चलन में क्यों है डाइट और फिटनेस के ट्रेंड्स

डाइट और फिटनेस ट्रेंड्स जीवनशैली सुधारने में मददगार हो सकते हैं, यदि उन्हें समझदारी और विशेषज्ञ की सलाह के साथ अपनाया जाए। लेकिन बिना ज्ञान और आवश्यकता के उन्हें अपनाना शरीर को लाभ के बजाय नुकसान पहुँचा सकता है।

चलन में क्यों है डाइट और फिटनेस के ट्रेंड्स

सही खान पान सेहत और डाइट दोनों के लिए अच्छा

Share:

Highlights

  • फिटनेस और डाइट ट्रेंड्स सभी के लिए समान नहीं होते।
  • कीटो, इंटरमिटेंट फास्टिंग जैसे ट्रेंड्स विशेषज्ञ की निगरानी में ही अपनाएं।
  • डाइट को लेकर सोशल मीडिया की जानकारी भ्रमित कर सकती है।

आज की तेज़ रफ्तार जीवनशैली में हर कोई फिट और हेल्दी रहना चाहता है। सोशल मीडिया, यूट्यूब, फिटनेस ऐप्स और प्रभावशाली लोगों (influencers) के ज़रिए तरह-तरह के डाइट और फिटनेस ट्रेंड्स सामने आते हैं। कहीं ‘कीटो डाइट’ की बात होती है, तो कहीं ‘इंटरमिटेंट फास्टिंग’; कहीं ‘क्रॉसफिट’ का प्रचार होता है, तो कहीं ‘योगा’ को सर्वोत्तम बताया जाता है। लेकिन इन तमाम ट्रेंड्स के बीच एक बड़ा सवाल यह है — क्या ये सभी ट्रेंड्स वास्तव में वैज्ञानिक आधार पर आधारित हैं? क्या ये सबके लिए सुरक्षित और प्रभावी हैं? और क्या इनमें से कुछ भ्रमित करने वाले या खतरनाक भी हो सकते हैं? यह लेख इन्हीं सवालों की गहराई से पड़ताल करेगा।

1. कीटो डाइट (Keto Diet) क्या है?:

कीटो डाइट, जिसे किटोजेनिक डाइट भी कहा जाता है, आजकल वजन घटाने और फिटनेस के क्षेत्र में एक बहुत लोकप्रिय डाइट प्लान बन चुकी है। यह एक विशेष प्रकार की डाइट है जिसमें कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates) की मात्रा बहुत कम, वसा (Fat) की मात्रा अधिक और प्रोटीन (Protein) की मात्रा मध्यम रखी जाती है। इस डाइट का मुख्य उद्देश्य शरीर को किटोसिस (Ketosis) नामक स्थिति में लाना होता है।

क्या खाया जाता है कीटो डाइट में? : इस डाइट में जिन खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता दी जाती है, वे हैं:

  • अधिक वसा वाले खाद्य पदार्थ: घी, मक्खन, नारियल तेल, जैतून का तेल, एवोकाडो
  • प्रोटीन: अंडे, चिकन, मछली, पनीर
  • लो-कार्ब सब्जियाँ: पालक, ब्रोकली, फूलगोभी
  • नट्स और बीज: अखरोट, अलसी, चिया बीज वहीं दूसरी ओर, अनाज, चावल, चीनी, आलू, फल (केला, सेब आदि), मीठे पेय आदि पूरी तरह से वर्जित होते हैं।

लाभ :

  • वजन घटाने में तेज़ परिणाम देता है
  • ब्लड शुगर और इंसुलिन के स्तर को नियंत्रित कर सकता है
  • कुछ मामलों में मानसिक स्पष्टता और फोकस बेहतर होता है
  • टाइप-2 डायबिटीज़ के मरीजों में सकारात्मक असर दिखाया गया है

नुकसान :

  • लंबे समय तक पालन कठिन
  • थकान, कब्ज, सिरदर्द जैसी समस्याएँ शुरू में हो सकती हैं (जिसे ‘कीटो फ्लू’ कहा जाता है)
  • शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो सकती है
  • हृदय रोग या किडनी की समस्या वालों के लिए जोखिमपूर्ण

