भारत के चारों तरफ मौजूद हैं दुश्मन, यदि युद्ध हुआ तो क्या होगा?

बीते कुछ वर्षों में भारत के पड़ोसी मुल्कों में भारी उथलपुथल और नाटकीय सत्ता परिवर्तन देखने को मिले हैं, जिसका सीधा असर भारत पर भी पड़ा है। पाकिस्तान-चीन के साथ अब बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव्स जैसे पड़ोसी देशों से भी भारत के रिश्ते बिगड़ रहे हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर विषय है।

भारत के चारों तरफ मौजूद हैं दुश्मन, यदि युद्ध हुआ तो क्या होगा?

चारों तरफ दुश्मनों से घिरे भारत के लिए पैदा हुईं नई मुश्किलें

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Highlights

  • दुश्मन देशों से घिरा भारत।
  • पड़ोसी मुल्कों में सत्ता परिवर्तन का भारत पर असर।
  • भारत को घेरने की तैयारी में चीन।

नई दिल्ली : पड़ोसी को प्रथम मित्र माना जाता है, फिर चाहे बात किसी व्यक्ति विशेष की हो, राज्य की हो या देश की।  यदि आपके पड़ोस में कोई उथल-पुथल चल रही है, तो आप भी उससे अछूते नहीं रह सकते।  मौजूदा समय में भारत की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है।  भारत के पड़ोस में शत्रु बढ़ते जा रहे हैं, जिससे सीमा पर तनाव, आतंकवाद, वैश्विक मंच पर घेराबंदी जैसी कई समस्याएँ पैदा हो रही हैं। 

दरअसल, बीते कुछ सालों में भारत ने तेज़ी से तरक्की की है, जो भारत विरोधियों को पच नहीं रहा है।  विगत 10 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था 2014 के 2.04 ट्रिलियन डॉलर से 93% बढ़कर 3.93 ट्रिलियन डॉलर हो गई है।  वहीं, हमारा देश अर्थव्यवस्था के मामले में 10वें स्थान से 5वें स्थान पर आ चुका है और बहुत तेज रफ़्तार से हम तीसरे स्थान की तरफ बढ़ रहे हैं।  किन्तु बीते कुछ समय में भारत के आसपड़ोस में जिस तरह की स्थितियां बनी हैं, उसने इस रफ़्तार पर ब्रेक लगाने का काम किया है।

दरअसल, भारत की भूमि सीमा सात देशों - पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश से मिलती है।  वहीं, जलीय सीमा के लिहाज से श्रीलंका और मालदीव्स छोटे देश भी भारत के पड़ोसी माने जाते हैं।  लेकिन, चिंता की बात ये है कि इनमे से अधिकतर देश आज भारत के शत्रु बन चुके हैं।  पाकिस्तान तो अस्तित्व में आने के समय से ही भारत का शत्रु रहा है, चीन की कहानी भी लगभग समान ही है, किन्तु नेपाल, बांग्लादेश और मालदीव्स भी अब भारत विरोधी गुट में शामिल हो चुके हैं।

इसमें पड़ोसी देशों में हुए तख्तापलट या सत्ता परिवर्तन का भी बहुत बड़ा हाथ है।  गौर करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि कोई भारत विरोधी शक्ति भारत के आसपास अपने मोहरे बैठना चाहती है, ताकि वक़्त पड़ने पर भारत की घेराबंदी की जा सके।

कैसे भारत के शत्रु बने पड़ोसी देश :

पाकिस्तान : 1947 में भारत से अलग होकर इस्लामी मुल्क बने पाकिस्तान की दुश्मनी तो पैदाइशी है।  तीन युद्धों में मात खाने के बाद भी पाकिस्तान लगातार भारत विरोधी साजिशों में लगा रहता है।  कभी सीमा पर संघर्षविराम का उल्लंघन, कभी कश्मीर में आतंकवाद, तो कभी भारत के मुस्लिमों को मजहब के नाम पर भड़काकर भारत के ही खिलाफ खड़ा करने की उसकी कोशिशें लगातार जारी हैं।

हालाँकि, इमरान खान के सत्ता में आने के बाद इसमें थोड़ी कमी देखी गई थी।  इमरान भारत से बातचीत के पक्षधर भी थे और उन्होंने 'प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया' (PTI) के साथ बातचीत में कहा भी था कि ''मैं भारत के साथ रिश्ते सुधारना चाहता था। '' किन्तु पाकिस्तान में प्रधानमंत्री कोई भी रहे, असल सत्ता शुरू से सेना के हाथ में रही है और जब सेना को लगा कि इमरान, दुश्मन देश भारत के साथ नरमी बरत रहे हैं, तो सेना ने 2022 में उन्हें गद्दी से हटा दिया।  इस तरह पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री इमरान भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। 

