
“स्वच्छता, स्वतंत्रता से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।” — महात्मा गांधी, यह कथन गांधीजी की दूरदर्शिता और स्वच्छता के प्रति उनकी गहन निष्ठा को दर्शाता है। स्वस्थ एवं रोगमुक्त जीवन के लिए ही नहीं, बल्कि एक गरिमापूर्ण मानव जीवन जीने के लिए भी उचित स्वच्छता और साफ-सफाई अत्यंत आवश्यक हैं।
स्वच्छता का महत्व कोई नया विचार नहीं है। प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजनाओं में भी स्वच्छता व्यवस्था को अत्यधिक प्राथमिकता दी गई थी। उस समय भी जल निकासी की सुव्यवस्थित प्रणाली और नगरों की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता था। विश्व की लगभग सभी संस्कृतियों और धर्मों में स्वच्छता को एक नैतिक सद्गुण माना गया है। इसके बावजूद भी कई देशों को अपने आर्थिक विकास के दौरान अस्वच्छता की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ा है।
वैश्विक स्तर पर स्वच्छता की स्थिति
वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के संयुक्त निगरानी कार्यक्रम (JMP, 2017) के अनुसार, विश्वभर में लगभग 2.3 अरब लोगों के पास बुनियादी स्वच्छता सेवाओं की उपलब्धता नहीं थी। औद्योगिक क्रांति के समय यूरोप के नगरों में व्याप्त अस्वस्थ वातावरण की ओर कई समाज सुधारकों ने ध्यान आकृष्ट किया था। यह स्थिति आज भी विश्व के कई हिस्सों में देखने को मिलती है।
भारत में भी स्वच्छता की कमी एक दीर्घकालीन समस्या रही है। वर्ष 2014 तक, आजादी के 67 वर्ष बाद भी, भारत में लगभग 10 करोड़ ग्रामीण और 1 करोड़ शहरी परिवारों के पास शौचालय की सुविधा नहीं थी। देश की लगभग 55 करोड़ जनता यानी आधी आबादी खुले में शौच जाने को विवश थी। वैश्विक स्तर पर खुले में शौच करने वाले लोगों में से 60 प्रतिशत केवल भारत में ही थे। भारत को इस अस्वच्छता की स्थिति से निपटने में अपनी GDP का लगभग 5.2 प्रतिशत खर्च करना पड़ता है (वॉटर एड और ऑक्सफोर्ड इकॉनॉमिक्स, 2016)।
स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत
इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, 2 अक्टूबर, 2014 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन का शुभारंभ किया था। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि – “अगर भारत के लोग मामूली खर्च पर मंगल ग्रह तक पहुंच सकते हैं, तो वे अपनी गलियों और कालोनियों को साफ क्यों नहीं रख सकते?” अपनी बात को जारी रखते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि यह मिशन केवल शौचालय निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक व्यवहार में बदलाव, जनभागीदारी, और ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन जैसे कई पहलुओं को समाहित करता है। इसका उद्देश्य केवल स्वच्छता का स्तर बढ़ाना नहीं, बल्कि देश के स्वास्थ्य संकेतकों में भी सुधार लाना है।
स्वच्छ भारत मिशन – ग्रामीण का लक्ष्य खुले में शौच को समाप्त करना और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है। इस मिशन के तहत महात्मा गांधी की 150वीं जयंती (2 अक्टूबर, 2019) तक इन लक्ष्यों को प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
स्वच्छ भारत मिशन के प्रमुख आयाम
1. समुदाय की भागीदारी: स्वच्छता की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए लाभार्थियों और समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है। शौचालयों के निर्माण में लोगों की वित्तीय एवं सामाजिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है।