2. इंटरमिटेंट फास्टिंग (Intermittent Fasting) क्या है? :

आज के दौर में वजन घटाने और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के कई उपाय प्रचलन में हैं, जिनमें से एक सबसे चर्चित और लोकप्रिय तरीका है – इंटरमिटेंट फास्टिंग। यह कोई डाइट प्लान नहीं, बल्कि खाने का एक पैटर्न है, जिसमें व्यक्ति दिन के कुछ घंटों में ही भोजन करता है और बाकी समय उपवास (फास्टिंग) करता है। इंटरमिटेंट फास्टिंग (IF) का अर्थ है – समय-सीमित भोजन। इसमें आप एक निश्चित समयावधि में खाना खाते हैं और बाकी समय कुछ नहीं खाते। उदाहरण के लिए, 16/8 पद्धति में आप दिन के 8 घंटे (जैसे सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक) खाना खाते हैं और बाकी 16 घंटे उपवास करते हैं।

इंटरमिटेंट फास्टिंग के कई प्रकार होते हैं :

  • 16/8 विधि: 16 घंटे उपवास और 8 घंटे खाने की अनुमति।
  • 5:2 डाइट: सप्ताह में दो दिन केवल 500–600 कैलोरी लेना और बाकी 5 दिन सामान्य भोजन।
  • ईट-स्टॉप-ईट: सप्ताह में 1–2 बार 24 घंटे का उपवास।

इसके पीछे का विज्ञान : जब आप लंबे समय तक उपवास करते हैं, तो शरीर पहले ग्लूकोज जलाकर ऊर्जा बनाता है। लेकिन उपवास की स्थिति में जब ग्लूकोज खत्म हो जाता है, तो शरीर फैट को ऊर्जा के रूप में उपयोग करना शुरू करता है। इससे वजन घटता है और मेटाबोलिज़्म बेहतर होता है।

इंटरमिटेंट फास्टिंग के फायदे :

  • वजन घटाने में सहायक
  • इंसुलिन सेंसिटिविटी में सुधार
  • कोलेस्ट्रॉल और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद
  • सेल रिपेयर और ऑटॉफैगी (पुरानी कोशिकाओं का पुनर्निर्माण)
  • मानसिक स्पष्टता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में वृद्धि

सावधानियाँ: गर्भवती महिलाएं, डायबिटीज़ के मरीज़, किशोर और बुजुर्ग बिना डॉक्टर की सलाह इंटरमिटेंट फास्टिंग न करें। अधिक समय तक उपवास करने से कमजोरी, चक्कर, गैस और अनियमित भोजन की आदतें हो सकती हैं।

3. डिटॉक्स डाइट (Detox Diet): 

आज के समय में "डिटॉक्स डाइट" (Detox Diet) एक लोकप्रिय शब्द बन चुका है, जो स्वास्थ्य, फिटनेस और वेट लॉस के क्षेत्रों में अक्सर सुनाई देता है। लोग इसे अपनाकर अपने शरीर को "शुद्ध" करने की कोशिश करते हैं, लेकिन क्या वास्तव में डिटॉक्स डाइट शरीर को साफ़ करती है? आइए जानते हैं डिटॉक्स डाइट क्या है, इसका उद्देश्य, लाभ और इससे जुड़े भ्रम।

डिटॉक्स डाइट क्या है?: डिटॉक्स डाइट एक विशेष प्रकार का भोजन योजना होती है जिसका मुख्य उद्देश्य शरीर से विषैले पदार्थ (toxins) निकालना होता है। यह डाइट कुछ दिनों के लिए ली जाती है और इसमें आमतौर पर फलों का रस, सब्जियों का सूप, नींबू पानी, हर्बल चाय, और हल्का भोजन शामिल होता है। कई बार इसमें उपवास (फास्टिंग) या बहुत सीमित कैलोरी का सेवन भी होता है।

डिटॉक्स डाइट का उद्देश्य: डिटॉक्स डाइट का दावा है कि यह –

  • शरीर से टॉक्सिन्स निकालती है
  • पाचन तंत्र को सुधारती है
  • ऊर्जा का स्तर बढ़ाती है
  • त्वचा को निखारती है
  • वजन कम करने में सहायक होती है

