पहलगाम से मुर्शिदाबाद और बांग्लादेश से इजराइल तक, कट्टरपंथियों का एक ही मकसद

पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने भारत के साथ पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है, और एक बार फिर से ये सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर दुनियाभर में हो रहे आतंकी हमलों के पीछे वजह क्या है ? क्या ये आतंकी सिर्फ इस्लाम को फैलाने के लिए लड़ रहे हैं? क्या इसके पीछे कारण सिर्फ मजहब है या कुछ और ? यदि दुनिया को आतंक का सफाया करना है, तो सबसे पहले उसकी जड़ मालूम करनी होगी, और उस पर वार करना होगा, वरना विश्व इसी तरह आतंकी हमलों से कराहता रहेगा.

पहलगाम से मुर्शिदाबाद और बांग्लादेश से इजराइल तक, कट्टरपंथियों का एक ही मकसद

पहलगाम से लेकर इजराइल तक, एक ही पैटर्न से हमले कर रहे आतंकी

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Highlights

  • दुनियाभर में हो रहे आतंकी हमले।
  • आतंकी हमलों के पीछे की वजह क्या।
  • तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम को बताया आतंकवाद का कारण।

''जब तक इस्लाम जिंदा रहेगा, आतंकवाद जिंदा रहेगा। जब तक इस्लाम जिंदा रहेगा, गैर-मुसलमानों को कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी, स्वतंत्र विचारकों और तर्कवादियों को कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी, महिलाओं को कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी। जब तक इस्लाम जिंदा रहेगा, फूल मुरझाते रहेंगे, बच्चे मरते रहेंगे, लाखों मरे हुए कबूतर बारिश की तरह गिरते रहेंगे। इस्लाम की कोख से नफरत पैदा होती रहेगी, बदसूरत राक्षस पैदा होते रहेंगे। जब तक इस्लाम जिंदा रहेगा, कोई राज, कोई राज्य सभ्य नहीं बन पाएगा, दुनिया सभ्य नहीं बन पाएगी।''

यह ट्वीट बांग्लादेश के निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन का है, जो पहलगाम में हुए नरसंहार और भी पूर्व में अतीत में हुए तमाम कत्ले आम का जिम्मेदार इस्लाम को ठहरा रही हैँ। तस्लीमा नसरीन अपनी किताब लज्जा के बाद सुर्खियों में आई थी और बांग्लादेश की क्रूर सच्चाई उजागर करने का परिणाम उन्हें देश छोड़कर भुगतना पड़ा।

उनकी किताब में एक दृश्य है जिसमें एक मां अपनी बेटी के बलात्कारी से गिड़गिड़ाते हुए कह रही है कि 'एक-एक करके करो वह छोटी है मर जाएगी।' किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए यह पंक्तियां रूप कपा देने वाली हो सकती है, किंतु जिनका जमीर मुर्दा ही हो चुका है उनके लिए कुछ कहा नहीं जा सकता। ये उपन्यास 1992 में बांग्लादेश में हुए हिन्दू नरसंहार पर आधारित है, जहाँ इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिन्दू बहन-बेटियों का इस कदर बलात्कार किया था कि एक माँ, उनसे ये कहने पर विवश हो गई थी कि ''एक-एक करके करो, वो छोटी है, मर जाएगी।'' इस किताब को बांग्लादेश सरकार ने तो बैन किया है, ममता सरकार ने भी एक बार इस पर आधारित नाटक के मंचन पर रोक लगा दी थी कि कहीं मुस्लिम समुदाय नाराज़ न हो जाए। यहाँ भी एक समुदाय को खुश रखने के लिए पूरे नरसंहार को बेशर्मी से दबा दिया गया।

