
भारत की शिक्षा प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी प्रणालियों में से एक कही जाती है। लगभग 26 करोड़ छात्र और लाखों शिक्षक इस व्यवस्था के साथ आज भी जुड़े हुए है। हालांकि बीते कुछ दशकों में इसमें कई सकारात्मक बदलाव देखने के लिए मिले है, लेकिन आज भी यह प्रणाली कई जटिल चुनौतियों के साथ अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे है। इन समस्याओं के समाधान हेतु ठोस नीति, नवाचार और क्रियान्वयन की आवश्यकता है।
1. गुणवत्ता की कमी: भारत में शिक्षा की पहुँच भले ही उच्च लेवल तक पहुंच गई हो, लेकिन उसकी गुणवत्ता में आज भी बड़ा अंतर देखने के लिए मिलता है। सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में भारी अंतर देखने के लिए मिला है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो शिक्षक अनुपस्थित रहते हैं या अपर्याप्त रूप से प्रशिक्षित होते हैं।
2. भौतिक और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: आज भी देश के हजारों स्कूलों में शौचालय, पेयजल, पुस्तकालय, लैब और डिजिटल तकनीक जैसे बुनियादी सुविधाओं की पूर्ती आज भी नहीं हो पा रही है। महामारी के पश्चात ऑनलाइन शिक्षा का महत्व बढ़ा, लेकिन ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में डिजिटल डिवाइड एक बड़ी चुनौती बन चुकी है।
3. पाठ्यक्रम की अप्रासंगिकता: अनेक शिक्षाविदों का इस बारें में कहना है कि वर्तमान पाठ्यक्रम न तो उद्योग की आवश्यकताओं से मेल खाता है और न ही यह व्यावहारिक कौशल विकसित करता है। इसमें आलोचनात्मक सोच, नवाचार और उद्यमिता जैसे महत्वपूर्ण कौशलों की कमी देखने के लिए मिली है।
4. शिक्षकों की स्थिति और प्रशिक्षण: शिक्षकों का चयन, प्रशिक्षण और समय-समय पर मूल्यांकन एक बड़ी परेशानी बन चुका है। इतना ही नहीं अनेक शिक्षक पारंपरिक पद्धतियों में फंसे हुए हैं और उन्हें आधुनिक तकनीक या नवीन शिक्षण पद्धतियों की सूचना किसी को भी नहीं होती।
5. शिक्षा में असमानता: लिंग, जाति, आर्थिक स्थिति, क्षेत्रीयता और शारीरिक अक्षमता के आधार पर शिक्षा में व्यापक असमानताएँ मौजूद हैं। विशेष रूप से लड़कियों, आदिवासी और दलित छात्रों को समुचित अवसर आज तक नहीं मिल पाए है।
6. परीक्षा प्रणाली और रट्टा संस्कृति: भारत की शिक्षा प्रणाली अब भी परीक्षा-केंद्रित है। जहां विद्यार्थियों में सिर्फ अंकों की होड़ है, जिससे रचनात्मकता, तार्किक क्षमता और जीवन कौशल का विकास नहीं हो पाता और उन्हें आगे अपने जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है।
7. उच्च शिक्षा में समस्याएँ: उच्च शिक्षा संस्थानों में रिसर्च, नवाचार और गुणवत्ता में भारी गिरावट देखने के लिए मिली है। विश्व की टॉप 100 यूनिवर्सिटीज़ में भारत की कोई संस्था स्थान नहीं बना पाती। साथ ही, अधिकांश ग्रेजुएट्स उद्योगों के लिए तैयार नहीं हो पाते।
सम्भावित समाधान और सुधार के उपाय
1. गुणवत्ता उन्नयन के लिए मानकीकरण: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के माध्यम से गुणवत्ता शिक्षा के लिए एक समान मानदंड को समय से तय कर लिया जाए तो हर किसी के लिए बेहद ही अच्छा होगा । स्कूलों को समय-समय पर मूल्यांकन के अधीन रखा जाना चाहिए।
2. डिजिटल और भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश: भारत सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर स्कूलों में डिजिटल तकनीक (स्मार्ट बोर्ड, इंटरनेट, टैबलेट), स्वच्छता सुविधाएँ और पुस्तकालय जैसी सुविधाएँ और भी तेजी से विकसित करना चाहिए खासकर गांव जैसी जगह जहां आज भी सुविधा उचित ढंग से नहीं पहुंच पाती।
3. पाठ्यक्रम में सुधार: नई शिक्षा नीति के अनुरूप पाठ्यक्रम को अधिक व्यावहारिक, प्रोजेक्ट-आधारित और छात्र-केंद्रित बनाया जाना जरुरी है। स्थानीय भाषाओं में भी गुणवत्तापूर्ण पाठ्य सामग्री उपलब्ध करवाई जानी चाहिए।
4. शिक्षकों का सतत प्रशिक्षण: शिक्षकों के लिए समय-समय पर ऑनलाइन और ऑफलाइन प्रशिक्षण आयोजित किए जाने चाहिए। टीचिंग को एक प्रोफेशन की तरह देखा जाए और उसमें कौशल विकास को प्राथमिकता भी प्रदान की जानी चाहिए।
5. शिक्षा में समावेशिता: समाज के सभी वर्गों के लिए शिक्षा को सुलभ और समावेशी बनाया जाए। लड़कियों की शिक्षा, दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए विशेष स्कूल, छात्रवृत्ति, आवासीय विद्यालयों की स्थापना की जाए।
6. मूल्यांकन प्रणाली में बदलाव: परीक्षा पद्धति को बहुआयामी बनाया जाना चाहिए जिसमें परियोजना कार्य, कक्षा में भागीदारी, प्रेजेंटेशन और रचनात्मक लेखन को भी महत्व प्रदान किया जाए ।
7. उच्च शिक्षा में नवाचार और अनुसंधान: विश्वविद्यालयों को अधिक स्वतंत्रता और अनुदान दिए जाएँ ताकि वे अनुसंधान और स्टार्टअप संस्कृति को बढ़ावा दें। उद्योगों से साझेदारी कर व्यावसायिक शिक्षा को और भी अधिक मजबूती प्रदान की जानी चाहिए।
इतना ही नहीं भारत की शिक्षा प्रणाली में जहाँ एक ओर अपार संभावनाएँ हैं, वहीं चुनौतियाँ भी कुछ कम नहीं है। यदि इन समस्याओं का समाधान दूरदर्शिता, प्रतिबद्धता और सहभागिता से किया जाए, तो भारत विश्व की अग्रणी ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था बन जा ेगा। शिक्षा ही वह माध्यम है जो भारत को आत्मनिर्भर, समावेशी और समृद्ध बना सकती है।