
डिप्रेशन एक ऐसी मानसिक परेशानी है, जो एक बार किसी को हो गई तो इससे निकल पाना उतना ही कठिन हो सकता है, जितना की इसका आसानी से शिकार हो जाना होता है इससे लगातार लोग उदासी, दुःख, निराशा जैसी परेशानियों से घिरे हुए होते है, उन लोगों का मन किसी भी काम को पूरा करने में नहीं लगता है, ये लोग अपने कामों से दूर भागने लग जाते है, ऐसे में इनकी मानसिक स्थिति और भी ज्यादा बदतर तो हुई चली जाती है। इस परेशानी से बाहर आने के लिए लोग तरह तरह के इलाज करवाते है। कई बार तो उन्हें परेशानी से छुटकारा मिल जाता है, लेकिन इसके बारें में समय से पता न करें तो इंसानों की जाएं जोखिम में पड़ जाती है, जिसकी वजह से लोग न तो सही तरह से जी पाता और न ही इस परेशानी से बाहर आ पाता है। ऐसे में उस व्यक्ति के जीवन पर बहुत ही ज्यादा गहरा असर होने लग जाता है, जिसकी वजह से डिप्रेशन से ग्रसित लोगों का मन किसी भी काम में नहीं लगता है।
डिप्रेशन में जाने वाले लोगों के शरीर में कई तरह के लक्षण दिखाना शुरू हो जाते है, यदि आपके साथ भी ऐसा हो रहा है तो आपको भी सावधान रहने की जरूरत है…
इस बीमारी में व्यक्ति को किसी भी तरह की कोई ख़ुशी नहीं होती, किसी भी काम को करने में मन नहीं लगता, सब कुछ अधूरा अधूरा सा लगता है। शरीर में ऊर्जा की कमी तेजी से देखने के लिए मिलती है, थकान, घबराहट महसूस होने लग जाती है, बिना किसी कारण के शरीर सुस्त होने लग जाता है। इस बीमारी से ग्रसित लोगों को खाने पीने का भी मन नहीं करता है, उन्हें कोई भी नई चीज करना पसंद नहीं होती।
नींद की समस्याएं: डिप्रेशन की बीमारी में लोगों की आँखों से नींद पूरी तरह से उड़ जाती है, उन्हें रात रात भर नींद नहीं आती है, तो कई बार ऐसा भी होने लग जाता है कि दिन भर सोते रहते घर के बाहर भी न निकलना, लोगों के बीच उठाना बैठना कम देना। ऐसे लोगों को अकेला रहना ही अच्छा लगता है।
दर्द और शारीरिक समस्याएं: यदि कोई व्यक्ति डिप्रेशन की परेशानी से जूझ रहा है तो जाहिर कि उसके पूरे शरीर में कई तरह के दर्द भी होने लगेंगे, उन्हें अजीब अजीब सा महसूस होने लग जाएगा। इस बीमारी से ग्रसित लोगों का समय से काम करने का मन नहीं होता है।
दिमागी संतुलन खो देना: कई लोगों का कहना है कि डिप्रेशन की परेशानी कई कारणों से हो सकती है, इसमें दिमाग से लेकर शरीर तक में अलग अलग तरह के परिवर्तन देखने के लिए मिल रहा है। दिमाग पर गहरे असर की वजह से लोग अपना मासिक सन्तुल खोने लग जाते है। उन्हें कुछ भी ठीक ढंग से याद नहीं रहता की वो क्या कर रहे क्या करना चाहते है।
यदि आप भी इस तरह की बीमारी से निजात पाना चाहते है, तो आप किसी नजदीकी डॉक्टर से सम्पर्क कर सकते है, इतना ही नहीं यदि कोई इस बीमारी का इलाज करवा रहे है तो आपको उचित समय पर इलाज और दवाइयों का सेवन करना होता है। डिप्रेशन का इलाज और बचाव दोनों ही ज़रूरी हैं। इलाज में मनोचिकित्सा, दवाइयाँ और जीवनशैली में बदलाव शामिल हो सकते हैं, जबकि बचाव में तनाव कम करना, स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और सामाजिक समर्थन शामिल है।
मनोचिकित्सा: इसमें संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी
इस तरह से थेरेपी करवाने से जो डिप्रेशन के लक्षणों को कम करने और जीवन में सुधार करने में भी सहायता मिलती है।इतना ही नहीं इसके साथ आप अपनी जीवनशैली में परिवर्तन करके इन चीजों का भी उपयोग कर सकते है…
