जिन्हे कोई इस्लामी देश शरण भी नहीं दे रहा, उन्हें मुफ्त सुविधाएं दे रही सुप्रीम कोर्ट..!

अवैध घुसपैठिए किसी भी देश के लिए दीमक की तरह होते हैं, क्योंकि सरकार के पास उनका कोई ब्यौरा नहीं होता, जिससे उनपर नज़र रखना मुश्किल हो जाता है। भारत में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जहाँ दंगों-हिंसा आदि में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं की भूमिका पाई गई है, इसके बावजूद भारतीय सुप्रीम कोर्ट करदाताओं के पैसे पर इन अवैध प्रवासियों को मुफ्त सुविधाएं देने के निर्देश दे रही है।

जिन्हे कोई इस्लामी देश शरण भी नहीं दे रहा, उन्हें मुफ्त सुविधाएं दे रही सुप्रीम कोर्ट..!

अवैध रोहिंग्याओं को सरकारी मदद देने के लिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका

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Highlights

  • भारत में रोहिंग्याओं को मुफ्त सुविधाएं।
  • भारत में रोहिंग्याओं को बसाने पर काम कर रहा सोरोस गैंग।
  • रोहिंग्याओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला।

नई दिल्ली: भारत में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या घुसपैठियों को सरकारी सुविधाएँ देने की माँग पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देशभर का ध्यान खींचा है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिया है कि यदि दिल्ली के सरकारी स्कूल रोहिंग्या बच्चों को प्रवेश देने से इनकार करते हैं, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं। यह फैसला एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान दिया गया, जिसमें रोहिंग्याओं के लिए शिक्षा, चिकित्सा और राशन जैसी सुविधाओं की माँग की गई थी।  

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कोटीश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि रोहिंग्या घुसपैठियों के बच्चों को उन सरकारी स्कूलों में प्रवेश के लिए आवेदन करना चाहिए, जिनके लिए वे पात्र हैं। यदि किसी भी कारणवश उन्हें एडमिशन नहीं मिलता है, तो वे दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं। यह फैसला सोशल जूरिस्ट अ सिविल राइट्स ग्रुप नामक संगठन की याचिका पर दिया गया, जिसने दावा किया था कि दिल्ली में सरकारी स्कूल आधार कार्ड न होने के चलते इन रोहिंग्या बच्चों को एडमिशन नहीं दे रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना दस्तावेज़ों के भी रोहिंग्या बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिलना चाहिए।

दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले पर क्या कहा था?

उल्लेखनीय है कि, इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि रोहिंग्या कोई शरणार्थी नहीं हैं और ना ही उन्हें सरकार ने यह दर्जा दिया है। हाई कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था और याचिकाकर्ताओं से कहा था कि वे गृह मंत्रालय के पास अपनी माँग लेकर जाएँ। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जब यह मामला पहुँचा, तो न्यायालय ने एक अलग रुख अपनाया और इन अवैध प्रवासियों को शिक्षा पाने के लिए हाई कोर्ट में अपील करने की अनुमति दे दी।

बता दें कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिले के अलावा, रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए मुफ्त चिकित्सा और राशन की माँग भी सुप्रीम कोर्ट में उठाई जा रही है। हाल ही में ‘रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ नामक एक NGO ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर केंद्र और दिल्ली सरकार को निर्देश देने की माँग की कि रोहिंग्या मुस्लिमों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज और सार्वजनिक राशन योजनाओं का लाभ दिया जाए। यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सुविधाएँ भारत के ही कई नागरिकों को मुफ्त में नहीं मिलतीं। एक आम भारतीय नागरिक को भी राशन कार्ड, आधार कार्ड और अन्य सरकारी दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है, लेकिन रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं रखी जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में यह भी माँग की गई है कि इन रोहिंग्या बच्चों को बिना आधार कार्ड या किसी अन्य पहचान-पत्र के भी कक्षा 10, 12 और स्नातक परीक्षाएँ देने की अनुमति दी जाए। यहाँ सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई शरणार्थियों को भारत में कोई विशेष सुविधा नहीं दी जाती, तो फिर रोहिंग्या घुसपैठियों को यह विशेषाधिकार क्यों मिल रहा है?