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सच्चाई : मानव शरीर में लिवर, किडनी, आंत, त्वचा और फेफड़े जैसे अंग पहले से ही प्राकृतिक रूप से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में सक्षम हैं। यदि हम संतुलित आहार लेते हैं, पर्याप्त पानी पीते हैं और नियमित व्यायाम करते हैं, तो शरीर खुद ही डिटॉक्स करता रहता है। डिटॉक्स डाइट की आवश्यकता केवल कुछ विशिष्ट चिकित्सा स्थितियों में होती है, न कि सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को।

डिटॉक्स डाइट से जुड़े भ्रम :

  • हर किसी के लिए फायदेमंद है: नहीं, गर्भवती महिलाएं, मधुमेह रोगी या कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए यह हानिकारक हो सकती है।
  • वजन घटाता है: डिटॉक्स डाइट से जो वजन घटता है वह आमतौर पर पानी और मसल मास का होता है, न कि वसा का।
  • लंबे समय तक फॉलो किया जा सकता है: यह डाइट अल्पकालिक होती है। लंबे समय तक इसका पालन शरीर को पोषक तत्वों की कमी से कमजोर बना सकता है।
  • शरीर का अपना डिटॉक्स सिस्टम (लीवर, किडनी) पहले से मौजूद है

भ्रम और खतरे

  • पोषक तत्वों की कमी
  • मांसपेशियों में कमजोरी
  • लंबे समय तक पालन खतरनाक

4. ग्लूटन-फ्री डाइट (Gluten-Free Diet):

आजकल स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के साथ-साथ डाइट के नए-नए ट्रेंड्स भी सामने आ रहे हैं। इन ट्रेंड्स में "ग्लूटन-फ्री डाइट" (Gluten-Free Diet) ने विशेष लोकप्रियता प्राप्त की है। सोशल मीडिया और सेलिब्रिटी कल्चर ने इसे एक "फैशन स्टेटमेंट" की तरह प्रचारित किया है। लेकिन क्या वास्तव में ग्लूटन-फ्री डाइट सभी के लिए आवश्यक या फायदेमंद है? इस लेख में हम इस डाइट की वैज्ञानिक सच्चाई को समझने का प्रयास करेंगे।

ग्लूटन क्या है?: ग्लूटन एक प्रकार का प्रोटीन है जो गेहूं, जौ (Barley), राई (Rye) और इनके उत्पादों में पाया जाता है। यह आटे को लोचदार बनाता है और ब्रेड तथा पेस्ट्रीज को स्पंजी बनाता है। हालांकि यह एक सामान्य प्रोटीन है, लेकिन कुछ लोगों के लिए यह स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।

ग्लूटन-फ्री डाइट किनके लिए जरूरी है?

सेलिएक रोग (Celiac Disease) : यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें व्यक्ति का शरीर ग्लूटन को पचा नहीं पाता। इससे छोटी आंत को नुकसान पहुंचता है और पोषक तत्वों का अवशोषण रुक जाता है। ऐसे लोगों के लिए ग्लूटन-फ्री डाइट जीवनभर आवश्यक होती है।

ग्लूटन सेंसिटिविटी या एलर्जी : कुछ लोग सेलिएक रोग से ग्रस्त नहीं होते, लेकिन ग्लूटन लेने पर उन्हें पेट दर्द, गैस, सूजन, सिरदर्द या थकान जैसे लक्षण महसूस होते हैं। इन्हें Non-Celiac Gluten Sensitivity कहा जाता है। ऐसे मामलों में भी ग्लूटन का परहेज़ किया जाता है।

सभी के लिए क्यों नहीं है? : ग्लूटन-फ्री डाइट को वजन घटाने या स्वस्थ रहने का साधन मान लेना एक भ्रम है। ग्लूटन को बिना किसी चिकित्सकीय आवश्यकता के हटाना संतुलित आहार को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि इससे शरीर को फाइबर, आयरन, फोलेट, और अन्य पोषक तत्वों की कमी हो सकती है। इसके अलावा, कई ग्लूटन-फ्री उत्पादों में अधिक वसा और शुगर डाली जाती है जिससे वे स्वादिष्ट लगें। 

रिलेटेड टॉपिक्स