
अमृतसर: पंजाब, जो सिख धर्म की समृद्ध परंपरा और गुरुओं की शिक्षाओं का प्रतीक है, आज एक ऐसी चुनौती का सामना कर रहा है, जो न केवल राज्य के सांस्कृतिक ताने-बाने को प्रभावित कर रही है, बल्कि पूरे देश की चेतना पर सवाल खड़े कर रही है। यह चुनौती है बड़े पैमाने पर सिखों का धर्मांतरण, जो लंबे समय से चिंता का विषय बना हुआ है।
हाल ही में सामने आई एक मीडिया रिपोर्ट ने इस मुद्दे की भयावहता को उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो वर्षों में पंजाब में 3.5 लाख से अधिक लोगों ने अपना धर्म बदलकर ईसाई धर्म अपना लिया। साल 2023-24 में 1.5 लाख लोग धर्मांतरित हुए, जबकि 2024-25 के अंत तक यह संख्या दो लाख तक पहुँच गई। यह आँकड़ा केवल संख्यात्मक वृद्धि नहीं है, बल्कि यह राज्य में ईसाई मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव और उनके द्वारा चलाए जा रहे धर्मांतरण के खुले खेल की ओर इशारा करता है।
3.5 lakh people converted to Christianity in Punjab over the past two years, with the Christian population in Tarn Taran increasing by 102%.
— Gagandeep Singh (@Gagan4344) January 20, 2025
According to a report published in Dainik Jagran based on the research of Sikh scholar Dr. Ranbir Singh, more than 3.5 lakh people in… pic.twitter.com/VaHBvS8tFU
तरनतारन जिले में पिछले 10 वर्षों में ईसाई समुदाय की जनसंख्या 6,137 से बढ़कर 12,436 हो गई, यानी 102% की वृद्धि। गुरदासपुर जिले में पिछले पाँच वर्षों में इस समुदाय की जनसंख्या में 4 लाख से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। ये आँकड़े स्पष्ट करते हैं कि सिखों का धर्मांतरण केवल संख्या नहीं, बल्कि पंजाब की सांस्कृतिक पहचान पर गहरा प्रहार है। पंजाब में ईसाई मिशनरियाँ खुलेआम धर्मांतरण का खेल खेल रही हैं। वे *चंगाई सभाओं* के माध्यम से लोगों को भ्रमित कर रही हैं। इन सभाओं में पादरी यह दावा करते हैं कि वे बीमारियों को ठीक कर सकते हैं, यहाँ तक कि मृतकों को भी जीवित कर सकते हैं। इन आयोजनों में पगड़ी पहने लोग शामिल होते हैं, ताकि सिख समुदाय के लोग उन्हें अपना समझें। यह पूरी प्रक्रिया एक सोची-समझी रणनीति के तहत चलती है, जिसमें लुभावने वादे और झूठे दावे किए जाते हैं।
इन कार्यक्रमों में बैंड और गानों के जरिए भीड़ को रिझाया जाता है। इसके बाद कुछ व्यक्तियों को सामने लाकर यह दावा किया जाता है कि वे पादरियों की प्रार्थना से चमत्कारिक रूप से ठीक हो गए। धीरे-धीरे लोग इनसे प्रभावित होकर धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, पंजाब में धर्मांतरण के इस खेल के लिए अमेरिका, पाकिस्तान और अन्य देशों से फंडिंग हो रही है। इन मिशनरियों को प्रशासन की ओर से अनुमति और सुरक्षा भी प्रदान की जाती है। बड़े-बड़े कार्यक्रमों का प्रचार सोशल मीडिया, बैनर और पम्पलेट्स के जरिए किया जाता है।
पंजाब में चर्चित पादरी बजिंदर सिंह जैसे लोग खुद को *प्रोफेट* बताते हैं। इनके यूट्यूब पर लाखों फॉलोवर्स हैं। इनके अलावा अमृत संधू, कंचन मित्तल और रमन हंस जैसे पादरी भी धर्मांतरण के अभियान में सक्रिय हैं। ये लोग दावा करते हैं कि वे केवल प्रार्थना करते हैं, लेकिन सवाल यह है कि अगर प्रार्थना के जरिए ही सब कुछ हो रहा है, तो धर्मांतरण क्यों हो रहा है?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतने बड़े पैमाने पर सिख धर्म पर हो रहे इस कुठाराघात पर देश में चर्चा क्यों नहीं हो रही? पंजाब में न कॉन्ग्रेस सरकार ने इस मुद्दे पर ध्यान दिया और न ही वर्तमान आम आदमी पार्टी की सरकार ने। यह चुप्पी केवल राजनैतिक उदासीनता नहीं, बल्कि सिख समुदाय के प्रति अनदेखी का प्रतीक है। कुछ कथित नेता दावा करते हैं कि वे सिख धर्म का सम्मान करते हैं, लेकिन जब जमीन पर इस धर्म की जड़ें काटी जा रही हैं, तब वे मौन क्यों हैं? सिख धर्म, जिसने दुनिया को सेवा, त्याग और प्रेम का संदेश दिया, आज अपनी ही भूमि पर संकट में है।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (SGPC) ने चार साल पहले ‘घर-घर अंदर धर्मसाल’ अभियान चलाकर धर्मांतरण को रोकने का प्रयास किया था। इसका उद्देश्य था सिख धर्म की शिक्षाओं को लोगों तक पहुँचाना, ताकि मिशनरियों के प्रभाव को रोका जा सके। लेकिन SGPC के प्रयास सीमित संसाधनों और प्रशासनिक सहयोग की कमी के कारण पूरी तरह सफल नहीं हो सके।
