
भारत के इतिहास में जब-जब महिला सशक्तिकरण की बात होती है, तब आनंदी गोपाल जोशी का नाम विशेष सम्मान के साथ लिया जाता है। वे केवल भारत की प्रथम महिला चिकित्सक ही नहीं थीं, बल्कि उन्होंने उस काल में एक स्त्री के अधिकारों, शिक्षा और आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम की जब समाज में महिलाओं के लिए शिक्षा भी वर्जित थी। उनका जीवन एक ऐसे संघर्ष और सफलता की कहानी है, जिसने आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
आनंदी गोपाल जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 को महाराष्ट्र के ठाणे जिले के कल्याण गांव में हुआ था। उनका मूल नाम यमुनाबाई था। महज 9 वर्ष की आयु में उनकी शादी गोपालराव जोशी से हो गई, जो एक प्रगतिशील विचारधारा के व्यक्ति थे और महिला शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। गोपालराव ने यमुनाबाई का नाम बदलकर "आनंदी" रखा और उन्हें शिक्षा दिलाने का बीड़ा उठाया। यह उस समय अत्यंत क्रांतिकारी कदम था जब बाल विवाह और महिला अशिक्षा आम सामाजिक बुराइयाँ थीं।
शिक्षा की कठिन राह : आनंदी का जीवन प्रारंभ से ही चुनौतियों से भरा रहा। 14 वर्ष की उम्र में उनका पहला बच्चा हुआ, जो जन्म के कुछ ही समय बाद अस्वस्थता के कारण चल बसा। इस दुखद घटना ने आनंदी को गहराई से प्रभावित किया। वे समझ गईं कि भारत में महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है और स्त्रियों के लिए महिला चिकित्सकों की जरूरत है। यहीं से उन्होंने डॉक्टर बनने का निश्चय किया – यह निर्णय उस युग में सामाजिक विद्रोह के समान था। उन्हें समाज के कट्टरपंथियों से आलोचना और तिरस्कार का सामना करना पड़ा। मगर उनके पति गोपालराव उनके सबसे बड़े सहायक बने रहे और उन्होंने अमेरिका जाकर डॉक्टर बनने का मार्ग सुझाया।
गोपालराव ने अमेरिका की एक महिला, थियोडिसिया कारपेंटर, से पत्राचार शुरू किया। थियोडिसिया आनंदी की जीवनी और लक्ष्य से प्रभावित हुईं और उन्होंने अमेरिका में उनके रहने और पढ़ाई का प्रबंध किया। आनंदी ने 1883 में, मात्र 18 वर्ष की आयु में, अकेले अमेरिका की यात्रा की, जो उस समय एक भारतीय महिला के लिए अभूतपूर्व साहसिक कार्य था।
डिग्री प्राप्ति और ऐतिहासिक उपलब्धि : अमेरिका में आनंदी ने पेंसिल्वेनिया के वूमेन्स मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेनसिल्वेनिया (Women’s Medical College of Pennsylvania) में दाखिला लिया। यह संस्थान महिलाओं के लिए विशेष रूप से चिकित्सा शिक्षा प्रदान करता था। 1886 में उन्होंने मात्र 21 वर्ष की उम्र में एम.डी. (MD) की डिग्री प्राप्त की, और इस प्रकार वे भारत की पहली महिला चिकित्सक बनीं। उनका थीसिस "ऑब्स्टेट्रिक्स इन एंशिएंट इंडिया" (प्राचीन भारत में प्रसूति विद्या) पर आधारित था, जिसमें उन्होंने भारतीय चिकित्सा पद्धतियों पर प्रकाश डाला।
डिग्री प्राप्त करने के बाद आनंदी भारत लौटीं और उन्हें कोल्हापुर के अल्बर्ट एडवर्ड हॉस्पिटल में महिला चिकित्सक के रूप में नियुक्त किया गया। दुर्भाग्यवश, अमेरिका में रहते हुए उन्हें क्षय रोग (टी.बी.) हो गया था। स्वास्थ्य लगातार गिरने के कारण वे लंबे समय तक चिकित्सा सेवा नहीं दे सकीं। 26 फरवरी 1887 को, केवल 22 वर्ष की आयु में, आनंदीबाई जोशी का निधन हो गया। उनका शरीर भले ही युवा अवस्था में दम तोड़ गया हो, लेकिन उनका विचार, संघर्ष और प्रेरणा अमर हो गई।
इतिहास में महत्व और योगदान :
महिला शिक्षा की अग्रदूत: आनंदीबाई जोशी ने यह सिद्ध किया कि यदि महिलाओं को उचित शिक्षा मिले, तो वे समाज की धारा को बदल सकती हैं। उन्होंने अनगिनत भारतीय महिलाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित किया।
सामाजिक प्रतिरोध का उत्तर बनकर उभरीं: उन्होंने समाज की परंपरागत सोच और पितृसत्ता का डटकर सामना किया। एक हिन्दू महिला का विदेश जाकर पढ़ाई करना उस समय के समाज में बड़ा मुद्दा था।
प्रथम भारतीय महिला डॉक्टर: उनका यह गौरवपूर्ण उपाधि आज भी भारतीय चिकित्सा शिक्षा के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय है।
पारिवारिक सहयोग का प्रतीक: उनके पति गोपालराव का योगदान दिखाता है कि यदि पुरुष साथी समर्थन दें, तो महिलाएँ कितनी ऊँचाइयों को छू सकती हैं।
सम्मान और स्मृतियाँ :
डाक टिकट: भारत सरकार ने 1962 में आनंदीबाई जोशी के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
जीवनी और साहित्य: उनके जीवन पर कई पुस्तकें और नाटक लिखे गए हैं, जिनमें "आनंदी गोपाल" नामक मराठी नाटक बहुत प्रसिद्ध है।
नामकरण: कई अस्पताल, मेडिकल संस्थान और विद्यालय उनके नाम पर रखे गए हैं।
फिल्म और टीवी: 2020 में “आनंदी गोपाल” नामक मराठी फिल्म आई, जिसने उनके संघर्ष और जीवन को बड़े पर्दे पर जीवंत किया।