2. लचीले विकल्प: मिशन के तहत तकनीकी और वित्तीय दृष्टिकोण से विभिन्न विकल्प उपलब्ध कराए गए हैं ताकि लाभार्थी अपनी आवश्यकताओं और संसाधनों के अनुसार शौचालयों का निर्माण कर सकें। इससे शौचालयों के सुरक्षित उपयोग और मल प्रबंधन को सुनिश्चित किया जा सके।
3. क्षमता निर्माण: आरंभिक स्तर पर आदतों में बदलाव लाने के लिए संस्थागत और जिला स्तर पर कार्यान्वयन एजेंसियों की क्षमताओं को सुदृढ़ किया गया है, जिससे मिशन को समयबद्ध तरीके से प्रभावी ढंग से क्रियान्वित किया जा सके।
4. व्यवहार में परिवर्तन: लोगों की सोच और व्यवहार को बदलना इस मिशन का एक प्रमुख लक्ष्य है। स्कूलों, आंगनबाड़ियों, सार्वजनिक स्थानों और घरों में स्वच्छता संबंधी जागरूकता बढ़ाने और व्यवहार परिवर्तन पर विशेष जोर दिया गया है। इसके साथ-साथ ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन को भी प्राथमिकता दी गई है।
स्वच्छ भारत मिशन: व्यापक प्रतिबद्धता और प्रभाव
1. व्यापक प्रतिबद्धता: स्वच्छ भारत कोष की स्थापना- स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत, सरकार ने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए 'स्वच्छ भारत कोष' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) को प्रोत्साहित करना और निजी संगठनों, व्यक्तियों तथा समाजसेवियों से स्वच्छता संबंधी प्रयासों में आर्थिक योगदान प्राप्त करना है। इससे मिशन में जनसहभागिता को मजबूती मिली है और यह एक जन-आंदोलन के रूप में उभरा है।
2. प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग: इस मिशन में सूचना प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया का अत्यंत प्रभावी उपयोग किया गया है। ये माध्यम नागरिकों को यह जानने में सहायता करते हैं कि भारत के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को शौचालय की सुविधा प्राप्त हो रही है या नहीं। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत लगभग 90 प्रतिशत शौचालयों को डिजिटल मानचित्रण के माध्यम से ट्रैक किया जा चुका है। इसके अलावा, कई मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किए गए हैं जो नगर निगमों का ध्यान अस्वच्छ इलाकों की ओर आकर्षित करते हैं, जिससे कार्यवाही तेज़ होती है।
3. प्रोत्साहन राशि और वित्तीय संरचना: ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण हेतु लाभार्थियों को ₹12,000 की प्रोत्साहन राशि दी जाती है, जिसमें जल संग्रहण व्यवस्था भी शामिल है। इस राशि के वितरण की संरचना निम्न प्रकार है:
सामान्य राज्यों में:
केंद्र सरकार का योगदान: 60%
राज्य सरकार का योगदान: 40%
केंद्र सरकार का योगदान: 90%
राज्य सरकार का योगदान: 10%
इसके अलावा, अन्य स्रोतों से अतिरिक्त आर्थिक योगदान की अनुमति भी दी गई है, जिससे मिशन को और अधिक बल मिला है।
4. वित्तीय आवंटन और उपयोग: वर्ष 2014-15 से अब तक, स्वच्छ भारत मिशन के लिए कुल ₹51,314.3 करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन किया गया, जिसमें से ₹48,909.2 करोड़ (लगभग 95.3%) की राशि पहले ही जारी की जा चुकी है। इसके अतिरिक्त, ₹15,000 करोड़ के अतिरिक्त बजटीय संसाधनों का प्रावधान भी किया गया, जिसमें से ₹8,698.20 करोड़ की राशि जारी हो चुकी है। इस प्रकार, केंद्र एवं राज्य सरकारों ने इस मिशन को मजबूत आर्थिक आधार प्रदान किया है।
5. उपलब्धियां और निष्पादन: सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप, भारत के 98.9% हिस्से को स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत लाया जा चुका है।अक्टूबर 2014 से जून 2019 तक पूरे देश में 9.5 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए जा चुके हैं। मिशन की शुरुआत में जहाँ प्रति वर्ष 50 लाख से कम शौचालय बनाए जा रहे थे, वहीं अब यह संख्या बढ़कर प्रति वर्ष 3 करोड़ से अधिक हो गई है।
