महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले कुछ दिनों से चल रही चुनावी हलचल कल यानि रविवार को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है । राज्य के 288 नगर परिषदों और नगर पंचायतों के नतीजों ने एक बार फिर साफ़ कर दिया है की जनता का झुकाव किस तरफ है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे व अजित पवार के नेतृत्व में महायुति ने विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाड़ी का सूपड़ा ही साफ़ कर दिया है। 288 में से 200 से अधिक पदों पर जीत हासिल कर एनडीए ने अपने शानदार प्रदर्शन को जारी रखा है। 2026 में होने वाले बृहन्मुंबई म्यूनिसिपल कॉर्पोरशन (बीएमसी) चुनावों के पहले इन चुनावों को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा था। साथ ही ये फडणवीस के लिए भी परीक्षा थी की वे सभी दलों को कैसे एक साथ लेकर चल सकते हैं।
नतीजों का समीकरण और महायुति का दबदबा
इन चुनावों में महायुति (भाजपा, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी) ने शहरी और ग्रामीण इलाकों में अपनी पैठ को और मज़बूत किया है। 288 में से 207 पदों पर महायुति के उम्मीदवारों ने जीत का परचम लहराया है। इसमें अकेले भारतीय जनता पार्टी ने 117 पदों पर कब्ज़ा जमाया है। वहीं शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भी अपने अपने स्तर पर बेहतर प्रदर्शन किया है। जहां शिवसेना ने 53 पदों पर विजय प्राप्त की, वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने 37 पदों पर जीत हासिल की। भाजपा ने पुणे और बारामती जैसे इलाकों में भी शानदार प्रदर्शन किया है।
इसके उलट उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी), शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) और कांग्रेस की महा विकास आघाड़ी मात्र 44 सीटों पर सिमट कर रह गई। इसमें कांग्रेस को 28, शिवसेना (यूबीटी) को 9 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) को मात्र 7 सीटें ही मिल सकी। कांग्रेस को उम्मीद थी की वो मराठवाड़ा और विदर्भ जैसे इलाकों में बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं, वहां भी उन्हें मुँह की खानी पड़ी। इन इलाकों में भी जनता जनार्दन ने महायुति की योजनाओं जैसे लाड़की बहिण योजना पर ज़्यादा भरोसा जताया है।
अब 15 जनवरी को होगा महामुकाबला
नगर परिषदों में इस भारी जीत ने महायुति के लिए एक टॉनिक का काम किया है, क्योंकि अब राज्य की नज़रें बीएमसी सहित बड़े 29 नगर निगम चुनावों पर टिकी हैं। राज्य के चुनाव आयोग ने घोषणा कर दी है की मुंबई, पुणे, नागपुर, ठाणे और कोल्हापुर जैसे बड़े शहरों में 15 जनवरी 2026 को मतदान होगा। बीएमसी की लड़ाई सबसे दिलचस्प होने वाली है। यह बड़े लम्बे समय से उद्धव ठाकरे की शिवसेना का गढ़ रहा है। लेकिन हाल ही के नतीजों को देखते हुए महायुति अपनी पूरी ताकत झोंकना चाहेगी और परिवर्तन लाना चाहेगी। चुनावों का नामांकन 23 दिसम्बर से शुरू हो रहा है, जो 30 दिसम्बर तक चलेगा। इसके चलते राज्य का सियासी पारा अभी और बढ़ने की संभावना है।
संदेश और संकेत
इन नतीजों ने साफ़ कर दिया है कि जनता स्थिरता और विकास को प्राथमिकता दे रही है। विपक्षी गठबंधन को आत्ममंथन करने की ज़रूरत है। यदि वे एकजुट होकर नये सिरे से सकारात्मक रणनीति नहीं बनाते, तो वे अपने अंतिम किलों को भी बचाना मुश्किल हो जायेगा। इन दलों को खासतौर पर ऐसे नेताओं अथवा प्रवक्ताओं से दूरी बनाने की ज़रूरत हैं, जो अपने दल अथवा गठबंधन का फायदा काम और नुकसान ही अधिक करवाता है। ऐसे लोगों के बयान अथवा विचार सिर्फ एक ख़ास किस्म के लोगों को ही पसंद आते हैं, शेष जनता उन बातों से कनेक्ट नहीं कर पाती है। 16 जनवरी को जब चुनावों के परिणाम घोषित होंगे, तभी पता चलेगा कि राज्य का असली सिकंदर कौन है।