हालांकि, तस्लीमा नसरीन के इस ट्वीट में एक विरोधाभास भी है। वह पूरे इस्लाम को इस चीज का जिम्मेदार ठहराती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। यदि ऐसा होता तो भारत के बाद दुनिया की सबसे अधिक मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में भी आतंकवाद चरम पर होता। किंतु यहां बात इस्लाम की नहीं इस्लाम में पनप रहे कट्टरपंथ की है जिससे इंडोनेशिया अभी तक तो कोसों दूर है। वहां के नोटों पर श्री गणेश की तस्वीर है वहां के टीवी पर हर दिन रामायण देखी जाती है और पूरे देश में कई ऐसी मूर्तियां हैं, जो सबूत देती हैं कि यहां कभी भारतीय संस्कृति हुआ करती थी।

शायद इंडोनेशिया में इसीलिए कट्टरपंथ नहीं है, क्योंकि वहां के मुसलमान अपनी जड़ों से नफरत नहीं करते, जिस तरह पाकिस्तान-बांग्लादेश के मुस्लिम, और बहुत हद तक भारत में भी अब ये कट्टरपंथ पनपने लगा है। जिसका असर हाल ही में पहलगाम में देखने को मिला है। मगर क्या यह पहला हमला है या यह सिर्फ भारत पर हमला हुआ है? दुनिया के कई देशों में इसी पैटर्न पर हमले देखे गए हैं तो क्या सभी जगह यह हत्यारे एक ही है??

पहलगाम नरसंहार :

पहलगाम में जो हुआ उसके खून भरे अक्षरों से अखबारों के पन्ने भरे हुए हैं  26 पर्यटकों को आतंकियों ने उनका धर्म देखकर बेरहमी से गोली मार दी कुछ लोगों की पेंट उतार कर यह भी चेक किया कि उनका खतना हुआ है या नहीं? 

ये हमला एक पर्यटन स्थल पर हुआ, और आमतौर पर पर्यटन स्थल पर दुकानदारों से लेकर परिवहन और तमाम तरह के लोग मौजूद होते हैं जिसमें से अधिकतर स्थानीय होते हैँ। लेकिन पहलगाम हत्याकांड के कितने वीडियो सामने आए ? जो वहां के लोगों के द्वारा बनाए गए हों? घोड़े वाले, दूकान वाले, छोटे-मोटे परिवहन वाले, आखिर सब कहाँ चले गए थे, जो किसी ने भी आतंकी की एक तस्वीर तक न खींची, जिन्दा बचे पर्यटकों की मदद से ही आतंकियों के स्केच बने ? आज इंटरनेट के युग में हर छोटी-मोटी घटना कोई भी चोरी छुपे मोबाइल में कैद कर लेता है, लेकिन 15-20 मिनट तक फायरिंग होती रही। नाम पूछे गए, धर्म पूछा गया, पेंट उतारी गई, गोली मारी गई, इस बीच ना तो वहां कोई पुलिस पहुंची, न ही स्थानीय लोगों का हुजूम, जो कुछ महीने पहले आतंकी नसरुल्लाह के लिए सड़कों पर नारेबाजी कर रहा था।

इसमें कोई दो राय नहीं कि कश्मीर में रहने वाले मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा, कुछ नेताओं के बहकावे में आकर पाकिस्तान को अपना हमदर्द समझता है और भारत को दुश्मन। वो आज भी 370 हटाने का विरोध करता है, जिसने घाटी को आतंकवाद की आग में झोंक दिया। सेना पर पत्थर फेंकने कोई पाकिस्तान से तो नहीं आता था, वे कश्मीर के ही स्थानीय लोग थे, जो जवानों पर पत्थर फेंककर अपनी नफरत का प्रदर्शन करते थे और सरकार की तरफ से हाथ बंधे होने के कारण जवान अपमानित होकर रह जाते थे। 

हालाँकि, अब समय बदला है और पत्थरबाजों को जवाब देने की छूट सेना को मिल गई है, लेकिन क्या इससे कट्टरपंथी सुधर गए ? वे डर के कारण चुप जरूर हैं, लेकिन नफ़रतें तो अब भी उनके अंदर है और वो इसी तरह के मौकों की तलाश में हैं। हाल ही में हुए जम्मू कश्मीर चुनाव में इसका परिणाम भी देखने को मिला है, जिसमे 370 वापस लागू करने का वादा करने वाली, और पाकिस्तान से बातचीत की वकालत करने वाली नेशनल कांफ्रेंस (NC) ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में तमाम सीटें जीती। जो बताता है कि इस समुदाय में कट्टरपंथ और पाक-परस्ती कितनी तेजी से बढ़ रही है। 

क्या आतंकवाद का विरोध करते हैं स्थानीय कश्मीरी ?