पंजाब में धर्मान्तरण का बड़ा रैकेट चलाने वाले और केवल छूकर लोगों की बड़ी बड़ी बीमारियां ठीक कर देने वाले पादरी बलजिंदर खुद एक बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं। उन्हें रेप के मामले में POCSO कोर्ट ने दोषी करार दिया है। यह मामला 2018 में जीरकपुर की एक महिला से जुड़े यौन उत्पीड़न के आरोपों से जुड़ा है। पादरी बजिंदर को जुलाई 2018 में दिल्ली एयरपोर्ट पर लंदन जाने वाली फ्लाइट में सवार होने की कोशिश करते समय गिरफ्तार किया गया था। जीरकपुर पुलिस ने पीड़िता की शिकायत पर चमत्कार के जरिए बीमारियों को ठीक करने का दावा करने वाले जालंधर के पादरी बजिंदर सिंह समेत कुल 7 लोगों पर केस दर्ज किया था।
फर्जी पादरी- #BajinderSingh रेप मामले में दोषी पाया गया है। ये ख़ुद को ईसा मसीह का मैसेंजर व्लैम करता था और आशीर्वाद से कैंसर, एड्स जैसी बीमारियां सही कर देता था। इस ढोंगी के भी भक्त हैं। ऐसे और भी फर्जी पादरी और बाबा हैं, जिनके सच बाहर आएँगे। सच को लंबे समय तक दबाया नहीं जा सकता pic.twitter.com/qq7UV0egKO
— Shyam Meera Singh (@ShyamMeeraSingh) April 1, 2025
पुलिस ने चार्जशीट में कहा था कि ताजपुर गांव में 'द चर्च ऑफ ग्लोरी एंड विज्डम' के पादरी बजिंदर सिंह ने जालंधर में नाबालिग पीड़िता के साथ गलत हरकतें की थीं। बजिंदर ने उसका फोन नंबर लेकर अश्लील मैसेज भेजने शुरू कर दिए. उसे चर्च में अकेले केबिन में बैठाना शुरू कर दिया। वहां वह उसके साथ गलत व्यवहार करता था. कपूरथला पुलिस ने मामले में स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) गठित की थी।
ईसाईयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस बीते काफी समय से व्हील चेयर पर थे, उनके घुटनों और कमर में तकलीफ थी। बीते दिनों उन्होंने अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था, जब उन्हें निमोनिया हो गया था, हाल ही में बीमारी के चलते उनका निधन हो गया है। इस पर सवाल उठाते हुए यूपी के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया ने कहा था कि भारत में जो लोग हालेलूईया करके सिर्फ छूकर बीमारी ठीक करने का दावा करते हैं, वे पोप फ्रांसिस की बीमारी दूर क्यों नहीं कर देते ? राजा भैया ने ये तंज भारत में मिशनरियों द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण को लेकर कसा था।
आदिवासियों और अशिक्षितों को ‘हालेलुइया’ का झांसा देकर करिश्मा दिखाने वाले भारत के ईसाई धर्मगुरुओं को चाहिए कि एक साथ जाकर वाटिकन सिटि में जीवन-मरण के बीच जूझ रहे पोप के सिर पर हाथ फेर कर उन्हें ठीक कर दें।
— Raja Bhaiya (@Raghuraj_Bhadri) February 23, 2025
वैसे भी पोप लंबे समय से wheel chair पर हैं और अब अस्पताल में काफ़ी गंभीर…
हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन, ये चार धर्म भारत की धरती पर जन्मे हैं। इन धर्मों ने पूरी दुनिया को शांति और प्रेम का संदेश दिया। लेकिन आज जब इन पर प्रहार हो रहा है, तो देश में इस पर चर्चा क्यों नहीं होती? क्या यह भारत की सांस्कृतिक आत्मा पर चोट नहीं है? पंजाब में धर्मांतरण का यह खेल केवल एक राज्य की समस्या नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए चेतावनी है। यह केवल धर्मांतरण नहीं, बल्कि एक समृद्ध परंपरा, एक पहचान और एक संस्कृति को मिटाने की कोशिश है।
यह वक्त है कि देश इस पर ध्यान दे। सिख धर्म, जिसने हर संकट में देश का साथ दिया, आज खुद संकट में है। अगर अब भी हम चुप रहे, तो गुरुओं की यह भूमि अपनी पहचान खो देगी। सवाल यह है कि क्या हम उस दिन का इंतजार करेंगे, जब यह समस्या इतनी गहरी हो जाएगी कि उसे संभालना असंभव हो जाए?