इसके बाद से फिर वही गतिविधियां शुरू हो गईं, जिसके लिए पाकिस्तान कुख्यात है।  बीते दिनों हमने देखा है कि ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाएं किस कदर बढ़ गईं थी, हर दूसरे-तीसरे दिन, किसी न किसी ट्रेन के डिरेल होने की खबर आती ही थी।  साथ ही पटरियों पर सिलेंडर, लोहे के खंबे, पत्थर आदि रखे मिलते थे, जो इसके पीछे साजिश होने का संकेत देते थे।  इसी बीच पाकिस्तानी आतंकी फ़रहतुल्लाह घोरी का एक वीडियो सामने आया था, जिसमे वो भारत में छिपे बैठे आतंकी तत्वों से इसी तरह ट्रेन डिरेल करने और कूकर बम का इस्तेमाल करके भारत में अराजकता फैलाने के लिए कह रहा था।  हालाँकि, कुछ समय से ये घटनाएं आश्चर्यजनक रूप से बंद हो गई हैं, किन्तु खतरा अब भी बना हुआ है।

बांग्लादेश : इसी तरह, बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को एक महत्वपूर्ण तख्तापलट हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता से हटाया गया। इसके बाद जो बांग्लादेश कभी भारत का मित्र हुआ करता था, वो दुश्मन बन बैठा।  इस तख्तापलट में भी विदेशी हाथ होने की आशंका जताई गई।  खासकर जब अमेरिकी डिप्लोमेट डोनाल्ड लू ने बांग्लादेश का दौरा किया।  डोनाल्ड लू, आंदोलन खड़े करके तख्तापलट करवाने के माहिर माने जाते हैं।  इमरान खान ने अपनी सत्ता जाने के पीछे डोनाल्ड लू को ही एक कारण बताया था।

बांग्लादेश में भी ऐसा ही हुआ, जहाँ छात्रों को भड़काकर सड़कों पर उतार दिया गया और शेख हसीना को देश छोड़कर भागना पड़ा।  शेख हसीना ने सत्ता गंवाने के बाद आरोप लगाया था कि अमेरिका, बांग्लादेश से सेंट मार्टिन द्वीप मांग रहा था, जिसे देने से उन्होंने इंकार कर दिया।  हसीना ने कहा था कि यदि वो ये द्वीप अमेरिका को सौंप देती तो तख्तापलट नहीं होता।    

तख्तापलट के बाद, बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई, जिसका सीधा असर भारत पर पड़ा। भारत और बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ व्यापारिक संबंध हैं, दोनों देशों के बीच कपड़ा, जूट, कृषि उत्पाद, चमड़े के सामान और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का आयात-निर्यात होता था। किन्तु, बांग्लादेश में अस्थिरता के कारण इन वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुई, जिससे भारतीय बाजार में इनकी कीमतों में वृद्धि देखी गई। 

इस सत्ता परिवर्तन का खामियाज़ा बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिन्दुओं को भी उठाना पड़ा।  उन पर हमले हुए, हिन्दुओं के मंदिरों में तोड़फोड़-आगज़नी की गई और उनकी बहन-बेटियों के साथ अनाचार हुआ।  कथित शांति के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस का झुकाव भी भारत से अधिक पाकिस्तान की तरफ दिखा।  अमेरिका की बाइडेन सरकार से यूनुस को मदद और फंडिंग मिली, किन्तु ट्रम्प ने सत्ता में आते ही उस फंडिंग पर रोक लगा दी।  हालाँकि, इसके बाद भी अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस का बेटा अलेक्स सोरोस भी बांग्लादेश पहुंचा और यूनुस से मुलाकात की। 

भारत के लिए ये भी खतरे की घंटी है कि जो सोरोस, एंटी इंडिया एजेंडा चलाने के लिए कुख्यात हैं, वो अब भारत के दुश्मन बन चुके बांग्लादेश से हाथ मिला रहे हैं।  वहीं, पाकिस्तानी एजेंसी ISI चीफ असीम मलिक ने भी बांग्लादेश का दौरा किया। जो बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद से किसी ISI चीफ का पहला दौरा था।  वहीं, बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद यूनुस सरकार ने कई आतंकियों को भी रिहा किया है, जो अब भारत के खिलाफ जहर उगल रहे हैं।