कई दशक हो गए सेना को जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए, कई जवानों ने आतंकियों को सुधारने की कोशिश में अपने प्राण तक दे दिए, लेकिन न तो आतंकवाद पूरी तरह से खत्म हो पाया और न ही आतंकी बन रहे युवाओं की सोच में कोई परिवर्तन आया। कश्मीर में मजहबी जहर फैलाने वाले सभी आतंकी पाकिस्तान से नहीं आते, बहुत से स्थानीय भी होते हैं और कई ऐसे स्थानीय लोग भी हैं, जो पाकिस्तानी आतंकियों को खाना-पीना और अन्य मदद मुहैया कराते हैं। आतंक के इन मददगारों को ओवर ग्राउंड वर्कर (OGW) कहते हैं, जो खुद को बन्दूक नहीं रखते, लेकिन बंदूकधारी आतंकियों को अपने घरों में छिपाते हैं, उनके लिए रेकी करते हैं। वरना क्या ऐसा हो सकता है कि स्थानीय मदद के बिना, आतंकी इस तरह एक के बाद एक वारदातों को अंजाम देते रहें ?

माफ़ कीजिएगा, सेना के पास मन पढ़ने की मशीनें नहीं हैं, जो आम व्यक्ति सड़कों पर घुमते हुए दीखता है, वो आतंकी है या नहीं? उसका पता तब तक नहीं चल सकता, जब तक वो खुद हमला न करे, या उसके पास हथियार न दिखे। कश्मीर में कई सरकारी अधिकारी, शिक्षक, पुलिसकर्मी आतंकियों के मददगारों के रूप में पकड़े जा चुके हैं और न जाने कितने अब तक छुपे हुए हैं। यहाँ फिर से स्पष्ट कर दें कि सभी कश्मीरी मुस्लिमों की बात नहीं हो रही है, लेकिन अधिकतर आतंकी विचारधारा के प्रभाव में आकर कट्टरपंथी बन चुके हैं। 

इसके उदाहरण भी आपके समक्ष रखते हैं। सितंबर 2022 की बात है, जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस एमडी अकरम चौधरी एक मामले की सुनवाई कर रही थी। मामला ये था कि, इंडियन मुजाहिदीन के एक कुख्यात आतंकी को सेना ने ढेर कर दिया था, जिसके बाद मस्जिद शरीफ के इमाम जाविद अहमद शाह सहित देवसर, कुलगाम के कई मुस्लिमों ने उसे शहीद बताते हुए उसके जनाज़े की नमाज़ पढ़ी थी। पुलिस ने FIR दर्ज की, शायद इन्हे सजा भी होती, लेकिन हाई कोर्ट का आदेश था कि आतंकियों के जनाज़े में नमाज़ पढ़ना राष्ट्र-विरोधी गतिविधि नहीं है, ये उनका मौलिक अधिकार है। अब जो लोग आतंकियों को शहीद बताकर उनके जनाज़े में नमाज़ पढ़ने जाते हों, क्या वे आतंकवाद का विरोध करेंगे ? 

हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी का नाम भी आपने सुना होगा। कई आतंकी हमलों में शामिल रहे वानी को 2016 में सुरक्षाबलों ने ढेर कर दिया था, जिसके बाद लगभग 53 दिनों तक पूरा जम्मू कश्मीर कर्फ्यू में रहा। उसके जनाज़े में लाखों लोग आए, और हिंसक विरोध प्रदर्शन किए। इस हिंसा में 96 से अधिक लोग मारे गए और 15000 से अधिक नागरिक और 4000 भारतीय सुरक्षाकर्मी घायल हुए, वहीं 300 से अधिक कश्मीरी हिन्दू परिवारों को अपना घर छोड़कर भागना पड़ा। ध्यान रखिए, ये हिंसा इसलिए की गई थी, क्योंकि एक आतंकी मारा गया था और यही लोग कहते हैं कि वे आतंकवाद के खिलाफ हैं। क्या आप विश्वास करेंगे ? जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के सरगना यासीन मलिक को कश्मीर के लोगों ने नेता बना रखा था, जो TV पर कबूल चुका था कि उसने भारतीय वायुसेना के 4 निहत्थे अफसरों की हत्या की है। क्या ये लोग आतंकवाद के खिलाफ हैं ? 

हिजबुल्लाह आतंकी नसरुल्लाह की मौत पर देशभर में जितना मुस्लिम समुदाय ने मातम मनाया, क्या उतना दुःख पहलगाम के मृतकों के प्रति दिखाई दिया? कथित विरोध प्रदर्शन का भी जो वीडियो सामने आया था, उसमे लोग हँसते हुए दिखाई दे रहे थे और सोशल मीडिया पर भी पहलगाम नरसंहार की खबरों पर haha का इमोजी पोस्ट करने वाले अधिकाँश हैंडल मुस्लिम नामों वाले ही थे। हालाँकि, इसके पीछे तर्क दिया जा सकता है कि ये पाकिस्तानी अकाउंट हो सकते हैं, लेकिन क्या पाकिस्तान और हिंदुस्तान के मुस्लिम अलग-अलग हैं? कुछ सालों पहले तक तो सभी एक ही थे, अचानक कैसे बदल गए ? और जो आज एक हैं, वो कल नहीं बदलेंगे, इसकी क्या गारंटी ? 

कश्मीर में ये कट्टरपंथी बहाना बनाते हैं कि, कश्मीर मुसलमानों की धरती है, यहाँ बाहरी लोगों को रहने का कोई अधिकार नहीं और इसीलिए वे बाहरी लोगों को भगाने के लिए उनकी हत्याएं करते रहते हैं और दहशत फैलते रहते हैं। हज़ारों साल पहले ऋषि कश्यप के नाम पर बसा कश्मीर, आज कट्टरपंथियों का हो गया और वे किसी दूसरे को वहां रहने नहीं देना चाहते। 1990 के कश्मीरी हिन्दू नरसंहार के समय भी कई स्थानीय लोगों ने ही आतंकियों का साथ दिया था, और हिन्दुओं की पहचान तथा ठिकाने उजागर किए थे। 

इजराइल में भी आतंकी हमले का वही पैटर्न :

इजराइल में भी कट्टरपंथी इसी बहाने का इस्तेमाल करते हैं। उनका कहना है कि इजराइल ने उनकी जमीन पर कब्जा कर रखा है और इसीलिए हमास-हिजबुल्लाह जैसे कट्टरपंथी यहूदियों को मार डालना चाहते हैं। वैसे तो ईसाई धर्म ग्रन्थ बाइबिल के हिसाब से इजराइल, ईश्वर द्वारा यहूदियों को दी गई प्रॉमिस्ड लैंड (Promised Land) है, वहां यहूदियों के 3000 वर्ष प्राचीन मंदिर की एक दिवार अब भी खड़ी है, जिसे न जाने कितनी बार तोड़ा गया। ठीक वैसे ही, जैसे भारत में काशी-मथुरा-अयोध्या में तबाही मचाई गई। 

