भारत को दुनिया भर में “मंदिरों का देश” कहा जाता है। यहां हर राज्य, हर शहर और यहां तक कि छोटे-छोटे गांवों में भी कोई न कोई प्राचीन और रहस्यमयी मंदिर ज़रूर मिल जाएगा। इन मंदिरों की परंपराएं, रीति-रिवाज और मान्यताएं सदियों पुरानी हैं। जहां एक ओर मंदिरों में दिया गया प्रसाद ईश्वरीय आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है, वहीं दूसरी तरफ देश में ऐसे भी मंदिर हैं जहां का प्रसाद छूना या खाना सख्त मना है। यह परंपराएं केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि कई ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कारणों से जुड़ी हैं।
मंदिरों में प्रसाद का महत्व :
हिंदू धर्म में प्रसाद को केवल भोजन नहीं, बल्कि “ईश्वर का आशीर्वाद” माना जाता है। मंदिर में चढ़ाया गया प्रसाद भक्तों के बीच बांटा जाता है ताकि हर व्यक्ति को ईश्वरीय कृपा प्राप्त हो। माना जाता है कि प्रसाद ग्रहण करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। लेकिन कुछ मंदिर ऐसे भी हैं, जहां प्रसाद को ग्रहण करना वर्जित है, और इसके पीछे गहरी धार्मिक एवं तांत्रिक मान्यताएं हैं।
1. कोटिलिंगेश्वर मंदिर, कर्नाटक – एक करोड़ शिवलिंगों का पवित्र स्थल :

कर्नाटक के कोलार ज़िले में स्थित कोटिलिंगेश्वर मंदिर विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग समूह माना जाता है। यहां एक करोड़ (कोटि) से अधिक शिवलिंग स्थापित हैं। इस मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद जो प्रसाद दिया जाता है, उसे भक्त केवल प्रतीकात्मक रूप से स्वीकार करते हैं, परंतु न तो उसे खाते हैं और न घर ले जाते हैं। मान्यता है कि शिवलिंग पर अर्पित प्रसाद चंडेश्वर देवता को समर्पित होता है। यदि कोई मनुष्य इसे खा ले तो उसे अपशकुन माना जाता है। मंदिर से जुड़े पुजारी बताते हैं कि यह परंपरा त्रेतायुग से चली आ रही है और आज भी इसका कड़ाई से पालन किया जाता है।
2. नैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश – शक्तिपीठ की अनोखी परंपरा :

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर ज़िले में स्थित नैना देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक कथा के अनुसार, यहां मां सती की आंखें गिरी थीं, इसलिए यह स्थल देवी के “नयन” रूप में पूजनीय है। यहां प्रसाद को लेकर विशेष नियम हैं। भक्तों को माता नैना देवी को चढ़ाया गया प्रसाद मंदिर परिसर के भीतर ही ग्रहण करना होता है। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति इस प्रसाद को घर ले जाता है, तो उसके परिवार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यह परंपरा देवी की पवित्रता और स्थान की ऊर्जात्मक शक्ति से जुड़ी हुई है।
3. काल भैरव मंदिर, उज्जैन – शराब का प्रसाद, लेकिन भक्तों के लिए निषिद्ध :

मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित काल भैरव मंदिर अपनी रहस्यमयी और तांत्रिक परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यहां भगवान भैरव को शराब का प्रसाद चढ़ाया जाता है — जो पूरे भारत में अद्वितीय है। मान्यता है कि भैरव देवता को मदिरा अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की सभी बाधाएं दूर होती हैं। लेकिन इस प्रसाद को न तो कोई भक्त छू सकता है और न ही इसे घर ले जा सकता है। शराब केवल भगवान भैरव को अर्पित की जाती है और वे ही उसे “स्वीकार” करते हैं। श्रद्धालुओं के अनुसार, शराब अर्पण करने के बाद उसका स्तर रहस्यमयी रूप से घट जाता है, जो भैरव देव की दिव्य उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
4. कामाख्या देवी मंदिर, असम – तंत्र साधना का केंद्र :
असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर तंत्र साधना का सबसे प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां देवी कामाख्या के मासिक धर्म के दिनों में मंदिर के द्वार तीन दिनों तक बंद रहते हैं। इन दिनों में मंदिर के भीतर पूजा या प्रसाद ग्रहण करना पूर्ण रूप से वर्जित होता है। मान्यता के अनुसार इन तीन दिनों में देवी पृथ्वी रूप में रजस्वला होती हैं, इसलिए इस अवधि में मंदिर में पूजा या प्रसाद का वितरण अपवित्र माना जाता है। चौथे दिन “अंबुबाची मेला” के रूप में विशेष पूजा होती है, जिसमें प्रसाद का पुनः वितरण किया जाता है।
5. मेहंदीपुर बालाजी मंदिर, राजस्थान – भूत-प्रेत निवारण का केंद्र :
राजस्थान के दौसा ज़िले में स्थित मेहंदीपुर बालाजी मंदिर हनुमान जी के उस रूप को समर्पित है, जो नकारात्मक शक्तियों और बुरी आत्माओं से मुक्ति दिलाते हैं। यहां आने वाले भक्त अपने ऊपर से नकारात्मक ऊर्जा को हटाने के लिए विशेष अनुष्ठान कराते हैं। दरअसल मंदिर में चढ़ाया गया प्रसाद केवल बालाजी महाराज को अर्पित किया जाता है। भक्तों को इसे खाने या घर ले जाने की अनुमति नहीं होती। मंदिर प्रशासन के अनुसार, ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा घर तक जा सकती है। इसलिए यहां भक्त केवल प्रसाद को देखकर नमन करते हैं।