नेपाल :  नेपाल शुरू से दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र था, 2008 में वामपंथी उभार के बाद वहां कम्युनिस्ट विचारधारा पनपने लगी और आज वो भारत से दूर होते हुए चीन के करीब हो गया है। किन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि एक समय नेपाल भारत में विलय होना चाहता था। कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 'द प्रेसिडेंटियल इयर्स' में बताया है कि सन 1952 में नेपाल के राजा विक्रमशाह ने पंडित नेहरू के सामने नेपाल को भारत में मिलाने का प्रस्ताव रखा था। किन्तु नेहरू जी ने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय दबाव को इसका कारण बताया था।

लेकिन, आज वही नेपाल, भारत के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है, और वहां की केपी ओली शर्मा के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार दावा करती है कि भारत ने उसके क्षेत्रों पर कब्जा कर रखा है। बीते दिनों नेपाल ने एक विवादित नक्शा भी जारी किया था, जिसमे भारत के कई हिस्सों को उसकी सीमा में दर्शाया गया था। एक समय जो नेपाल खुद भारत का हिस्सा होना चाहता था, वो आज चीन के इशारे पर भारत विरोधी कार्यों का समर्थन करने लगा है। 

मालदीव्स : अब्दुल्ला यामीन और इब्राहिम मोहम्मद सोलीह जब तक राष्ट्रपति पद पर थे, तब तक भारत और मालदीव्स के रिश्ते अच्छे थे।  भारत ने छोटे द्वीप देश को करोड़ों रूपए की सहायता भी दी थी।  किन्तु, 2023 में जब मोहम्मद मुइज्जु ने पद संभाला, जिसके बाद उन्होंने 'इंडिया आउट' अभियान शुरू किया।  मुइज़्ज़ु को चीन समर्थक माना जाता है और भारत विरोधी।  हालाँकि, उनके इंडिया आउट अभियान से भारत को कोई खास फर्क नहीं पड़ा।  पर फ़रवरी 2025 में मालदीव्स ने चीन के साथ जो समझौता किया, उससे भारत की सुरक्षा चिंताएं अवश्य बढ़ गईं।

समझौते के अनुसार, चीन को मालदीव के जलक्षेत्र में खुफिया जानकारी एकत्र करने की मंजूरी दी गई, जिससे हिन्द महासागर में चीन मजबूत हो गया और ये भारत के लिए संभावित खतरा बन गया।  इस तरह भारत एक और पड़ोसी मुल्क से घिर गया।

इनके अलावा अफगानिस्तान और श्रीलंका में भी बेहद नाटकीय तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ।  हालाँकि, अफगानिस्तान को अनाज और अन्य मदद भेजकर भारत ने अपना दांव चल दिया, और दुश्मन (पाकिस्तान) का दुश्मन (अफगानिस्तान) दोस्त वाली नीति पर कदम बढ़ा दिए, आज तालिबान शासित अफगानिस्तान, भारत के शत्रु पाकिस्तान के लिए मुसीबत बना हुआ है और पाकिस्तान के डुरंड बॉर्डर पर उलझा होने के कारण, भारत में चिंताएं कुछ कम हैं।

वहीं, श्रीलंका में महिदा राजपक्षे को हटाकर राष्ट्रपति बने अनुरा दिसानायके का झुकाव चीन की तरफ माना जाता है।  हालाँकि, 2024 में सत्ता संभालने वाले दिसानायके ने अभी तक कोई भारत विरोधी बयान नहीं दिया है।  लेकिन चीन इस कोशिश में लगा हुआ है।  चीन की रणनीति रही है कि वो छोटे देशों को अपने कर्ज के जाल में उलझकर उनके संसाधनों का दोहन करता है और उन्हें अपने फायदे के लिए उपयोग करता है।  विश्व बैंक के मुताबिक, श्रीलंका पर चीन का 8. 54 बिलियन डॉलर का कर्ज है।

अमेरिकी इंटेलिजेंस रिपोर्ट का कहना है कि चीन, श्रीलंका में मिलेट्री बेस बनाने की फ़िराक में है।  चीन ने पहले ही श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों के लिए लीज पर ले रखा है और यदि वो द्वीपीय देश में राडार बेस बनाने में कामयाब हो जाता है, तो हिन्द महासागर में उसकी पकड़ मजबूत हो जाएगी, जो भारत के लिए सरदर्द बनी रहेगी।

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