आपको जानकर हैरानी होगी कि इस्लाम के आने से पहले मक्का-मदीना में भी यहूदी रहा करते थे। काबा में 360 प्रतिमाएं थी, जिनकी वहां के लोग पूजा किया करते थे। तस्लीमा नसरीन एक ट्वीट में बताती हैं कि, ''पैगम्बर मोहम्मद ने काबा के अंदर 360 मूर्तियाँ नष्ट कर दीं। उनके अनुयायी उनके पदचिन्हों पर चलते रहे हैं।'' इस्लामी धर्मग्रन्थ खुद बताते हैं कि, पैगंबर के समय मुसलमानों और यहूदियों में काफी लड़ाई हुई और यहूदियों को मक्का-मदीना से मारकर भगा दिया गया। अब वही मुस्लिम कहते हैं कि इजराइल उनकी जमीन है, जबकि उन्होंने खुद ही यहूदियों को मक्का-मदीना से मारकर भगाया और उनके धर्मस्थान नष्ट किए और उनकी जमीन कब्जा ली। 

यदि एक बार को मान भी लिया जाए कि इजराइल का कब्ज़ा अवैध है, तो इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट है, संयुक्त राष्ट्र है, लेकिन हमास-हिज्बुल्ला जैसे संगठन क्या करते हैं? वे यहूदियों पर हमला करते हैं, उनकी हत्याएं करते हैं, यहूदी महिलाओं के सामूहिक बलात्कार करते हैं और फिर जब इजराइल पलटवार करता है, तो खुद को दुनिया के सामने पीड़ित बताते हैं और महिलाओं-बच्चों को ढाल बनाकर उनके पीछे छिप जाते हैं, जिसके कारण आम मुसलमान मारे जाते हैं, जिनका कोई कसूर नहीं होता। वैसे यहूदियों को चुन-चुनकर मारने का हुक्म इस्लामी किताबों में दर्ज है। हदीस की किताब में स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि, "क़यामत उस समय तक नहीं आएगी, जब तक तुम यहूदियों से युद्ध न कर लो और यहाँ तक कि जिस पत्थर के पीछे यहूदी छुपा हो, वह पत्थर न कहे कि ए मुसलमान! यह मेरे पीछे यहूदी छुपा है, इसकी हत्या कर दो।" (सहीह बुखारी-2926)।

बांग्लादेश में हिन्दुओं पर चुन-चुनकर हुए हमले :

इन दोनों मामलों में आपने देखा कि बेकसूरों की हत्याओं को ये कहकर जायज ठहरने की कोशिश की जाती है कि आतंकी तो अपनी जमीन के लिए लड़ रहे हैं, वे आतंकी नहीं स्वतंत्रता सेनानी हैं। फिर बांग्लादेश में हिन्दुओं-ईसाईयों पर क्यों जुल्म हो रहा है ? बांग्लादेश में तो लड़ाई सरकार के खिलाफ थी, शेख हसीना ने हार मान ली और देश छोड़ दिया। नई सरकार बनी, कट्टरपंथियों की पसंद वाली, जिसके अंतरिम प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने कई आतंकियों को जेल से रिहा कर दिया।

लड़ाई सरकार के खिलाफ थी, तो सरकार उखाड़कर फेंक दी गई, फिर तो मामला शांत हो जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा हुआ क्या ? बिलकुल नहीं, शेख हसीना के जाने के बाद हिन्दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले तेज हो गए और शांति के नाम पर कथित नोबल पुरस्कार पाने वाले मोहम्मद यूनुस मुंह में दही जमाए बैठे रहे। यहाँ तो कोई जमीन की लड़ाई भी नहीं थी, भारत, मुसलमानों के हिस्से की जमीन उन्हें 1947 में ही दे चुका था, लेकिन क्या इससे कट्टरपंथियों को संतुष्टि हुई ? क्या इजराइल और कश्मीर भी कट्टरपंथियों को सौंप देने से समस्या हल हो जाएगी ? इसकी क्या गारंटी है कि कट्टरपंथियों की मांग आगे नहीं बढ़ेगी, और वे पूरे भारत पर कब्जा करने की कोशिश नहीं करेंगे ? प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) तो पूरा प्लान भी बना चुका है कि किस तरह 2047 तक भारत को पूरी तरह इस्लामी राष्ट्र बनाना है और इसमें कई कट्टरपंथी उसका साथ दे रहे हैं। 