दवाइयाँ: अवसादरोधी दवाएं (Antidepressants) डिप्रेशन के लक्षणों को कम करने के लिए लाभ लदायक साबित होती है, लेकिन इन्हें डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए।
जीवनशैली में बदलाव: यदि आप या आपके घरमे कोई भी व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है तो उनके लिए आप इस आर्टिकल में दिए हुए उपाए को भी अपना सकते है।
नियमित रूप से व्यायाम करना: व्यायाम करने से शरीर में एंडोर्फिन (Endorphins) नामक रसायन का उत्पादन होना शुरू हो जाता है, जो मूड को अच्छा करने का काम करना शुरू कर देता है।
पूर्ण रूप से लें नींद: डिप्रेशन का शिकार होने वाले लोगों को इस बात का भी ध्यान रखना जरुरी है कि उन्हें अपनी नींद जरूर पूरी करें, इससे आपको डिप्रेशन की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा।
स्वस्थ आहार का सेवन करना: संतुलित आहार लेने से शरीर को बहुत ही जरुरी और पोषक तत्व मिलते हैं, जो डिप्रेशन के लक्षणों को कम करने का काम भी करते है। यदि आप भी तनाव से भरी हुई नौकरी कर रहे है तो आपको सबसे पहले आज से ही योग, ध्यान, और अन्य तनाव कम करने वाली तकनीकों का अभ्यास करने से तनाव को कम करने में सहायता मिलता है। दोस्तों और परिवार के साथ वक़्त बिताने से सामाजिक समर्थन भी मिल जाता है, जो डिप्रेशन के लक्षणों को कम करने में सहायता प्रदान करता है।
देखभाल के विभिन्न स्तरों पर उपचार:- डिप्रेशन को लेकर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) ने अपने शोध में दावा किया है कि डिप्रेशन के मरीजों को किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए…
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर 1 (एकल चिकित्सक क्लिनिक): सामान्य चिकित्सक डिस्टीमिया, मिश्रित चिंता अवसादग्रस्तता विकारों और हल्के अवसाद का निदान और उपचार कर सकता है, जिसमें शारीरिक शिकायतें हों या न हों, जैसा कि पहले के खंडों में पहले ही विस्तार से बताया जा चुका है। उपचार में एक तीव्र चरण शामिल है, जिसके दौरान छूट प्रेरित होती है और आमतौर पर 6 सप्ताह तक चलती है और एक निरंतरता चरण, उसी दवा की कम खुराक के साथ जिसके दौरान छूट संरक्षित होती है और आमतौर पर 6 महीने तक चलती है। रखरखाव चरण, जिसमें लिथियम और सोडियम वैल्प्रोएट जैसे मूड स्टेबलाइज़र शामिल हैं, आवर्ती अवसादग्रस्तता एपिसोड वाले रोगियों के लिए आरक्षित है, 2-5 साल तक चल सकता है और आदर्श रूप से स्तर 4 पर होना चाहिए।
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल स्तर 2 (6-10 बिस्तरों वाला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र): इसके अलावा, इस स्तर पर आत्महत्या के जोखिम वाले रोगियों को आपातकालीन अस्पताल में भर्ती, करीबी पर्यवेक्षण और उपचार प्रदान किया जा सकता है।
चिकित्सक उपरोक्त के अलावा शराब से प्रेरित और शराब से जुड़े अवसादग्रस्तता विकारों का निदान और उपचार कर सकता है।
तृतीयक स्वास्थ्य सेवा स्तर 4 (100 और उससे अधिक बिस्तरों वाला जिला अस्पताल):
स्तर 4 पर उपलब्ध मनोचिकित्सक अवसादग्रस्तता विकारों के पूरे स्पेक्ट्रम को सफल उपचार प्रदान कर सकता है। मनोवैज्ञानिक लक्षणों के साथ या बिना गंभीर अवसाद के लिए उपचार शुरू करने वाले मनोचिकित्सकों के पास कई दवाएं, विभिन्न प्रकार के मनोचिकित्सा दृष्टिकोण, इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी), और अन्य उपचार पद्धतियां (जैसे, प्रकाश चिकित्सा) होती हैं जिनका उपयोग अकेले या संयोजन में किया जा सकता है।