम्बंधित देश की राजनीतिक सोच-समझ को प्रभावित करता है। बेंज ने ये भी बताया कि ‘लोकतंत्र को बढ़ावा देने’ की आड़ में अमेरिका से जुड़ी संस्थाओं ने कई देशों में अपने अनुरूप सरकारें बिठाने का काम किया है, जो उनके इशारों पर काम करे, और यही काम वो भारत में भी करना चाहता था। 

TOI की रिपोर्ट के अनुसार, बेंज ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अमेरिका ने विपक्षी दलों को जीत दिलाने का भरसक प्रयास किया था और मोदी सरकार को सत्ता से हटाने की कोशिश की थी। बेंज का दावा है कि, अमेरिकी संगठनों ने पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ चुनावी नैरेटिव बनाया और इसे बढ़ावा देने के लिए संसाधन भी उपलब्ब्ध कराए। अमेरिकी संस्थानों द्वारा ये नैरेटिव फैलाया गया कि मोदी लोकप्रिय नहीं हैं, बल्कि उनकी लोकप्रियता गलत सूचना के कारण है, और इसका जवाब देने वाले भाजपा समर्थकों की आवाज़ को सोशल मीडिया पर दबा दिया गया।

बेंज ने साफ़ तौर पर बताया कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सप्प, आदि पर अंकुश लगाकर मोदी समर्थकों की आवाज़ को दबाने की कोशिश की गई, जबकि विरोधियों का कंटेंट जमकर दिखाया गया, ताकि चुनाव के पहले माहौल बनाया जा सके। बेंज के अनुसार, अमेरिका ने यही पैंतरा बांग्लादेश में भी आजमाया था, जहाँ अमेरिकी संगठनों ने सांस्कृतिक और जातीय तनावों का इस्तेमाल करके बांग्लादेश में विभाजन खड़ा करने और सरकार विरोधी प्रदर्शनों को हवा देने का प्लान तैयार किया था। आपको याद होगा कि बीते कुछ समय से भारतीय राजनीति में भी जाति-जाति शब्द काफी सुनाई दे रहा है, और कौन इस शब्द को उछाल रहा है, उसे भी आप अच्छी तरह जानते हैं। ये जातिगत फूट डालने का ही एक प्रयास हैं, क्योंकि जिन पार्टियों को एक समुदाय के वोट एकमुश्त मिलते ही हैं, उन्हें अगर जाति में टूटे हुए हिन्दुओं के वोट भी कुछ प्रतिशत मिल गए, तो उनके लिए सत्ता सुख भोगना आसान हो जाएगा। यदि नियत साफ़ हो, तो लोगों में विभाजन किए बगैर, इसका सदुपयोग भी किया जा सकता है

भारत में सत्ता परिवर्तन से अमेरिका को क्या लाभ होगा :

अमेरिका एक ऐसा देश है, जो दुनियाभर में अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहता है, यही कारण है कि वो रूस और चीन को पसंद नहीं करता, क्योंकि ये दोनों देश उसे टक्कर देते हैं और उसके हर हुक्म का पालन नहीं करते। बीते कुछ समय से भारत भी ऐसा नहीं कर रहा है । अमेरिका ने कहा था कि भारत रूस से तेल न ख़रीदे, वरना उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा, लेकिन भारत को सस्ते दामों पर तेल मिल रहा था, तो उसने अमेरिका की धमकियों को नज़रअंदाज़ करके अपना काम जारी रखा। 

इस समय भारत के सभी देशों से ठीक ही रिश्ते हैं, केवल चीन और पाकिस्तान को छोड़कर और शेख हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश भी कट्टर इस्लामी बन गया है, तो वो एक दुश्मन पड़ोसी भी तैयार है। किन्तु वैश्विक मंच पर भारत की छवि बढ़ रही है, और भारत ने कई देशों के साथ रूपए में व्यापार करना भी शुरू कर दिया है, जो अमेरिकी डॉलर को सीधी चुनौती है। ऐसे में अमेरिका नहीं चाहता कि भारत में अधिक मजबूत सरकार रहे, उसने अपने पिट्ठू को बिठाने के लिए तमाम कोशिशें की थी, लेकिन वैसा हो नहीं पाया। यही कारण है कि अमेरिका अक्सर मनघडंत रिपोर्ट्स जारी करता रहता है कि भारत में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता है, भारत में भुखमरी पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान से भी अधिक है।  

ये सभी रिपोर्ट्स सरकार पर दबाव बनाने के लिए होती हैं और विपक्ष भी इन्हे हाथों हाथ लेता है। वरना बांग्लादेश-पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान में अल्पसंख्यकों की हालत देखने के बाद कोई भी व्यक्ति भारत को अल्पसंख्यकों का स्वर्ग ही कहेगा। वहीं, जिस अफगानिस्तान को भारत ने भर-भरकर अनाज भेजा है, उससे अधिक भुखमरी भारत में हो, ये बात भी कुछ गले नहीं उतरती। किन्तु ये तमाम बातें सरकार के खिलाफ नैरेटिव फैलाने के लिए होती हैं, जो अमेरिका बखूबी करता आया है, आवश्यकता है तो भारतीय जनता को समझने की। 

किसे सत्ता में लाना चाह रहा था अमेरिका?

डोनाल्ड ट्रम्प  और माइक बेंज के इन बयानों ने भारत में विदेशी दखलअंदाजी की पुष्टि कर दी है। अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अमेरिका की पिछली सरकार ने भारत में सत्ता परिवर्तन कराने की योजना बनाई थी। जब ट्रम्प आरोप लगाते हैं कि बाइडेन प्रशासन प्रधानमंत्री मोदी के अलावा किसी और को सत्ता में लाना चाहता था, तो यह सवाल उठता है कि वह 'कोई और' आखिर कौन था? विपक्षी नेताओं की लगातार हो रही विदेशी यात्राएँ और भारत विरोधी तत्वों से उनकी नजदीकियाँ इस पूरे मामले को और भी संदेहास्पद बना देती हैं।

 

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