मुर्शिदाबाद में हिन्दू विरोधी हिंसा :

पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में भी लड़ाई केंद्र सरकार के खिलाफ थी, जो वक्फ बिल लेकर आई थी। संसद में चर्चा के बाद JPC को बिल भेजे जाने के बाद, लोकसभा और राज्यसभा में ये बिल पास हो गया और राष्ट्रपति के दस्तखत के साथ ही कानून भी बन गया। लेकिन संसद द्वारा बनाए गए कानून को मानने से कुछ संगठनों ने इंकार कर दिया। हालाँकि, लोकतंत्र में विरोध का अधिकार सबको है, लेकिन विरोध संविधान और कानून के दायरे में होना चाहिए। किन्तु क्या ऐसा हुआ ? मुर्शिदाबाद में भी कट्टरपंथियों ने सरकार का गुस्सा हिन्दुओं पर उतार दिया, और हज़ारों की संख्या में हिन्दू मुर्शिदाबाद से पलायन कर गए। बता दें कि मुर्शिदाबाद में मुस्लिम आबादी लगभग 70 फीसद है, कहा जाता है कि इनमे बांग्लादेशी घुसपैठिए भी मौजूद हैं।

लेकिन मुर्शिदाबाद के मुस्लिम तो आतंकी नहीं थे, फिर उन्होंने हिन्दुओं की हत्याएं क्यों की ? सरकार का विरोध करने के कई तरीके थे। धरना प्रदर्शन करते, मार्च निकालते, विधानसभा का घेराव करते, लेकिन कट्टरपंथियों को तो हिन्दुओं को निशाना बनाने का बहाना मिल चुका था, और इस कारण वो मुस्लिम भी बदनाम हुए, जो हिंसा में यकीन नहीं रखते हैं।   

क्या एक रात में कोई आतंकी बन जाता है ?

15 अगस्त 1946 का दिन था, रमजान का महीना चल रहा था, कहा जाता है कि इस दौरान मुस्लिम समुदाय सिर्फ ईश्वर की इबादत करता है और कोई बुरा काम नहीं करता। सब कुछ सामान्य था, हिन्दू-मुस्लिम बड़े भाईचारे के साथ रहते थे और मिलकर अंग्रेजी शासन का विरोध करने का दावा करते थे। लेकिन अगले ही दिन, मोहम्मद अली जिन्ना ने प्रत्यक्ष कार्रवाई दिवस (Direct Action Day) का ऐलान कर दिया। 16 अगस्त 1946 को जुम्मा था, एक तो रमजान, दूसरा जुम्मा, मस्जिदों में भारी भीड़ थी। जिन्ना की मांग थी कि उसे पाकिस्तान चाहिए और इसी कारण उसने डायरेक्ट एक्शन डे का ऐलान किया था, जिसे Great Calcutta Killings भी कहा जाता है। 

अब जिन्ना की ये मांग तो ब्रिटिश सरकार और गांधी-नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस से थी, लेकिन खामियाज़ा भुगता हिन्दुओं ने। 16 अगस्त 1946 के दिन जुम्मे की नमाज़ पढ़ने और मौलानाओं के भड़काऊ भाषण सुनने के बाद हज़ारों की तादाद में मुसलमान हथियार लेकर सड़कों पर उतर आए और चुन-चुनकर हिन्दुओं की हत्याएं करने लगे। हिन्दू, जो अपने घरों में थे या अपने कामों में व्यस्त थे, उन्हें इस बात की भनक भी नहीं थी कि उनके साथ क्या होने जा रहा है, कल तक जो भाई थे, वही आज कसाई बन चुके थे। 4 दिनों तक कलकत्ता की गलियां खून और लाशों से पटी रहीं, कल तक दुआ सलाम-राम-राम करने वाले मुस्लिम एक ही रात में आतंकी बन चुके थे, या आतंक का बीज तो उनके अंदर पहले से था और अब उसे हवा मिल गई थी। वरना एक रात में इतना बड़ा परिवर्तन कैसे संभव है ? कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, इन कट्टरपंथियों को हथियार भी मस्जिदों से ही दिए गए, इस हमले में 20 हज़ार से अधिक हिन्दू मारे गए और लाखों घर छोड़कर भाग गए। महिलाओं-बच्चियों का उनके परिजनों के सामने सामूहिक बलात्कार किया गया। ये बलात्कारी वही थे, जिन्हे कल तक ये महिलाएं भाईजान और बच्चियां चाचा कहती थी। 