6. खुले में शौच से मुक्ति (ODF) की दिशा में प्रगति: स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य उद्देश्य गांवों को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाना है। ODF का अर्थ है: गाँव या वातावरण में कहीं भी मल दिखाई नहीं देना। प्रत्येक परिवार और सार्वजनिक/सामुदायिक संस्थाएँ सुरक्षित मल निपटान तकनीकों का उपयोग करें।
स्वच्छ भारत मिशन केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन चुका है। यह भारत को स्वस्थ, स्वच्छ और गरिमापूर्ण बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इस मिशन के अंतर्गत की गई पहलों से न केवल लोगों की जीवनशैली में सुधार हुआ है, बल्कि यह सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन लाने का सशक्त माध्यम भी बना है। इसके माध्यम से भारत ने स्वच्छता के क्षेत्र में जो क्रांति आरंभ की है, वह आने वाले वर्षों में सतत विकास के लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने की दिशा में एक मजबूत आधार सिद्ध होगी।
स्वच्छ भारत मिशन में व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (IHHL) की कवरेज – राज्यों की स्थिति
वर्ष 2014-15 की तुलना में 2018-19 में अधिकांश राज्यों में व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (IHHL) की उपलब्धता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।अधिकांश राज्यों ने 100 प्रतिशत कवरेज का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है। हालांकि, कुछ राज्य अभी भी इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संघर्षरत हैं।गोवा में आईएचएचएल कवरेज सबसे कम है, इसके बाद ओडिशा और तेलंगाना का स्थान आता है। वहीं, कर्नाटक और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य 100 प्रतिशत कवरेज प्राप्त करने के बहुत करीब हैं। इस प्रगति ने यह सिद्ध किया है कि मिशन की नीतियों और वित्तीय सहयोग का व्यापक प्रभाव हुआ है।
राज्यों और उनके पड़ोसी राज्यों के बीच तुलनात्मक विश्लेषण
कुछ राज्यों और उनके पड़ोसी राज्यों के बीच आईएचएचएल कवरेज की तुलना प्रस्तुत की गई है। गोवा, जिसने एक उच्च प्रारंभिक आधार (baseline) से शुरुआत की थी, वहां भी केवल 70 प्रतिशत कवरेज ही प्राप्त हो सका है। इसके विपरीत, इसके पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र और कर्नाटक ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति दिखाई है। ओडिशा में अभी तक 90 प्रतिशत कवरेज का स्तर भी हासिल नहीं हो सका है, जबकि इसके पड़ोसी राज्य — आंध्र प्रदेश, झारखंड, और छत्तीसगढ़ — ने तेज़ प्रगति दर्ज की है। वहीं पश्चिम बंगाल ने वर्ष 2012-13 से अपने उच्च प्रारंभिक आधार से आगे बढ़ते हुए निरंतर सुधार बनाए रखा है।
इसके विपरीत, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य 2015-16 से इस दिशा में गति पकड़ने लगे हैं और सुधार की दिशा में कार्यरत हैं। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत व्यक्तिगत शौचालयों की उपलब्धता में देश भर के राज्यों ने अभूतपूर्व प्रगति की है। हालाँकि कुछ राज्य अपेक्षित लक्ष्य से पीछे हैं, परंतु समग्र दृष्टिकोण से मिशन ने स्वच्छता के क्षेत्र में सामाजिक और संरचनात्मक बदलाव लाने में सफलता प्राप्त की है। यह विश्लेषण यह दर्शाता है कि पड़ोसी राज्यों के बीच प्रगति की असमानता अभी भी एक चुनौती बनी हुई है, जिस पर लक्षित नीति और स्थानीय क्रियान्वयन के माध्यम से विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
