
नई दिल्ली : इस समय विश्व में कंप्यूटर विज्ञान की एक शाखा पर जबरदस्त चर्चा चल रही है, वो है कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)। मनुष्य तेजी से अपनी बुद्धि का विकास तो कर ही रहा है, किन्तु अब वो अपने श्रम और समय को बचाने के लिए मशीनों को बुद्धिमान बनाने में लगा हुआ है।
जैसे कुछ देशों में ड्राइवर लेस कारें चलने लगी हैं, जिसमे आपको सिर्फ एक बार अपने गंतव्य की जानकारी देनी होती है, उसके बाद वो कार अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए आपको सुरक्षित आपकी मंजिल तक पहुंचा देती है। भारत में भी अलेक्सा (Alexa) नामक एक प्रोडक्ट काफी पॉपुलर हो चुका है, जो आपके सवालों का जवाब भी देता है, मौसम की जानकारी, ताज़ा समाचार, संगीत आदि भी एक वॉइस कमांड पर उपलब्ध करा देता है।
आधुनिक समय में मशीनों को बुद्धि देने की यानी AI की अवधारणा 1950 के दशक में पहली बार सामने आई थी, जब अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक जॉन मैकार्थी (John McCarthy) ने डार्टमाउथ वर्कशॉप (Dartmouth workshop) में पहली बार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शब्द दिया, जो आज दुनियाभर में लोकप्रिय हो चुका है। किन्तु क्या इससे पहले मनुष्यों ने बुद्धि वाली मशीनों के बारे में नहीं सोचा था ? या प्राचीन भारत में ऐसी तकनीक मौजूद थी ?
AI का अगर सरल भाषा में अर्थ निकाला जाए, तो इसे एक ऐसी तकनीक कहा जा सकता है, जो मशीनों को अपनी बुद्धि से सोचने-समझकर निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करती है। हालाँकि, इसके लिए एक बार इंसानी कमांड की आवश्यकता होती है। इसके कुछ उदाहरण प्राचीन भारत में देखने को मिलते हैं।
हालाँकि, आधुनिक समय के बुद्धिजीवी इसे पौराणिकी (Mythology) या कल्पना मान सकते हैं, किन्तु इससे एक तथ्य तो स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में जो कल्पना कर ली गई थी, उसे मूर्त रूप लेने में आज 4000 से 5000 साल लग चुके हैं। रावण का विमान बिना सारथि के चल सकता था, और ड्राइवर लेस गाड़ियां उसी कल्पना का साकार रूप हैं। आज दुनिया भी ऐसे अस्त्रों पर काम कर रही है, जो अपना लक्ष्य भेदकर नष्ट होने के बजाए वापस आ जाएं। पहले ये मंत्र शक्ति से होता था, अब कमांड से होगा, वैसे मंत्र और कमांड दोनों ध्वनि ही हैं, कमांड की ही तरह मंत्र भी लिखा जा सकता है और बोला भी जा सकता है।
अब यदि इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो भी प्राचीन भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी कुछ अवधारणाएं और तकनीकें मौजूद थीं, जो आज के आधुनिक AI के सिद्धांतों से मेल खाती हैं। हालांकि उस समय इसे AI के रूप में नहीं देखा जाता था, लेकिन उनके विचार और कार्य विधियों में कुछ ऐसे बौद्धिक तत्व थे, जो आज की तकनीकी दुनिया में समानांतर दिखाई देते हैं।
AI की बुनियाद में गणित: प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने कई ऐसे गणितीय सिद्धांतों का विकास किया, जो आज के कंप्यूटर विज्ञान और AI के लिए आधार बने हैं। जैसे, आर्यभट ने शून्य (0) और दशमलव (। ) (Decimal) का सिद्धांत दिया, और भास्कराचार्य ने गोलाकार त्रिकोणमिति (Trigonometry) की संकल्पना दी, जो गणना और डेटा प्रोसेसिंग में उपयोगी साबित हुई। इन गणितीय धारा-प्रवाहों ने आगे चलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एल्गोरिदम और डेटा स्ट्रक्चर्स के रूप में अपना रूप लिया।
स्वचालन (Automation) का सिद्धांत: प्राचीन भारतीय समाज में यांत्रिक और स्वचालित मशीनों का प्रयोग किया जाता था। उदाहरण के तौर पर, प्राचीन यांत्रिक घड़ियाँ, जलघंटियाँ, और स्वचालित खिलौने, जैसे मकेनिकल बर्ड्स और गाड़ियों का निर्माण हुआ था। ये विचार आज के रोबोटिक्स और AI सिस्टमों के प्रोटोटाइप की तरह थे, जहां मशीनों को इंसानों के कार्यों को खुद से करने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
मानव-रोबोट संवाद (Human-Machine Interaction): महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में ऐसी कथाएँ मिलती हैं जहां देवता या अन्य शक्तियाँ किसी खास उद्देश्य के लिए यांत्रिक या आभासी रूप से जीवित अस्तित्वों को नियंत्रित करती हैं। इन कथाओं में भी कहीं न कहीं इंसान और मशीन के बीच संवाद और कार्यों का समन्वय किया गया है। जैसे, रामायण में मायावी बाण (illusionary arrows) का प्रयोग किया जाता था, जो आज के AI के टूल्स जैसे हो सकते हैं, जो विश्लेषण और निर्णय लेने में मदद करते हैं।
यदि प्रश्न किया जाए कि आज हम AI का इस्तेमाल कैसे करते हैं ? तो इसका उत्तर होगा कि पहले एक डिवाइस बनाया जाए, फिर उसे कमांड दी जाए, जिसके माध्यम से वो काम कर सके। अब इस डिवाइस को यदि हम यंत्र (Machine/Instrument) कहें और मंत्र को कमांड (Command) तो क्या गलत होगा ?
