प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के सबसे ऊँचे रेलवे ब्रिज का किया उद्घाटन, चिनाब पुल पर लहराया तिरंगा

चिनाब ब्रिज दुनिया का सबसे ऊँचा रेलवे ब्रिज है, जो जम्मू-कश्मीर को रेल नेटवर्क से जोड़ता है, इसे स्टील आर्क तकनीक से बनाया गया है और यह ब्लास्ट प्रूफ है।

प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के सबसे ऊँचे रेलवे ब्रिज का किया उद्घाटन, चिनाब पुल पर लहराया तिरंगा

पीएम मोदी ने किया चिनाब रेलवे ब्रिज का उद्घाटन

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Highlights

  • दुनिया का सबसे ऊँचा रेलवे ब्रिज, समुद्र तल से 359 मीटर ऊँचा है।
  • स्टील आर्क डिजाइन से बनाया गया है चिनाब ब्रिज।
  • 63mm ब्लास्टप्रूफ स्टील और आतंकी हमलों से भी सुरक्षित है चिनाब ब्रिज।

दुनिया का सबसे ऊंचा ब्रिज को जम्मू-कश्मीर की चिनाब नदी के ऊपर बनाया गया है, ये लोहे और सीमेंट से बना हुआ है आर्च ब्रिज है जो नदी से  359 मीटर ऊपर से गुजरता है, यानि कि एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ऊँचा, 1।3KM लम्बे इस ब्रिज में 469 मीटर का मेजर आर्ट है, जिसे बनाने में लगभग 1।5 हजार करोड़ लगे, ये बक्कल और  कौरी के बीच इस वैली को कवर करता है, जो कि एक बड़ा प्रोजेक्ट उपधामपुर, श्रीनगर और बारामुला रेलवे लिंक का भी पार्ट है। इसकी वजह से श्री नगर बाकि देशों के साथ भी आसानी से जुड़ेगा, जो कि शर्दियों में भारी बर्फ़बारी की वजह से अलग हो जाते है। श्रीनगर अब तक रेलवे लाइन से क्यों नहीं जुड़ा पाया था किस तरह की परेशानियां  इस ब्रिज को बनाने में आई आज हम इसी के बारें में बात करने वाले है। तो चलिए जानते है...? 

वर्ष 1890 की कहानी :

वर्ष 1890 में ब्रिटिश इंडिया के सियालकोट से होते हुए जम्मू तक की पहली रेलवे लाइन को शुरू किया गया, जिसे नार्थ रेज़िस्टेंड कंपनी ने बनाया, इसने ट्रेवल के साथ पंजाब एवं जम्मू के बीच शुगर ट्रेड को बढ़ाने में सहायता की। इसकी कामयाबी के बाद किंग ऑफ़ कश्मीर महाराजा प्रताप सिंह ने श्री नगर को इस रुट से जोड़ने के कई तरह से प्रयास किए। वर्ष 1902 में उन्होंने दो नए रास्तों का सर्वे करवाया एक रावलपिंडी से श्रीनगर और दूसरा जम्मू से श्रीनगर लेकिन दोनों रास्ते इतने लम्बे थे की बजट में नहीं थे, और इसके लिए नार्थ रेज़िस्टेंड रेलवे तैयार नहीं थी। वहीं महाराजा प्रताप सिंह अपनी अंतिम सांस तक इसके लिए प्रयास किए, लेकिन वो सफल नहीं हो सके और इसे 1925 में रद्द कर दिया गया। 

वर्ष 1947 का समय :