अधिकांश राज्यों ने 100 प्रतिशत ओडीएफ (Open Defecation Free) स्थिति प्राप्त कर ली है, जबकि कुछ राज्य अभी भी इस लक्ष्य को पूरी तरह से हासिल नहीं कर पाए हैं। गोवा में ओडीएफ कवरेज सबसे कम है। इसके बाद ओडिशा, तेलंगाना और बिहार का स्थान आता है। वहीं, पश्चिम बंगाल और सिक्किम जैसे राज्य 100 प्रतिशत ओडीएफ स्थिति प्राप्त करने के बहुत निकट हैं। यह तुलना दर्शाती है कि देश के अधिकांश हिस्सों में स्वच्छता अभियान ने ज़मीनी स्तर पर ठोस प्रभाव डाला है।
स्वच्छ भारत मिशन की सफलता – केवल अवसंरचना नहीं, व्यवहार परिवर्तन भी आवश्यक
स्वच्छ भारत मिशन की सफलता सिर्फ अवसंरचना के निर्माण पर ही नहीं, बल्कि लोगों के व्यवहार में आए बदलावों पर भी निर्भर करती है। स्वतंत्र सत्यापन एजेंसी (IVA) द्वारा आयोजित राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण (NARSS) 2018-19 के अनुसार: सर्वेक्षण के समय 93.1 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को शौचालय की सुलभता प्राप्त थी। इनमें से 96.5 प्रतिशत परिवारों ने शौचालयों का नियमित उपयोग भी किया। इस सर्वेक्षण ने यह भी पुष्टि की कि पूर्व में ओडीएफ घोषित किए गए 90.7 प्रतिशत गांव, वास्तव में खुले में शौच से मुक्त हैं। यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि सर्वेक्षण किए गए 95.4 प्रतिशत गांवों में गंदगी बहुत ही कम थी और रुका हुआ पानी नाममात्र में पाया गया। यह आँकड़े यह स्पष्ट करते हैं कि अभियान ने ग्रामीण भारत में व्यवहारिक बदलाव को भी जन्म दिया है, जो इसके स्थायित्व की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।
ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) – स्वच्छता का दूसरा प्रमुख स्तंभ :
स्वच्छ भारत मिशन का दूसरा अहम घटक है – ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन (Solid and Liquid Waste Management - SLWM)। यह सामाजिक विकास के लिए विज्ञान-सम्मत अपशिष्ट निपटान प्रणाली की आवश्यकता को रेखांकित करता है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। इस दिशा में विभिन्न राज्यों ने अनेक महत्वपूर्ण पहलें की हैं, जिनमें शामिल हैं:
अपशिष्ट संग्रहण केंद्रों की स्थापना- मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन से संबंधित गतिविधियाँ, बायोगैस संयंत्रों का निर्माण, कम्पोस्ट खाद हेतु गड्ढों का निर्माण, कूड़े दानों की स्थापना, कचरे का संग्रहण, पृथक्करण और निपटान की प्रणाली, नालियों और खारे पानी के गड्ढों का निर्माण, सोख्ता गड्ढों तथा स्थिरीकरण तालाबों की स्थापना, इन सभी कार्यों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।
स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) की वास्तविक सफलता का मूल्यांकन उन सामाजिक-आर्थिक लाभों के आधार पर किया जाना चाहिए, जो इसके अंतर्गत की गई गतिविधियों से ग्रामीण जनसंख्या को प्राप्त हुए हैं। विशेष रूप से, बेहतर स्वच्छता का सीधा प्रभाव जनस्वास्थ्य संकेतकों पर देखा जा सकता है। भारत में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक अतिसार (डायरिया) है। वर्ष 2013 में बच्चों की कुल मृत्यु में 11 प्रतिशत मौतें केवल अतिसार के कारण हुई थीं। लेकिन पिछले चार वर्षों में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में अतिसार के मामलों में उल्लेखनीय कमी आई है, जो स्वच्छता में सुधार का सीधा परिणाम है।
मार्च 2014 में भारत के 50 प्रतिशत जिलों में व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालय (IHHL) का कवरेज 33.5 प्रतिशत (मध्य मान) से कम था। स्वच्छ भारत मिशन के प्रभाव का विश्लेषण स्वास्थ्य संकेतकों पर करने के लिए एक "डिफरेंस-इन-डिफरेंस (भिन्नता में भिन्नता)" पद्धति अपनाई गई है। इसके लिए जिलों को दो समूहों में बाँटा गया:
समूह A: वे जिले जहाँ 2015 तक IHHL कवरेज कम (मध्य मान से नीचे) था।
समूह B: वे जिले जहाँ कवरेज अधिक (मध्य मान से ऊपर) था।
चूँकि 2019 तक देश के लगभग सभी जिलों में IHHL कवरेज 100 प्रतिशत के करीब पहुँच चुका था (चित्रा 2 देखें), इसलिए 2015 से 2019 के बीच समूह A में कवरेज वृद्धि समूह B की तुलना में काफी अधिक रही। इसलिए यह अनुमान लगाया गया कि स्वास्थ्य प्रभाव भी समूह A में अधिक होंगे।
इस धारणा की पुष्टि के लिए निम्नलिखित स्वास्थ्य संकेतकों का अध्ययन किया गया: 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में डायरिया और मलेरिया के मामले
मृत शिशु जन्म (Stillbirth)
जन्म के समय कम वजन वाले शिशु (Low Birth Weight)
इस अध्ययन में पाया गया कि समूह A (कम कवरेज वाले जिले) इन सभी स्वास्थ्य समस्याओं से अधिक प्रभावित थे, जबकि समूह B (उच्च कवरेज वाले जिले) अपेक्षाकृत कम प्रभावित थे। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि देश में इन स्वास्थ्य समस्याओं के प्रमुख कारणों में स्वच्छता की कमी प्रमुख भूमिका निभाती है।
स्वच्छ भारत मिशन (SBM) के प्रभाव का विश्लेषण करते हुए यह देखा गया कि दोनों समूहों – पहले (कम IHHL कवरेज वाले जिले) और दूसरे (अधिक कवरेज वाले जिले) – में डायरिया, मलेरिया, मृत शिशु जन्म और जन्म के समय कम वजन के मामलों में उल्लेखनीय कमी आई है।
जन्म के समय कम वजन वाले शिशु:
यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि स्वच्छता में सुधार डायरिया और मलेरिया जैसे रोगों में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालांकि, मलेरिया और डायरिया में कमी के लिए अन्य कारकों जैसे कि:
मच्छरदानियों का वितरण:
जब भारत के अनेक राज्यों में उन्नत स्वच्छता व्यवस्था और 100 प्रतिशत खुले में शौच मुक्त (ODF) स्थिति हासिल की गई, तब डायरिया के मामलों में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। विशेष रूप से गुजरात, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में यह गिरावट महत्वपूर्ण रही। इसी प्रकार, इन राज्यों में मलेरिया, मृत शिशु जन्म और जन्म के समय कम वजन के मामलों में भी सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिला।
कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में बाल स्वास्थ्य और पोषण पर ओडीएफ स्थिति के प्रभाव को समझने के लिए एक स्वतंत्र अध्ययन करवाया। इस अध्ययन का उद्देश्य था कि स्वच्छता के कारण बाल स्वास्थ्य और पोषण में कैसे सुधार आता है। अध्ययन में गैर-ओडीएफ जिलों को भी शामिल किया गया ताकि भौगोलिक, सामाजिक-सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधताओं के बीच तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके। अध्ययन में यह पाया गया कि: जिन क्षेत्रों को ओडीएफ घोषित किया गया, वहाँ रहने वाले बच्चों और माताओं के स्वास्थ्य और पोषण के संकेतक गैर-ओडीएफ क्षेत्रों की तुलना में अधिक बेहतर और सकारात्मक थे। यह निष्कर्ष यह दर्शाता है कि स्वच्छता में सुधार, विशेषकर शौचालय की उपलब्धता और खुले में शौच की समाप्ति, बालकों और माताओं के स्वास्थ्य पर गहरा और सकारात्मक प्रभाव डालती है।
स्वच्छता और अतिसार (डायरिया) जनित बीमारियों से होने वाली मृत्यु दर के बीच संबंध को ध्यान में रखते हुए, नवीनतम आंकड़ों और साक्ष्यों के आधार पर स्वच्छ भारत मिशन के स्वास्थ्य लाभों का वैज्ञानिक अनुमान लगाया गया। स्वच्छता में व्यापक सुधार, विशेषकर ओडीएफ स्थिति की प्राप्ति, न केवल बीमारी की रोकथाम में सहायक है, बल्कि इससे भारत में जनसंख्या के स्वास्थ्य स्तर में समग्र सुधार होता है।