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नई दिल्ली: 22 अप्रैल 2025 को जब पहलगाम में इस्लामी आतंकियों ने धर्म पूछ कर 26 बेकसूरों को गोलियों से भून डाला था, तब से देश लगातार उन निर्दोषों की मौत का बदला लेने की मांग कर रहा था। इसमें कुछ समय जरूर लगा लेकिन सरकार ने सेनाओं को खुली छूट दी और उसका परिणाम ऑपरेशन सिंदूर के रूप में सामने आया। इस ऑपरेशन ने जहां भारतीय नागरिकों के जख्मों पर कुछ मरहम लगाने का काम किया, वहीं पाकिस्तान को भी दो टूक भाषा में यह संदेश दे दिया कि आज का भारत आतंकवाद को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा। यदि भारत पर प्रहार होगा, तो वह घर में घुसकर उसका जवाब देगा और बदला भी लेगा।
भारतीय सेना द्वारा चलाए गए इस ऑपरेशन सिंदूर की दुनिया भर में तारीफ हो रही है। अमेरिका से लेकर रूस और इसराइल से लेकर फ्रांस तक भारत के इस जवाबी पलटवार का समर्थन कर रहे हैं। हमले के बाद भारतीय सेना ने बाकायदा प्रेस वार्ता करते हुए हर एक सवाल का जवाब दिया है और हमले के सबूत भी दुनिया के सामने रखे हैं। भारतीय सेना ने बताया कि उनका लक्ष्य सिर्फ आतंकी ठिकानों को नेस्तानाबूद करना था और आतंकियों से अपने नागरिकों की मौत का बदला लेना था, उन्होंने किसी भी आम नागरिक को निशाना नहीं बनाया। तमाम तरह के सबूत और जवाब दिए जाने के बाद भी कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जो दुश्मन देश पाकिस्तान के लिए संजीवनी का काम कर रहे हैं।
*पाकिस्तान मीडिया का लाडला राहुल गांधी।
— P.N.Rai (@PNRai1) May 20, 2025
इससे अच्छे की उम्मीद हम करते भी नहीं।
ट्रैक रिकॉर्ड है, राहुल देश के साथ नहीं खड़े होते। pic.twitter.com/dPX4RS69Le
जंग में मिली हार और भारतीय सेना की मार से बौखलाया हुआ पाकिस्तान पहले ही अपनी जनता को गुमराह करने के लिए झूठी डीगें हाँक रहा है। पाकिस्तानी नेता और वहां का मीडिया लगातार यह झूठ फैला रहा है कि पाकिस्तानी वायु सेना ने भारतीय राफेल लड़ाकू विमान को मार गिराया, जबकि इसका पाकिस्तान के पास एक भी सबूत नहीं है। उसके नेता सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे तरह-तरह के वीडियो को राफेल का बताकर कुप्रचार करने में लगे हुए हैं। वहीं भारतीय नेताओं के कुछ बयान अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन पाकिस्तान के को प्रचार को आगे बढ़ने का काम कर रहे हैं और अपनी सेवा के मनोबल को तोड़ रहे हैँ।
कांग्रेस के प्रधानमंत्री उम्मीदवार और लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में हीरो बने हुए हैँ। राहुल गांधी के बयान पाकिस्तान के अखबारों में सुर्खियां बटोर रहे हैँ, वहां के नेता राहुल के बयानों का हवाला देते हुए भारत सरकार को घेरने की कोशिश कर है।
दरअसल, कुछ दिन पहले राहुल गांधी ने विदेश मंत्री एसजयशंकर का एक वीडियो ट्वीट करते हुए भारत सरकार और ऑपरेशन सिन्दूर पर सवाल उठाए थे। उन्होंने पुछा था कि, पाकिस्तान ने भारत के कितने एयरक्राफ्ट मार गिराए? जबकि भारतीय सशस्त्रबल लगातार प्रेस वार्ता करते हुए हर बात की जानकारी दे रहे हैँ। फिर भी राहुल गांधी सार्वजनिक रूप से इस तरह के सवाल पूछ रहे हैँ, जो पडोसी देश के फर्जी एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम करते हैँ। राहुल गांधी और कांग्रेस ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयरस्ट्राइक के समय भी सेना पर सवाल उठाते हुए हमले कर सबूत मांगे थे, उस समय भी कांग्रेस का भरपूर विरोध हुआ था, लेकिन देश पर सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाली पार्टी ने अपनी गलतियों से कुछ नहीं सीखा, या यूँ कहें कि वो सीखना ही नहीं चाहती।