भारत का विभाजन :

आख़िरकार, जिन्ना के मजहबी कट्टरपंथ के आगे कांग्रेस ने आत्मसमर्पण कर दिया और बंटवारा मंजूर कर लिया गया। पाकिस्तान भारत से एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 को अलग देश घोषित कर दिया गया था। अब सोचिए यदि आपको संपत्ति के बंटवारे में आपका हिस्सा मिल जाए, तो आप क्या करेंगे ? शायद उसे सजाएंगे-संवारेंगे और सुकून से रहेंगे। लेकिन अगले ही दिन 15 अगस्त को पाकिस्तान से लाशों से भरी एक ट्रेन भारत पहुँचती है, जिस पर लिखा होता है 'नेहरू और पटेल को आज़ादी का तोहफा।' 

ये वही लोग थे, जो कहते थे कि हमने भी अंग्रेज़ों के खिलाफ कंधे से कन्धा मिलाकर आज़ादी की लड़ाई लड़ी है, लेकिन आज़ादी मिलते ही, एक दिन में अचानक क्या हो गया, जो वही लोग हिन्दुओं-सिखों की हत्या करने लगे, उनकी बहन बेटियों का बलात्कार करने लगे। सिखों ने तो अपनी बेटियों को कट्टरपंथियों के सामूहिक बलात्कार से बचाने के लिए खुद बच्चियों की गर्दनें काट दी थी। आज कहा जाता है कि पाकिस्तान आतंकवाद की जननी है, लेकिन उसने एक ही रात में इतने आतंकी कैसे पैदा कर दिए ? इससे तो यही माना जा सकता है कि, उन लोगों के अंदर मजहबी आतंकवाद का जहर पहले से भरा हुआ था, जो मौका मिलते ही बाहर आ गया। और यदि आगे मौक़ा मिला तो भी वे ऐसा ही करेंगे, जैसा मुर्शिदाबाद और कश्मीर में कर रहे हैं। 

जहां अन्य आबादी न के बराबर है, वहां ये कट्टरपंथी आपस में लड़कर मर रहे हैं, क्योंकि मजहबी कट्टरपंथ एक जहर है, वो जान लिए बिना चैन से नहीं बैठ सकता। पाकिस्तान का ही उदाहरण ले लो, इस्लाम के नाम पर बना देश, लेकिन आज वहां मुसलमान भी सुरक्षित नहीं। शियाओं की मस्जिदों में सुन्नी बम फोड़ते हैं और सुन्नियों पर शिया हमले करते हैं, दोनों ने मिलकर अहमदिया मुस्लिमों को इस्लाम से ही बाहर कर दिया है, उनकी मस्जिदें तो तोड़ी ही, उनकी कब्रें तक खोद डाली हैं। 

अफ्रीका में बोको हराम नामक आतंकी संगठन, छोटी छोटी मुस्लिम और ईसाई बच्चियों को उठा ले जाता है, उन्हें यौन दासियाँ बना लेता है और कई लड़कियों का जबरन खतना भी कर देता है। यही घिनौना काम इस्लामिक स्टेट (ISIS) के आतंकी इराक में यजीदी लड़कियों के साथ करते हैं। 11 महीने तक आतंकियों की कैद में एक 12 वर्षीय बच्ची ने मीडिया को बताया था कि, "मैं उसे (आतंकी) कहती थी कि मुझे तकलीफ होती है। ऐसा मत करो। वह मुझे कहता था कि इस्लाम के मुताबिक काफिरों का रेप करना गुनाह नहीं है। वह कहता था कि मेरा रेप करने से उसे जन्नत नसीब होगी।" जब कट्टरपंथी मुस्लिम, अन्य समुदायों के प्रति ये मानसिकता रखेंगे, तो क्या आपको लगता है कि वे आपको मारने या अपमानित करने का एक भी मौका छोड़ेंगे, यदि उन्हें मौका मिला ? 

