नई दिल्ली: इजराइल और हमास के बीच शुरू हुए युद्ध को एक साल से अधिक गुजर चुका है, किन्तु अब भी सुलह या संघर्षविराम की कोई गंजाइश नहीं दिख रही है। इजराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू कई बार दोहरा चुके हैं कि वे फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास को ख़त्म करके ही दम लेंगे। इस लड़ाई की शुरुआत 7 अक्टूबर 2023 को हुई थी, जब फिलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास ने इजराइल पर अचानक हमला करके 1200 से अधिक लोगों को मार डाला था और करीब 250 लोगों को किडनैप कर लिया था, जिसमे अधिकतर महिलाएं थीं। हमास के आतंकियों द्वारा इन महिलाओं के बर्बर बलात्कार किए गए, उन्हें नग्न सड़कों पर घुमाते हुए अल्लाहु-अकबर के नारे लगाए गए। जिसके बाद से इजराइल ने हमास को जड़ मूल से मिटाने की कसम खा ली और वो उसी काम में लगा हुआ है। हालाँकि, इस बीच हमास के समर्थन में कई मुस्लिम देश और कई इस्लामी आतंकी संगठन भी उतर आए, जिसमे लेबनानी आतंकी संगठन हिजबुल्लाह, फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद, यमन का हूथी उग्रवादी शामिल है। इसके अलावा ईरान भी खुलकर इजराइल के खिलाफ आतंकियों की मदद कर रहा है और उसने खुद भी लगभग 200 मिसाइलें इजराइल पर दागी हैं। इस बीच 57 इस्लामी देशों का संगठन OIC भी इजराइल मुद्दे पर लगातार बैठकें कर रहा है और कई देश इजराइल की निंदा भी कर रहे हैं। लेकिन, यहूदी देश इजराइल का कहना है कि जब तक वो अपने बंधकों को हमास से छुड़ा नहीं लेता और हमास को पूरी तरह नष्ट नहीं कर देता, तब तक जंग नहीं रुकेगी।
लेकिन, बहुत लोगों को नहीं पता होगा कि, इजराइल-फिलिस्तीन का मसला बहुत हद तक भारत-पाकिस्तान जैसा ही है। भारत 1947 में आज़ाद हुआ, बंटवारे के साथ और पाकिस्तान का जन्म हुआ, वैसे ही 1948 में अंग्रेज़ों ने फिलिस्तीन को तोड़ा और वहां पर यहूदियों के लिए एक नया देश इजराइल बना दिया। आज इजराइल, दुनियाभर के 1 करोड़ यहूदियों का एकमात्र देश है, लेकिन 57 मुस्लिम मुल्कों में से कई देश इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता ही नहीं देते हैं। उनका कहना है कि, इजराइल ने फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा कर रखा है। हालाँकि, तथ्य ये है कि यहूदी उस धरती पर पिछले 4000 वर्षों से रहते आ रहे हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व बने यहूदी मंदिर टेम्पल माउंट की पश्चिमी दिवार आज भी यरूशलम में मौजूद है। ये मंदिर यहूदियों ने तब बनाया था, जब ना ईसाई थे और ना ही इस्लाम था। इससे स्पष्ट होता है कि, वो स्थान यहूदियों का पुश्तैनी स्थान है। यहाँ तक कि बाइबिल में भी उस जगह को ईश्वर द्वारा यहूदियों को दी गई जमीन 'इजराइल' के नाम से उल्लेखित किया गया है। खुद, ईसा मसीह भी एक यहूदी थे।
700 ईस्वी में इस्लाम के उदय के बाद जब अरबों का आक्रमण शुरू हुआ, तो मध्य पूर्व के अन्य देशों के साथ इजराइल भी उसकी चपेट में आया। जैसे पारसियों का देश पर्शिया इस्लामी आक्रमण के बाद ईरान बना, ईसाई बहुल देश लेबनान आज मुस्लिम देश हो गया, प्राचीन बेबीलोन शहर इस्लामी देश इराक़ बन गया, वैसे ही इजराइल के साथ हुआ, और वो फिलिस्तीन बन गया, लेकिन सैकड़ों सालों के बाद यहूदियों ने वापस अपनी जमीन पर रहना शुरू किया, जिसे मुसलमान फिलिस्तीन कहने लगे थे। लेकिन, अगर इतिहास के पन्ने पलटकर देखा जाए, तो शुरुआत में तो मक्का-मदीना में भी यहूदी रहा करते थे। कुरान खुद कहती है कि, पैगबर मोहम्मद और उनके अनुयायियों ने वहां से यहूदियों को मार-मारकर भगाया, उनके मंदिर-धर्मस्थल तोड़ दिए और कइयों को क़त्ल कर दिया। इन लड़ाइयों में ग़ज़वा-ए-बनू क़ुरैज़ा, ग़ज़वा-ए-बनी क़ैनुक़ाअ़, ख़ैबर की लड़ाई जैसे युद्ध शामिल हैं। जब यहूदियों के खिलाफ मुसलमानों ने जंग छेड़ी और उनको अपना घर बार छोड़कर भागने के लिए मजबूर कर दिया। उस समय फिलिस्तीन का नामो निशान नहीं था, और ना ही ये दावा था कि 'इजराइल ने हमारी जमीन पर कब्ज़ा कर लिया है, इसलिए हम लड़ रहे हैं।' दरअसल, यहूदियों से लड़ना इस्लामिक धार्मिक किताबों में लिखा हुआ है।