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यक वर्षों से बिना नागरिकता के जीवन गुजार रहे हैं। ये लोग नेहरू-लियाकत समझौते के तहत भारत में शरण लेने आए थे, घुसपैठिए नहीं थे। फिर भी, उन्हें किसी भी सरकारी सुविधा का लाभ नहीं दिया जाता। वे नागरिकता पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि दूसरी ओर अवैध रूप से भारत में बसे रोहिंग्या मुस्लिमों को मुफ्त शिक्षा, राशन और स्वास्थ्य सुविधाएँ देने की माँग जोर पकड़ रही है। म्यांमार से अवैध रूप से आए रोहिंग्या मुस्लिम वर्तमान में दिल्ली, जम्मू, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बंगाल जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। दिल्ली के शाहीन बाग, कालिंदी कुंज और खजूरी खास जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में इनकी बड़ी आबादी है। केंद्र सरकार कई बार इन घुसपैठियों को देश के लिए सुरक्षा खतरा बता चुकी है, लेकिन इसके बावजूद इनके समर्थन में याचिकाएँ दायर की जा रही हैं।

कोई देश नहीं देना चाहता रोहिंग्याओं को शरण :

  • म्यांमार से भागकर भारत में घुसे हैं रोहिंग्या
  • म्यांमार में बौद्ध समुदाय से हुई थी रोहिंग्या मुस्लिमों की लड़ाई
  • रोहिंग्याओं को रखना नहीं चाहते इंडोनेशिया-बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देश
  • रोहिंग्याओं को सुरक्षा के लिए खतरा मानता है बांग्लादेश
  • रोहिंग्याओं की मदद के लिए नहीं आया कोई इस्लामी देश
  • भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने दिया रोहिंग्या बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का आदेश

यहाँ गौर करने वाली बात यह भी है कि जब अमेरिका, यूरोप और यहाँ तक कि मुस्लिम देश भी रोहिंग्याओं को अपने यहाँ रखने को तैयार नहीं हैं, तो फिर भारत क्यों इन्हें अपनाए? बांग्लादेश ने इन्हें सुरक्षा के लिए खतरा बताया, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे इस्लामी देश भी इन्हें स्वीकार नहीं कर रहे, और अरब देशों ने भी इनका प्रवेश प्रतिबंधित कर रखा है। लेकिन भारत में इनके समर्थन में लगातार याचिकाएँ दायर की जा रही हैं और अब सुप्रीम कोर्ट भी इनके पक्ष में निर्णय सुना रहा है।

भारत में रोहिंग्याओं के लिए लड़ रहा सोरोस गैंग?

रोहिंग्याओं के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाले वकील और NGO भी संदेह के घेरे में हैं। इस मामले में कॉलिन गोंसाल्वेस नामक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्याओं की ओर से पैरवी की है। उनका NGO ‘ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क’ (HRLN) पहले भी अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की फंडिंग से जुड़ा रहा है। सोरोस वही व्यक्ति हैं, जो भारत में सत्ता परिवर्तन की खुली घोषणा कर चुके हैं। उनका उद्देश्य भारत की सरकार और उसकी सुरक्षा नीति को कमजोर करना बताया जाता है। ‘रोहिंग्या ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ (R4R) नामक NGO को भी नीदरलैंड स्थित ‘ग्लोबल स्टेटलेसनेस फंड’ से पैसा मिलता है, जिसे सोरोस के ‘ओपन सोसाइटी फाउंडेशन’ द्वारा वित्तीय सहायता दी जाती है। यही संगठन CAA विरोधी आंदोलनों में भी सक्रिय था।

अब बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत की जनता के टैक्स का पैसा अवैध रूप से रह रहे घुसपैठियों पर खर्च किया जाना चाहिए? अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार को रोहिंग्या बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का आदेश देता है, तो इसका बोझ आम नागरिकों को उठाना पड़ेगा। यह फैसला भारत के नागरिकों के साथ अन्याय नहीं होगा? भारत सरकार को चाहिए कि वह NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस) को फिर से लागू करे और इन घुसपैठियों को देश से बाहर करने की ठोस नीति बनाए। दुनिया के अन्य देश अगर अपने यहाँ अवैध प्रवासियों को बर्दाश्त नहीं करते, तो भारत क्यों करे?

 

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