साल 1947 तक जम्मी के साथ एक ही रेलवे पॉइंट था जो कि सियालकोट से होते हुए जाता था देशभर के अलग अलग हिस्सों से लोगों जम्मू जाने के लिए सियालकोट से होते हुए जाना पड़ता था, लेकिन बटबारें ये साथ ये लिंक टूट गया, लेकिन इसे फिर से जोड़ने के लिए 1949 को जलंधर मुकेरियन लाइन को 44KM बढ़ाने का काम शुरू हुआ पठानकोट तक 3 वर्षों में ये रुट बनकर तैयार हो गया लेकिन कठवा तक पहुंचने में रेलवे को 14 साल और लगे, 1966 तक जहाँ रावी नदी को पार करना किसी चुनौती से कम नहीं था जिसकी वजह से इतना समय लग रहा था, वहीं 850 मीटर के दो रेलवे ब्रिज बनाए गए। वहीं वर्ष 1972 में ऐसे जम्मू तक बढ़ाया गया और आखिरकार जम्मू देश के रेल नेटवर्क से जुड़ पाया लेकिन ये मुमकिन हुआ आजादी के 25 वर्षों के बाद उसी वर्ष पहली पैसेंजर ट्रैन श्रीनगर एक्सप्रेस नई दिल्ली से जम्मूतवी के बीच चली, 1983 में इसे आगे उधमपुर की तरफ ले जाने की योजना बनी लेकिन बहुत समय की देरी के बाद E सेक्शन आखिरकार 2005 में शुरू हुआ। इसी के साथ वर्ष 1990 में श्रीनगर को भी इस लाइन के साथ जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया। जिसमे कुछ सर्वे भी किए गए जिनके अंतर्गत लम्बी सुरंग और ऊँचे पुलों का काफी सहारा लिया गया, इन्ही में शामिल था चिनाब ब्रिज, कई तकनीकी लाभ की वजह से भी ये रुट और भी ज्यादा काम में आया ये रुट लगभग 272 KM लम्बा होगा। जो कि उधमपुर से कटरा, बनिहाल, काजीगंज से होते हुए बारामुला में खत्म होगा, जिसकी टोटल प्रोजेक्ट कॉस्ट 41 हजार करोड़ थी, इस रुट में 38 टनल भी शामिल है जिनमे देश की सबसे लम्बी टनल T-50 भी शामिल है, जिसकी कुल लम्बाई है 12।7 किलोमीटर, इसके अलावा 927 बड़े और छोटे ब्रिज भी शामिल है। 

वर्ष 2008 से 2009 के बीच श्रीनगर से बारामुला 118 KM लम्बा रुट शुरू किया गया, इसके 4 वर्ष के बाद 2013 में काजीगंज से बनिहाल का 18KM लम्बा रास्ता शुरू कर दिया गया। इस सेक्शन में देश की सबसे लम्बी टनल पीर पंजाल टनल का नाम भी शामिल है। जो कि लगभग 11 km लम्बी बताई जाती है। वहीं वर्ष 2014 में उधमपुर से कटरा सेक्शन को शुरू किया गया जो कि 25 km लम्बा रुट था और फरवरी 2014 में 48KM लम्बा सम्भल से डांग तक का रास्ता शुरू हुआ। 

अब बात करते है चिनाब ब्रिज के बारें में , जी हाँ पीएम नरेंद्र मोदी शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर पहुंचे। उन्होंने यहां 272 किलोमीटर लंबे उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक के सबसे अहम पड़ाव कहे जाने वाले चिनाब रेलवे ब्रिज का उद्घाटन करते हुए तिरंगा लहराया। ये लगभग 1315 मीटर लंबा यह ब्रिज पूरे प्रोजेक्ट का सबसे कठिन और सबसे ज्यादा वक़्त लेने वाला भाग है। इस ब्रिज को बनाने के फैसले से लेकर उद्घाटन तक में 22 वर्ष का वक़्त लग गया। 

चिनाब ब्रिज की आवश्यकता क्यों पड़ी?:

जम्मू-कश्मीर में चिनाब ब्रिज की आवश्यकता इसलिए महसूस की गई क्योंकि भारतीय रेलवे की पहुंच अब तक केवल जम्मू क्षेत्र तक ही सीमित थी। राजधानी श्रीनगर तक ट्रेनें नहीं जाती थीं, जिससे यात्रियों को जम्मू तवी से आगे का लगभग 350 किलोमीटर लंबा सफर सड़क मार्ग से तय करना पड़ता था। सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण यह सड़क मार्ग कई बार बंद हो जाता है, जिससे लोगों को या तो मौसम साफ होने का इंतजार करना पड़ता या हवाई मार्ग का सहारा लेना होता। यही कारण है कि एक ऐसे ब्रिज की ज़रूरत थी, जो घाटी को रेल मार्ग से सीधे जोड़ सके।