राहुल गांधी @RahulGandhi जी यह आपकी बनाई हुई सरकार के समय का समझौता है ।1991 में आपकी पार्टी समर्थित सरकार ने यह समझौता किया कि किसी भी आक्रमण या सेना के मूवमेंट की जानकारी का आदान प्रदान भारत व पाकिस्तान एक दूसरे से करेगा।क्या यह समझौता देशद्रोह है? कांग्रेस का हाथ पाकिस्तानी… pic.twitter.com/Me8XFHm0da
— Dr Nishikant Dubey (@nishikant_dubey) May 23, 2025
राहुल गांधी ने जयशंकर का एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा था कि "विदेश मंत्री की चुप्पी केवल बयानबाजी नहीं, बल्कि यह निंदनीय है। मैं फिर से सवाल पूछता हूं: हमने कितने भारतीय विमान खोए क्योंकि पाकिस्तान को पहले से जानकारी थी? यह चूक नहीं थी, यह एक अपराध था। और देश को सच्चाई जानने का हक है।” हालांकि, सवाल ये भी है कि यदि राहुल गांधी को कुछ जानना ही था, तो वे नेता विपक्ष होने के नाते रक्षा मंत्रालय से संपर्क कर सकते थे, सरकार के साथ बैठक का प्रस्ताव रख सकते थे, किन्तु उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपने देश की सेना और सरकार पर सवाल उठाना चुना, जिसने शत्रु देश को ऑक्सीजन देने का काम किया।
यही नहीं राहुल गांधी ने विदेश मंत्री पर आरोप लगाया क्यों उन्होंने पाकिस्तान को हमले की जानकारी पहले ही दे दी थी। यह अपने आप में एक बचकाना आरोप लगता है। एक आम इंसान भी इतना तो सोच सकता है कि अगर कोई देश अपने शत्रु देश पर हमला करना चाहेगा तो क्या वह उसे पहले जानकारी देगा, सतर्क करेगा? क्या ऐसा करने से पाकिस्तान अपने आतंकियों को सुरक्षित जगह पर नहीं पहुंचा देगा? यदि पाकिस्तान को पहले से हमले की जानकारी दी गई होती तो क्या आतंकी मौलाना मसूद अजहर के 14 पारिवारिक सदस्य भारतीय हमले में मारे जाते? क्या पाकिस्तान एयर फोर्स भारतीय हमले का जवाब देने के लिए तैयार नहीं बैठी होती? राहुल गांधी बार-बार जिस वीडियो का हवाला देकर सवाल पूछ रहे हैं, प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरो (PIB) उस वीडियो को पहले ही फर्जी करार दे चुका है लेकिन इसके बावजूद राहुल गांधी के बयान पाकिस्तान आर्मी की असीम मुनीर से मिलते-जुलते दिखाई देते हैं।
The social media post falsely implies from External Affairs Minister @DrSJaishankar's statement that India informed Pakistan before the start of #OperationSindoor#PIBFactCheck:
— PIB Fact Check (@PIBFactCheck) May 15, 2025
▶️ EAM is being misquoted and he has not made this statement
▶️ Remain vigilant and avoid falling… pic.twitter.com/ox3QECwPrg
हालांकि पाकिस्तान के सैन्य प्रवक्ता ने खुद राहुल गांधी के इस दावे को सिरे से नकार दिया है। BBC से बात करते हुए पाकिस्तान के DGISPR ने कहा कि, ये दावा (राहुल गांधी का) हास्यपद है, ऐसा कुछ नहीं हुआ, भारत की ओर से हमले की कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई। लेकिन राहुल गांधी के ट्वीट ने पाकिस्तान को एक बार फिर भारत सरकार पर हमला करने का मौका दे दिया।
अनुच्छेद 370 हटने के समय भी राहुल गांधी ने ऐसा ही बयान दिया था, जिसे हथियार बनाकर पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया था। उस समय राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि, "जम्मू-कश्मीर के लोगों की आज़ादी और नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगे 20 दिन हो चुके हैं। विपक्ष के नेताओं और प्रेस को जम्मू-कश्मीर के लोगों पर अत्याचार और क्रूर बल प्रयोग का अहसास तब हुआ जब हमने कल श्रीनगर जाने की कोशिश की।" राहुल गांधी के इस बयान को पाकिस्तान ने हाथों हाथ लिया और UN में दिखाया कि भारतीय नेता खुद कह रहे हैँ कि मोदी सरकार कश्मीर में अत्याचार कर रही है। उनके इस बयान के कारण आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घर रहे भारत को पाँव पीछे खींचने पड़े थे, क्योंकि उसके देश के मुख्य विपक्षी नेता ही दुश्मनों की भाषा बोल रहे थे।