हदीस की किताब सहीह बुखारी में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि, "क़यामत उस समय तक नहीं आएगी, जब तक तुम यहूदियों से युद्ध न कर लो और यहाँ तक कि जिस पत्थर के पीछे यहूदी छुपा हो, वह पत्थर न कहे कि ए मुसलमान! यह मेरे पीछे यहूदी छुपा है, इसकी हत्या कर दो।" (सहीह बुखारी-2926)। अब ये किताब 1948 के बाद तो लिखी नहीं गई, जब फिलिस्तीन-इजराइल में जमीनी विवाद शुरू हुआ और जिसका हवाला देकर आज खुद को पीड़ित और इजराइल को कब्जाधारी दिखाया जाता है। जबकि, इजराइल तो इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद के जन्म के पहले से ही यहूदियों की पुण्यभूमि रही है।
अब इसे भारतीय नज़रिए से देखें, तो 1947 में भारत का बंटवारा हुआ, मुसलमानों की मांग पर उन्हें पाकिस्तान दे दिया गया। लेकिन क्या पाकिस्तान को संतुष्टि हुई ? पैसों की पहली किश्त मिलते ही उसने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और काफी हिस्सा कब्जा भी लिया और आज भी वो बाकी कश्मीर के लिए लड़ता रहता है। भारत-पाकिस्तान के आतंकी, हमास/हिज्बुल्ला का समर्थन करते हैं और इजराइल पर उसके दावे को सही ठहराते हैं, वहीं बदले में हमास/हिज्बुल्ला जैसे अन्य संगठन कश्मीर को मुस्लिमों की धरती बताते हुए उसके लिए जिहाद को जायज कहते हैं। भारत के बारे में भी इस्लामी किताबों में ऐसी ही बातें लिखी हुईं हैं,। जिसे ग़ज़वा ए हिन्द कहा जाता है। इसके मुताबिक, इस्लामी फौजें कश्मीर के रास्ते हिंदुस्तान में दाखिल होंगी और भारत के राजा को जंजीरों में बांधकर भारत में इस्लामी शासन स्थापित करेंगी। आतंकी तो ये बात कहते ही हैं, और इसके लिए लगातार घाटी में निर्दोषों का खून बहाते रहते हैं, लेकिन मशहूर क्रिकेटर शोएब अख्तर (Shoaib Akhtar on Ghazwa e Hind) जैसे कई आम मुस्लिम भी भी इस कट्टर मानसिकता पर विश्वास रखते हैं, ग़ज़वा ए हिन्द पर उनका वीडियो अब भी इंटरनेट पर उपलब्ध है।
आईए मैं आपको मिलवाता हुँ गाज़ियाबाद-ए-हिंद के सिपाही से जो @shoaib100mph के वीडियो You Tube पर देखते है और उसे INDIA की Criticism उन्हें अचछी लगती है..।
— The Name Is RK ???????? (@AskAnything_RK) December 21, 2020
देश में जै-चंदों की कमी कहाँ है, शोएब अख्तर जैसे लोग #GhazwaEHind के बारे मे क्यों सोचते है उसका कारण एैसे लोग है ???? https://t.co/Org2FMGf7l pic.twitter.com/jORcWNtksv
जो पाकिस्तान, खुद भारत की जमीन छीनकर बना है, उसका ये आरोप है कि भारत ने कश्मीर की जमीन पर कब्जा कर रखा है। ये ठीक वैसा ही है, जैसे फिलिस्तीनी, हिज्बुल्ला, हमास और आतंकी संगठन कहते हैं कि इजराइल ने उनकी जमीन कब्जा रखी है। जबकि पहले से वहां इजराइल था, बीच में कुछ समय के लिए इस्लामी शासन आया और फिर यहूदियों ने अपनी जमीन ले ली। लेकिन जिस तरह फिलिस्तीन और हमास आए दिन इजराइल पर रॉकेट वगैरह दागते रहते हैं, वैसे ही पाकिस्तान आए दिन भारतीय सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन करता रहा है, और कश्मीर में आतंकवाद भड़काता रहता है। पहले भारत सरकार उसकी शिकायतें लेकर संयुक्त राष्ट्र (UN) में गुहार लगाया करता था, लेकिन अब भारत ने आतंकियों को उसी की भाषा में जवाब देना सीख लिया है। हालाँकि, इजराइल शुरू से ही ये बात सीखा हुआ था, जब उसके बनने के तुरंत बाद ही 6 इस्लामी देशों ने एकसाथ उस पर आक्रमण कर दिया था, अगर वो ना लड़ता, तो आज नक़्शे में इजराइल कहीं नहीं होता।