किसी काम नहीं आते है थानों में सड़ रहे वाहन, आखिर क्यों नहीं बदला भारत में ब्रिटिश कानून...?

भारत में पुलिस स्टेशनों में जब्त दोपहिया वाहन सड़ते रहते हैं, जिससे प्रतिवर्ष 20000 करोड़ का नुकसान होता है। इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 के तहत वाहनों को सबूत के रूप में जब्त किया जाता है। सरकारी वाहनों को जब्त नहीं किया जाता, पर निजी वाहन वर्षों तक सड़ते हैं। इस कानून में बदलाव जरूरी है।

किसी काम नहीं आते है थानों में सड़ रहे वाहन, आखिर क्यों नहीं बदला भारत में ब्रिटिश कानून...?

देशभर के थानों में सड़ रहे वाहनों से सरकार को हो रहा हर वर्ष भारी नुकसान

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Highlights

  • भारत में आज भी सड़ रहे दो और चार पहिया वाहन।
  • भारत में वाहनों के सड़ने से हर वर्ष लगभग 20000 करोड़ का नुकसान।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने कानूनों में बदलाव की बात कही, लेकिन इस एक्ट में सुधार अभी बाकी।

नई दिल्ली : सम्पूर्ण भारत में मौजूद अधिकांश पुलिस स्टेशन में आपको कई सारे दो पहिया वाहन सड़ते हुए देखने के लिए मिल ही जाते है, यहां खड़े वाहन पूरी तरह से सड़ जाते है, न तो इन्हे कोई भी वापस लेकर जाता है, यदि एक अनुमान लगाया जाए तो भारत को प्रत्येक वर्ष 20000 करोड़ रूपए तक की हानि होती है। वहीं ब्रिटिश पार्लियामेंट में वर्ष 1872 में ब्रिटिश एविडेंस एक्ट 1872 को पारित किया गया था, वहीं इसके मुताबिक अपराधी के पास बरामद की गई सारी चीजें सबूत (एविडेंस) के तौर पर दिखाई जाएंगी एवं उन्हें सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाएगा, इसके पश्चात उन्हें अदालत में पेश किया जाएगा। 

दरअसल वर्ष 1872 में साईकिल का भी अविष्कार नहीं किया गया था, फिर भी इस कानून को ब्रिटिश सरकार ने सम्पूर्ण भारत पर लागू किया एवं यही इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 बना। अब सोचने वाली बात तो ये है कि अपराधी ने अपराध किया, उसके बाद उसे हिरासत में लिया जाता है उस वक़्त अपराधी जिस भी गाड़ी में अपराध को अंजाम देता है, उस गाड़ी को एविडेंस के तौर पर जब्त कर लिया जाता है, या फिर जिस भी दो-पहिया या चार पहिया वाहन में वारदात को अंजाम दिया गया हो, या दो गाड़ियों का आपस में एक्सीडेंट ही क्यों न हो गया हो, उसे एविडेंस एक्ट के अंतर्गत जब्त किया जाता है। 

हैरान कर देने वाली बात तो ये है कि आखिर सरकारी वाहनों को जब्त क्यों नहीं किया गया, यदि ट्रेन में किसी भी तरह की वारदात को अंजाम दिया जाता है तो किसी भी ट्रेन या उसकी बॉगी जिसमे अपराध हुआ है उसे थाने में लाकर क्यों खड़ा नहीं किया जाता, यही प्रश्न सरकारी बस और विमान को लेकर भी उठता है, जहां पुलिस ने एविडेंस एक्ट के अंतर्गत सरकारी बस या विमान को उठाकर थाने में रख दिया हो। इस मामले की गहनता से खोज करने पर पाया गया है कि सरकारी ट्रेनों, वाहनों या विमानों को सामान्य अपराधों के लिए जब्त नहीं किया जाता क्योंकि वे सार्वजनिक संपत्ति होते हैं और उनका उपयोग जनता की सेवा के लिए किया जाता है, इसलिए उन्हें जब्त करने के बजाय, अपराधियों को रेल अधिनियम या अन्य संबंधित कानूनों के तहत पकड़ा जाता है और उन पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाती है, जिसमें जुर्माना या कारावास की सजा दी जाती है। 

रिपोर्ट्स की माने तो यह जितने भी वाहन आपराधिक गतिविधि को अंजाम देने के मामले में पकड़े जाते है ये तब तक जब्त रहते है जब तक इनका फैसला न आ जाए, यही कारण है कि कई अपराधों के फैसले आज तक नहीं आए जिसकी वजह से आज भी कई वाहन थानों में गर्मी, ठंड और बारिश को झेलते हुए क्षतिग्रस्त हो जाते है।  ये बात तो हम सभी भली भाँती जानते है कि भारत में कई ऐसे मामले है जिनकी सुनवाई और फैसले में 50 से 60 वर्ष निकल जाते है, और इतने समय में जहां इंसान के जीवन काल की कोई गारंटी नहीं होती फिर तो ये वाहन है जो इतने समय तक एक स्थान पर पड़े पड़े पूरी तरह सड़ जाते है और जब तक केस का फैसला आता है तब तक यह कबाड़ बन जाते है।  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि हमने ब्रिटिश जमाने से चले आ रहे बहुत से कानूनों में परिवर्तन कर दिया है, लेकिन अब भी इंडियन एविडेंस एक्ट 1872 में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, इसे जल्द से जल्द बदलने की आवश्यकता है। 

यदि ध्यान से देखा और सोचा जाए तो एक वाहन को बनाने में कितने घंटे की मजदूरी, कितनी पावर, कितना कच्चा माल लगा होगा, लेकिन थानों में पड़े पड़े यह वाहन पूरी तरह से सड़ जाते है और बाद में किसी भी काम के नहीं रहते विचार करने वाली बात यह है कि जब्त किए गए वाहन आखिर किसके काम आए न तो सरकार के और नहीं आम जनता के बस कबाड़ में तब्दील हो गए। 

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