ये पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का साथ दिया हो, या उसके प्रति नर्म रवैया अपनाया हो। पाकिस्तान पैदा होने के समय से ही भारत का शत्रु रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन इसके बावजूद 26/11 मुंबई आतंकी हमले के समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसे हिन्दू आतंकवाद बताकर हमले का ठीकरा भारत के ही बहुसंख्यक समुदाय पर फोड़ने की कोशिश की थी। यही नहीं जब भारतीय सेना ने आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान पर स्ट्राइक करने का प्रस्ताव रखा तो कांग्रेस सरकार ने इसकी अनुमति देने से भी इंकार कर दिया और आज राहुल गांधी, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक के बाद ऑपरेशन सिंदूर पर सवाल उठा रहे है।
आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का सरगना हाफ़िज़ सईद भी कांग्रेस की तारीफ कर चुका है। एक वीडियो में वो कह रहा है कि "भारतीय राजनीति में अच्छे लोग भी मौजूद हैँ, जैसे कांग्रेस के नेता। कांग्रेस नेताओं ने सरकार को कहा है कि आप (आतंकवाद के लिए) पाकिस्तान पर इल्जाम मत लगाओ, अपने अंदर देखो, आप कश्मीर में कितना जुल्म कर रहे हो।" अब कोई भी आम भारतीय ये देख सकता है कि सरकार ने कश्मीर पर क्या जुल्म किया है? उल्टा 370 हटने के बाद कश्मीर में विकास तेज हुआ है, स्कूल कॉलेज खुले हैँ, पर्यटन बढ़ा है। लेकिन आतंकी ये नहीं चाहते और जाने अनजाने में कांग्रेस भी उन्ही की भाषा बोलती दिखाई देती है। शायद कारण है कि पाकिस्तान भी भारत में कांग्रेस की सरकार चाहता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पाकिस्तान के नेता और वहां के नागरिकों ने भी खोलकर कांग्रेस का समर्थन किया था।
हाफिज सईद कांग्रेस पार्टी की खूब तारीफ करता है
— ????????Jitendra pratap singh???????? (@jpsin1) May 21, 2025
हाफिज सईद कहता है कि कांग्रेस पार्टी भारत की सबसे अच्छी पार्टी है और उसे ही सत्ता में होना चाहिए
भारत के हिंदुओं सोच लो जिस कांग्रेस की तारीफ हाफिज सईद करता है वह पार्टी हिंदुओं के लिए और भारत के लिए कितनी खतरनाक होगी pic.twitter.com/0ZAzLM9ksI
पाकिस्तान के पूर्व मंत्री फवाद चौधरी ने तो राहुल गांधी के भाषण तक ट्वीट किए थे और उनकी जीत के लिए दुआएं की थी। यही नहीं कई मुस्लिम युवाओं को आतंकी बना चूका भगोड़ा इस्लामिk उपदेशक ज़ाकिर नाइक भी कांग्रेस को पसंद करता है। हाल ही में पाकिस्ता दौरे पर भगोड़े नाइक ने कहा था कि मोदी सरकार के कार्यकाल में तो वो भारत नहीं जाएगा, लेकिन जब कांगेस की सरकार बनेगी, तब वो भारत में वापसी करेगा। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, इसी भगोड़े को शांति का मसीहा बताते हैँ, जो खुलेआम कहता है कि उसने हज़ारों हिन्दुओं को मुसलमान बनया है। इस ज़ाकिर नाइक कि तकरीरें सुनकर कई मुस्लिम युवा आतंकी बन चुके हैँ और ये कांग्रेस सरकार आने का इंतज़ार कर रह है, ताकि फिर से भारत में मजहबी जहर फैला सके।
ऐसे में सवाल यह उठता है की एक मुल्क, अपने दुश्मन देश की राजनीति में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है? क्यों वह दुश्मन देश के एक दल को अपना समर्थन दे रहा है? इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? कहीं पाकिस्तान के प्रति कांग्रेस का नरम रवैया ही तो इसका कारण नहीं? अक्सर देखा गया है कि पाकिस्तान और भारत के अन्य दुश्मन देश के प्रति कांग्रेस नेताओं के बयान या तो नहीं आते हैं और अगर आते भी हैं तो बेहद नपे तुले। जिसमें वह भारत विरोधी किसी भी देश पर सीधा हमला करने से बचते हैं।
