कर्नाटक में तेज हुई सियासी हलचल, सीएम पद को लेकर मचा हंगामा

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस के भीतर खींचतान तेज हो गई है। डी.के. शिवकुमार के इशारों भरे बयान ने सत्ता परिवर्तन की अटकलों को बढ़ा दिया है। समर्थक ढाई साल बाद सीएम बदलने के वादे का दावा कर रहे हैं, जबकि अंतिम फैसला पार्टी हाईकमान पर निर्भर है।

कर्नाटक में तेज हुई सियासी हलचल, सीएम पद को लेकर मचा हंगामा

कर्नाकटक में बढ़ी सियासत की जंग, डी.के. शिवकुमार ने कसा तंज

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Highlights

  • कर्नाटक में सीएम पद को लेकर सिद्धारमैया और डी.के. शिवकुमार के बीच बढ़ा विवाद।
  • शिवकुमार के "शब्द की ताकत और वादा निभाने" वाले बयान ने सत्ता परिवर्तन की अटकलें बढ़ाईं।
  • ढाई साल बाद कर्नाटक में सीएम बदलने के फार्मूले पर कांग्रेस में शुरू हुआ मतभेद।

कर्नाटक की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है, जहां मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस के भीतर तनाव और शक्ति संतुलन की चर्चा तेजी पकड़ती जा रही है। इस बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्य के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार का एक इशारों भरा बयान हलचल मचा रहा है, जिसे सत्ता परिवर्तन की सुगबुगाहट से जोड़कर देखा जा रहा है। उनके बयान ने न केवल राजनीतिक गलियारों में नई बहस शुरू की है, बल्कि सिद्धारमैया सरकार की स्थिरता पर भी सवाल उठाए हैं।

कुर्सी को लेकर डी. के. शिवकुमार ने कसा तंज :

एक सार्वजनिक कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए डी.के. शिवकुमार ने कहा, "शब्द की ताकत ही दुनिया की असली ताकत है, और अपने वादे को निभाना सबसे बड़ी शक्ति है।"

यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब खुद शिवकुमार ने कई मौकों पर संकेत दिए हैं कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेतृत्व से मुख्यमंत्री पद के लिए ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले पर सहमति बनी थी। उनका यह बयान राजनीतिक संकेतों से भरा माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने बिना नाम लिए यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी हाईकमान को किए वादे को निभाना चाहिए।

इसके बाद उन्होंने ‘कुर्सी’ को लेकर एक हल्का-फुल्का लेकिन अर्थपूर्ण तंज भी कसा। मंच पर उनके पीछे खड़े समर्थकों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि “जो लोग मेरे पीछे खड़े हैं, उन्हें कुर्सी की कीमत नहीं पता।” इस टिप्पणी पर कार्यक्रम स्थल पर मौजूद लोग हंस पड़े, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे शिवकुमार के भीतर छिपी नाराज़गी का इशारा मान रहे हैं।

सत्ता परिवर्तन की चर्चा क्यों ?

कर्नाटक में सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच नेतृत्व को लेकर मतभेद कोई नई बात नहीं है। चुनाव जीतने के बाद, मुख्यमंत्री पद पर सहमति बनाने में कांग्रेस को काफी मेहनत करनी पड़ी थी और तब से ही दो-शक्ति केंद्रों की चर्चा जारी है। शिवकुमार समर्थकों का दावा है कि नेतृत्व ने उन्हें आश्वासन दिया था कि ढाई साल बाद सत्ता परिवर्तन होगा और वह मुख्यमंत्री बनेंगे।

हालांकि सिद्धारमैया का गुट इस समझौते को पूरी तरह खारिज करता रहा है, जिससे पार्टी के भीतर तनाव लगातार बना हुआ है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस हाईकमान 1 दिसंबर से पहले सत्ता परिवर्तन पर फैसला ले सकता है, क्योंकि मुद्दा अब खुलकर पार्टी के भीतर असंतोष का कारण बन रहा है।

दिल्ली में बढ़ी राजनीतिक हलचल :

पिछले कुछ हफ्तों में शिवकुमार के कई समर्थक विधायकों के दिल्ली पहुंचने और शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात करने से बदलाव की अटकलें और तेज हो गई हैं। वहीँ, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा है कि

“राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मैं मिलकर इसका समाधान निकालेंगे।” यह बयान संकेत देता है कि पार्टी इस मुद्दे को गंभीरता से देख रही है। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अंतिम निर्णय लेना हाईकमान का अधिकार है और वे उसके आदेश का सम्मान करेंगे।

उधर, शिवकुमार ने सार्वजनिक रूप से सीएम की कुर्सी के लिए अपनी दावेदारी का साफ तौर पर खंडन किया है। उनका कहना है, “मैंने कुछ नहीं मांगा। यह नेतृत्व का निर्णय है। मैं पार्टी को कमजोर नहीं दिखाना चाहता।”

हालांकि उनके तेवर और हालिया बयानबाज़ी इस बात का संकेत देते हैं कि अंदरखाने वे बेहद दबाव महसूस कर रहे हैं और समर्थक सक्रिय रूप से बदलाव की मांग उठा रहे हैं।

कर्नाटक सरकार इस समय स्थिर दिखती है, लेकिन कांग्रेस संगठन के भीतर जारी खींचतान आने वाले दिनों में बड़ा राजनीतिक बदलाव ला सकती है। जहां सिद्धारमैया सुशासन और विकास के एजेंडे पर आगे बढ़ना चाहते हैं, वहीं शिवकुमार अपने समर्थकों के दबाव और पहले किए गए वादों के कारण आक्रामक होते दिख रहे हैं। अब नज़रें पूरी तरह पार्टी हाईकमान पर हैं कि वह इस शक्ति संघर्ष का समाधान कैसे निकालता है।

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