चिनाब ब्रिज का निर्माण क्यों चुनौतीपूर्ण था?:

इस विशाल रेल परियोजना में सबसे बड़ी तकनीकी चुनौती थी चिनाब नदी पर एक पुल बनाना, क्योंकि यह नदी पहाड़ों के बीच गहरे खाई जैसे स्थानों में बहती है। ऐसे भूगोल में पुल बनाना बेहद जटिल कार्य था, जिससे इसके निर्माण में वर्षों लग गए।

चिनाब ब्रिज की प्रमुख विशेषताएँ: 

यह पुल कश्मीर घाटी और जम्मू के बीच एक सीधा रेल संपर्क स्थापित करेगा। जब यह पूरी तरह चालू होगा, तब पहली बार ऐसा होगा कि कोई व्यक्ति कन्याकुमारी से सीधी ट्रेन लेकर कश्मीर घाटी तक पहुंच सकेगा। इस ब्रिज के पूरा होने में दो दशक से अधिक समय लगा, लेकिन इसका महत्त्व अतुलनीय है।

ब्रिज निर्माण में अपनाई गई तकनीक : 

रेलवे टेक्नोलॉजी वेबसाइट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति अत्यंत कठिन है – कहीं संकरे रास्ते, कहीं घुमावदार मोड़ और कहीं गहरी खाइयाँ। आम तौर पर पुलों के निर्माण में कैंटिलीवर, सस्पेंशन या केबल तकनीक का उपयोग किया जाता है, लेकिन चिनाब ब्रिज के लिए स्टील आर्क डिज़ाइन चुना गया। यह डिज़ाइन कनाडा की कंपनी WSP ने तैयार किया।

इस पुल को 17 स्टील के खंभों पर खड़ा किया गया है जो एक बड़े धनुषाकार (आर्क) लोहे के बेस पर टिके हैं। यह आर्क नदी के दोनों ओर की पहाड़ियों पर आधारित है, जिसकी लंबाई 469 मीटर है। पुल के निर्माण के लिए लगभग 3000 फीट ऊँचाई तक केबल क्रेन्स का प्रयोग हुआ, जो चिनाब के दोनों किनारों पर लगाए गए थे।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निर्माण एजेंसियाँ:इस प्रोजेक्ट में कनाडा की WSP और जर्मनी की Leonhardt Andrä ने तकनीकी सलाहकार के रूप में भाग लिया। निर्माण की जिम्मेदारी कोंकण रेलवे ने ली, जिसमें भारत की AFCONS इंफ्रास्ट्रक्चर, Ultra Construction, दक्षिण कोरिया की एक इंजीनियरिंग कंपनी, और भारत की VSL ने मिलकर कार्य किया।

स्टील की गुणवत्ता और सुरक्षा मानक: 

कोंकण रेलवे के चीफ इंजीनियर आर।के। हेगड़े ने 2021 में पीटीआई को बताया था कि चिनाब ब्रिज में सबसे महत्वपूर्ण सामग्री स्टील थी। इसकी आपूर्ति भिलाई स्थित सेल (SAIL) प्लांट से की गई। कई स्टील प्लेट्स को गुणवत्ता की दृष्टि से खारिज भी किया गया, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पुल हर प्रकार की आपदा – विशेषकर आतंकवादी हमलों – को झेल सके।

इस उद्देश्य से हर स्टील पार्ट पर ब्लास्ट लोड टेस्टिंग की गई और 63 मिमी मोटी ब्लास्ट-प्रूफ स्टील का इस्तेमाल किया गया, ताकि विस्फोट के बावजूद ब्रिज की संरचना प्रभावित न हो। यहाँ तक कि विस्फोट की स्थिति में भी ट्रेन 30 किमी/घंटा की गति से सुरक्षित रूप से पुल पार कर सके – इसको ध्यान में रखकर पूरा डिज़ाइन तैयार किया गया।

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