कट्टरपंथ और आतंकवाद बढ़ने के पीछे कारण क्या?

इंडोनेशिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे कुछ मुस्लिम देश अब भी कट्टरपंथ से दूर हैं। इसका कारण ये है कि इन देशों ने मुस्लिम युवाओं को कट्टर बनाने वाले संगठनों-संस्थाओं की पहचान कर ली है। सऊदी अरब ने इस्लामी मुल्क होते हुए भी, तब्लीग़ी जमात को आतंकवाद का द्वार बताकर उसपर प्रतिबन्ध लगा दिया है। जबकि भारत में ये खुलकर मजहबी नफरत फैलाता है और युवाओं को कट्टर बनाता है। इंटरनेट पर ऐसे कई वीडियो मौजूद हैं, जिसमे मौलाना खुलेआम गैर-मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगल रहे हैं । 

भारत में पकड़े गए कई आतंकी ये कबूल कर चुके हैं कि वे भगोड़े जाकिर नाइक की तकरीरें सुनकर आतंकी बने। ये वही जाकिर नाइक है, जो पूर्व की सरकारों के समय भारत में 24 घंटे एक TV चैनल चलाता था Peace TV के नाम से, जिसमे वो गैर-मुस्लिमों के खिलाफ जमकर जहर उगलता था। भारत में कई ऐसे आतंकी भी पकड़ाए हैं, जो पहले हिन्दू थे। लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि, वे भी आतंकी बनने से पहले मुसलमान बने, उन्हें इस्लाम में धर्मान्तरित किया गया। 

अब सवाल ये उठता है कि, कट्टरपंथी मौलाना-मौलवी इस्लाम का नाम लेकर युवाओं को ऐसा कौनसा लालच देते हैं, जो वे लोग अपने शरीर पर बम बांधकर निर्दोषों के बीच फट जाते हैं। तो इसका सबसे स्पष्ट जवाब है जन्नत । लेकिन जन्नत तो अच्छे कामों से भी मिल सकती है, फिर उसके लिए बेकसूरों का खून बहाना ही जरुरी क्यों? 

आरिफ मोहम्मद खान ने बताई इसकी वजह :

राजीव गांधी सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके आरिफ मोहम्मद खान ने द वायर की पत्रकार अरफ़ा खानुम शेरवानी के साथ एक इंटरव्यू में इसका खुलासा किया था। मौजूदा समय में केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद ने बताया था कि भारत के सबसे बड़े इस्लामिक संस्थानों में से एक देवबंद में जिहाद को लेकर गलत जानकारी पढ़ाई जाती है, जिससे मुस्लिम युवा कट्टर बन रहे हैं।

आरिफ मोहम्मद ने कहा था कि, क़ुरान के अनुसार जिहाद करेने या लड़ने की इजाजत सिर्फ उनको है, जिनपर अत्याचार किया गया हो, जिन्हे अपने घर से निकाला गया हो। लेकिन देवबंद में पढ़ाया जाता है कि, ''गैर-मुस्लिमों को दीन (इस्लाम) की तरफ बुलाने और न मानने पर उनके खिलाफ जिहाद करने का हुक्म है।'' अब अगर मुस्लिम युवा ये पढ़ेंगे, तो क्या वे अन्य समुदायों के प्रति आदर-सम्मान रख पाएंगे ? आरिफ खान के इस बयान पर अरफ़ा बगलें झाँकने लगती हैं और फ़ौरन टॉपिक बदल लेती हैं। इन मुद्दों पर चर्चा नहीं होती, यही कारण है कि अभी तक आतंकवाद की जड़ ही पता नहीं चल पाई है।

 

 

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