
भारत, जहाँ सदियों से शारीरिक स्वास्थ्य और आयुर्वेद पर बल दिया जाता रहा है, वहीं मानसिक स्वास्थ्य लंबे समय तक एक उपेक्षित विषय रहा है। हालांकि, पिछले एक दशक में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता में बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। कोरोना महामारी, जीवनशैली में बदलाव, शहरीकरण, बढ़ता तनाव, और डिजिटल युग ने मानसिक स्वास्थ्य को एक वैश्विक चर्चा का विषय बना दिया है, जिसमें भारत भी पीछे नहीं है।मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषाविश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, “मानसिक स्वास्थ्य केवल मानसिक बीमारी की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक रूप से कार्य कर सकता है और अपने समुदाय में योगदान कर सकता है।” इसमें भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक भलाई शामिल होती है।
आंकड़ों की दृष्टि सेराष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, भारत की 13.7% जनसंख्या किसी न किसी मानसिक विकार से ग्रसित है। NCRB 2023 के आंकड़ों के अनुसार, हर दिन औसतन 35-40 लोग आत्महत्या करते हैं, जिनमें से अधिकांश युवा वर्ग से आते हैं।WHO का अनुमान है कि 2030 तक मानसिक बीमारियों के कारण होने वाला वैश्विक बोझ भारत में सबसे अधिक हो सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य के प्रमुख कारण :
भारत में मानसिक बीमारी को अब भी एक 'कमजोरी' या 'पागलपन' की दृष्टि से देखा जाता है। लोग मानसिक चिकित्सकों के पास जाने से कतराते हैं क्योंकि उन्हें समाज द्वारा ठुकराए जाने का डर रहता है।इस मानसिकता के कारण रोगी समय पर इलाज नहीं ले पाते, जिससे समस्याएं गंभीर रूप ले लेती हैं। ग्रामीण भारत में यह स्थिति और भी चिंताजनक है।
सकारात्मक बदलाव और बढ़ती जागरूकता :
1. सेलिब्रिटी भूमिका : दीपिका पादुकोण, जिन्होंने अवसाद से जूझने के अपने अनुभव को सार्वजनिक किया, आज Live Love Laugh Foundation के ज़रिए मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैला रही हैं।अनुष्का शर्मा, वरुण धवन, और हृतिक रोशन जैसे कलाकारों ने भी इस विषय पर खुलकर बात की है।
2. शिक्षा प्रणाली में मानसिक स्वास्थ्य : कई स्कूल अब काउंसलर नियुक्त कर रहे हैं ताकि छात्रों को तनाव, परीक्षा का डर, और आत्मसम्मान जैसी समस्याओं से निपटने में मदद मिल सके।
3. सरकारी प्रयास : राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) 1982 में शुरू किया गया था, लेकिन अब इसे और अधिक सशक्त रूप में लागू किया जा रहा है। आयुष्मान भारत योजना में मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल किया गया है। 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम लागू किया गया, जिसमें रोगियों को कानूनी अधिकार दिए गए हैं।
4. डिजिटल हेल्थ प्लेटफ़ॉर्म : YourDOST, BetterLYF, MindPeers, iWill Therapy जैसे प्लेटफ़ॉर्म मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं ऑनलाइन प्रदान कर रहे हैं, जिससे सुविधा और गोपनीयता दोनों बनी रहती है।मीडिया और मानसिक स्वास्थ्यसमाचार चैनल, वेब सीरीज और फिल्मों में भी मानसिक स्वास्थ्य को अब अधिक सजीवता और संवेदनशीलता के साथ दिखाया जा रहा है। Dear Zindagi, Taare Zameen Par, Tamasha, और Chhichhore जैसी फिल्मों ने मानसिक स्वास्थ्य की जटिलताओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। कार्यस्थल और मानसिक स्वास्थ्य कॉर्पोरेट जगत में भी अब ‘वर्कप्लेस वेलनेस’ की अवधारणा बढ़ रही है।
कंपनियां : कर्मचारियों के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता कार्यक्रम (EAP) चला रही हैं। ऑफिस में मेडिटेशन रूम, स्ट्रेस-बस्टर एक्टिविटी, और वर्क-लाइफ बैलेंस पर ध्यान दे रही हैं।
महामारी के दौरान लोगों को : नौकरी छूटने,रिश्तों में दरार,एकाकीपन,और मृत्यु के भय का सामना करना पड़ा। इस संकट ने यह स्पष्ट कर दिया कि मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है।
मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की चुनौतियाँ
संभावित समाधान
भविष्य की दिशाभारत में मानसिक स्वास्थ्य एक सामाजिक आंदोलन बनने की ओर अग्रसर है। पहले जहाँ लोग अपने अनुभव छिपाते थे, अब वे सोशल मीडिया पर खुलकर बात कर रहे हैं। स्कूल, ऑफिस, अस्पताल, मीडिया – हर जगह यह विषय चर्चा में है।सरकार, नागरिक समाज और प्राइवेट क्षेत्र के सम्मिलित प्रयास से भारत आने वाले वर्षों में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सशक्त और समावेशी प्रणाली विकसित कर सकता है।