बिलकुल नहीं।।! क्योंकि, ये स्वर विज्ञान (Phonetics) के अंतर्गत आता है। आज एलियंस या दूसरी दुनिया के जीवों से संपर्क साधने के लिए वैज्ञानिक, ध्वनि तरंगों (Sound Waves) का ही उपयोग कर रहे हैं, जैसा हमने कई Science Fiction फिल्मों में देखा भी है, भारत की ही एक फिल्म 'कोई मिल गया' का उदाहरण ले लीजिए, जिसमे एलियंस के लिए Sound Waves भेजी जाती हैं।
भारत में इसके ऊपर एक पूरा ग्रन्थ लिखा हुआ है, 'शिव स्वरोदय'। जिसके माध्यम से सांसों की गति और स्वर की स्थिति को जानकर, जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। इसका प्रयोग प्राचीन भारत में संगीत, भाषा विज्ञान, वास्तुकला, चिकित्सा, और आध्यात्मिकता सहित कई क्षेत्रों में किया जाता था।
असल में स्वर, सिर्फ ध्वनि या शब्द नहीं हैं, ये एक कम्पन (Vibration) हैं, एक किस्म की तरंगें हैं, जो इच्छित परिणामों के लिए कमांड की तरह काम करती हैं। भारत में तो समय के हिसाब से अलग-अलग संगीत भी बनाए गए हैं, जैसे राग भैरव सुबह के लिए उपयुक्त है, वहीं, राग मालकौंस आधी रात के बाद गाया जाता है। राग दीपक शाम के समय गाने का नियम है, कहा जाता है कि इस राग में आग पैदा करने की शक्ति है। वहीं, राग मल्हार को बरसात के लिए गाया जाता था। यानी सिर्फ sound vibration के कमांड से अनुकूल परिणाम पा लेना।
सिर्फ ध्वनि के द्वारा इच्छित परिणाम पाने का ये विज्ञान मौजूद तो अब भी है, किन्तु बहुत कम लोग इसके शिक्षक बचे हैं और बहुत ही कम लोग इसका अभ्यास करते हैं। सालों बाद जब कोई विदेशी वैज्ञानिक इस पर मुहर लगाएगा, तब शायद हम इस पर विश्वास करें कि स्वर या कमांड की शक्ति क्या होती है ?
ध्वनि चिकित्सा (Sound Therapy) के बारे में आपने सुना ही होगा, जो कई बीमारियों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। असल में वो तरंगें (Vibrations) ही होती हैं, एक विशेष प्रकार की कमांड, जिसे विशेष प्रकार की बीमारी को ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है। साउंड थेरेपी पर JMIR publications, National Library of Medicine आदि में कई रिसर्च पेपर प्रकाशित हो चुके हैं, जो इसके प्रभाव को स्वीकारते हैं। हालाँकि, उनका ये भी कहना है कि अभी इस क्षेत्र में बहुत सी संभावनाएं हैं, जिन्हे खोजा जाना बाकी है। हो सकता है कि आने वाले समय में इसी Voice Command के माध्यम से और भी कई तरह के काम हों। आज AI टूल्स में भी Voice Command का ऑप्शन आ चुका है, जो शुरू में केवल लिखित में दिया जाता था।
सोलोमन द्वीप, ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में मौजूद एक छोटा द्वीप है, यहाँ के लोग अधिक पढ़े लिखे भी नहीं हैं। किन्तु शायद वे इस Command की अवधारणा को समझ चुके हैं। हालाँकि वे उसका इस्तेमाल सिर्फ एक ही चीज़ में कर पाते हैं, कारण वही है, रिसर्च की कमी। यहाँ के आदिवासी लोग, किसी पेड़ को काटने के बजाए, उसके आस-पास इकठ्ठा होकर उसे जी भरकर गालियां देते हैं, या यूँ कहें कि उसे Negative Command देते हैं, जिसका असर होता है और वो पेड़ कुछ दिनों में खुद ब खुद सूखकर गिर जाता है। इससे भी आप ध्वनि की, कमांड की शक्ति को पहचान सकते हैं।
ध्वनि की इस विशेषता को बताने के पीछे औचित्य ये था कि जब ध्वनि से लोग ठीक हो सकते हैं, पेड़ सूख सकते हैं, तो फिर मंत्रों की ध्वनि से इच्छित परिणाम क्यों हासिल नहीं हो सकते ? और क्या ये AI का उदाहरण नहीं है, Alexa भी Voice Command पर काम करती है और ड्राइवर लेस कार भी। भारत को भी यदि इस क्षेत्र में आगे बढ़ना है, तो उसके पास ज्ञान का अकूत भंडार है, आवश्यकता है तो केवल रिसर्च की।