पाकिस्तान के साथ-साथ भारत का एक बड़ा शत्रु चीन भी है, जो अक्सर सीमाओं पर टकराव की स्थितियां पैदा करता रहता है। कांग्रेस चीन से जुड़े मुद्दे उठाती तो जरूर है सड़क से लेकर संसद तक और मीडिया में जमकर बयान बाजी होती है लेकिन यह सारे बयान सिर्फ और सिर्फ भारत सरकार को घेरने के लिए होते हैं, चीन के खिलाफ पार्टी नेताओं के कोई बयान देखने को नहीं मिलते। इसके पीछे कारण क्या है यह तो कांग्रेसी अच्छे से बता सकती है।
कांग्रेस का यह कारनामा जान देश का सर्वोच्च न्यायालय भी हैरान रह गया कि कैसे कोई राजनीतिक दल दूसरे देश के साथ MOU साइन कर सकता है।
— Ranjit Savarkar (@RanjitSavarkar) August 8, 2020
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान मामला सामने आया। कांग्रेस ने चीन के mou साइन किया है। उनसे चंदा भी लिया। काँग्रेस का हाथ चीन के साथ। pic.twitter.com/EyvbPeNytL
सन 2020 में जब भारत और चीन के बीच गलवान में झड़प हुई थी, तब भी राहुल गांधी और कांग्रेस ने इसको लेकर सरकार पर जमकर निशाना साधा था, लेकिन चीन के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा था। उल्टा राहुल गांधी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि चीन हमारे सैनिकों को पीट रहा है और सरकार चुप है। उनके इस बयान को भारतीय सेना का मनोबल तोड़ने वाला माना गया, जो विकट परिस्थितियों में दुश्मन के सामने डटकर खड़े थे। इसी दौरान कांग्रेस के दिग्गज नेता अधीर रंजन चौधरी ने चीन को आड़े हाथों लेते हुए खरी-खोटी सुना दी थी, जिससे ये सन्देश गया कि राष्ट्र सुरक्षा के नाम पर भारत का पक्ष-विपक्ष दोनों एकसाथ हैं, लेकिन शायद कांग्रेस के हाईकमान को अधीर रंजन का ये बयान पसंद नहीं आया और उनपर दबाव डालकर उनका ट्वीट डिलीट करवा दिया गया।
अधीर रंजन ने चीन को जहरीला सांप बताते हुए कहा था कि, भारतीय सेना जहर उतारने में माहिर है। चौधरी ने सरकार को सलाह भी दी थी कि, भारत सरकार को चीन के दुश्मन ताइवान से संपर्क साधकर चीन को घेरने कि रणनीति बनानी चाहिए। लेकिन इस बयान के बाद ही कांग्रेस का हाईकमान आगबबूला हो गया, अधीर रंजन से दूरी बना ली गई, और भीतरखाने ही उनपर दबाव डालकर ट्वीट डिलीट करवा दिया गया। ऐसे में सवाल ये उठता है कि, जब पार्टी अपने ही देश की सरकार को कुछ भी कह सकती है, तो सीमा पर टकराव और अशांति पैदा कर
रहे दुश्मन देश चीन को जहरीला सांप कहने पर इतना ऐतराज़ क्यों?
कहीं इसके पीछे वही गुप्त समझौता तो नहीं, जो कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच 2008 में हुआ था। इस समझौते पर राहुल गांधी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दस्तखत किए थे। इस समझौते की जांच की मांग सुप्रीम कोर्ट तक में उठी थी, लेकिन इसकी पूरी जानकारी अब तक बाहर नहीं आई है। आखिर एक दुश्मन देश के साथ कांग्रेस ने क्या समझौता किया था ? अगर एक देश की सरकार दूसरे देश की सरकार से कोई समझौता करे, तो बात फिर भी समझी जा सकती है, लेकिन एक पार्टी, दुश्मन देश की राजनितिक पार्टी के साथ कोई एग्रीमेंट करे, तो उसे क्या माना जाए? आरोप तो ये भी हैं कि कांग्रेस के राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से फंडिंग प्राप्त हुई है। क्या इसीलिए कांग्रेस चीन के खिलाफ चुप रहती है ? दोकलाम विवाद के समय चीनी राजदूत से राहुल गांधी की गुप्त मुलाकात भी काफी विवादों में रही थी, उस समय पूरी कांग्रेस दोकलाम को लेकर भारत सरकार को घेरने में लगी थी और राहुल गांधी गुप्त रूप से चीनी राजदूत से मिल रहे थे। पूछने पर पहले तो कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से नकार दिया कि राहुल किसी से नहीं मिले, लेकिन जब चीन ने खुद राहुल की मुलाकात की तस्वीरें जारी की, तब कांग्रेस की जमकर किरकिरी हुई कि उसने ऐसे नाजुक दौर में देश जको अँधेरे में रखकर दुश्मन से मुलाकात की और ये आज तक पता नहीं चल पाया है कि उस मुलाकात के पीछे कारण क्या था और उसे ककंग्रेस्स ने क्यों छिपाया?
हाल ही में जब ऑपरेशन सिन्दूर के बाद पाकिस्तान ने अपनी भड़ास निकालने के लिए भारत पर ड्रोन हमले किए, तो भारतीय सुरक्षाबलों ने तो उसके हर हमले को नाकाम कर दिया, लेकिन इस बीच एक महत्वपूर्ण तथ्य निकलकर सामने आया। वो ये कि पाकिस्तान ने जिन ड्रोन्स और हथियारों का इस्तेमाल किया था, उसमे से अधिकतर तुर्की से आए थे। यही नहीं, तुर्की ने ऑपरेशन सिन्दूर के बाद खुलकर पाकिस्तान के प्रति अपना समर्थन भी दिखाया था और आतंकिस्तान को अपना भाई कहा था। तुर्की के इस व्यव्हार से हर भारतीय का खून खौलना स्वाभाविक था, क्योंकि 2023 में जब तुर्की में विनाशकारी भूकंप आया था, जिसमे 50 हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे। उस समय भारत ही पहला देश था, जो मदद लेकर तुर्की पहुंचा था, लेकिन इसके बावजूद तुर्की ने अहसानफरामोशी दिखाते हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान का साथ दिया, जैसा कि वो हमेशा करते आया है।
तुर्की के बॉयकॉट पर क्या कहना है ?
— Abhay Pratap Singh (बहुत सरल हूं) (@IAbhay_Pratap) May 14, 2025
खेड़ा साहब: जयराम जी कहेंगे
जयराम जी: खेड़ा साहब कहेंगे
दोनों: हम में से कोई कुछ नहीं कहेगा ?
तुर्की के ख़िलाफ़ बोलने में पवन खेड़ा और जयराम रमेश को क्या दिक्कत है ?#Turkiye #BoycottTurkey #Turkey pic.twitter.com/U5lfLhuZEY
इसी को देखते हुए भारत में तुर्की के बहिष्कार की आवाजें उठने लगीं और लोग तुर्की की बुकिंग कैंसिल करने लगे, कई व्यापारियों ने तुर्की से रिश्ते तोड़ लिए। लेकिन इस मुद्दे पर भी कांग्रेस मौन रही। जब एक प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस नेता पवन खेड़ा और जयराम रमेश से तुर्की के बॉयकॉट को लेकर सवाल किया गया, तो वे दोनों एक दूसरे के सामने माइक खिसकाते हुए नज़र आए। कांग्रेस नेताओं ने आतंकवाद का समर्थन करने के लिए तुर्की की निंदा तक नहीं की। इस मुद्दे पर भी कांग्रेस पूरे देश से अलग थलग नज़र आई। आरोप ये भी हैं कि कांग्रेस ने भारत विरोधी तुर्की में अपना पार्टी कार्यालय खोल रखा है, हालाँकि, कांग्रेस इससे इंकार करती है, लेकिन तुर्की के मीडिया संस्थानों ने खुद ये खबर छापी है। तुर्की में मुख्यालय वाली समाचार एजेंसी अनादोलु एजेंसी ने 11 नवंबर 2019 को एक रिपोर्ट में दावा किया था कि, कांग्रेस की इंडियन ओवरसीज कांग्रेस (IOC) ने इस्तांबुल में एक कार्यालय खोलने के बारे में एक प्रेस बयान जारी किया है, जिसका नेतृत्व मुहम्मद यूसुफ खान करेंगे। ये दफ्तर भी उस समय खोला गया था, जब तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र में खुलकर कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दिया था। उस समय भी सवाल उठे थे कि आखिर भारत के एक राजनितिक दल को भारत के शत्रु देश में पार्टी दफ्तर खोलने की क्या आवश्यकता? जहाँ उसके वोटर भी नहीं हैं? इन तमाम चीज़ों को देखते हुए सवाल उठाते हैं कि भले ही कांग्रेस, सड़कों पर या मीडिया में कहती हो कि, हम सरकार के साथ हैं, लेकिन वो सरकार के साथ तो क्या, कई मुद्दों पर देश के साथ भी खड़ी दिखाई नहीं देती है।