
मध्य प्रदेश (Madhya pradesh) के हृदयस्थल में स्थित जबलपुर (Jabalpur) न केवल एक ऐतिहासिक नगर है, बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक धरोहरों से भी समृद्ध है। यह शहर नर्मदा नदी के किनारे बसा है और मध्य भारत के प्रमुख नगरों में से एक कहा जाता है, इतना ही नहीं जबलपुर का इतिहास कई शताब्दियों पुराना है और यहाँ अनेक साम्राज्यों का शासन रहा है। साथ ही यह शहर कई पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध है जो प्राकृतिक और ऐतिहासिक दोनों रूपों में समृद्ध हैं।
जबलपुर का प्राचीन नाम "त्रिपुरी" (Tripuri) था, जो कालिंजर वंश की राजधानी मानी जाती थी। प्राचीन ग्रंथों में त्रिपुरी का उल्लेख मिलता है और इसे एक समृद्ध नगर कहा जाता है। यह चेदि वंश की राजधानी थी और महाभारत काल में इसका महत्व रहा है।
ऐसी मान्यता है कि जबलपुर, पौराणिक काल में ऋषि जबाली की तपस्या भूमि थी जिस पर जबलपुर (जाबालिपुरम) का नाम तय हुआ। यहां पर अशोक वंश के अवशेष भी पाए गए। 9वीं और 10वीं शताब्दी में यह त्रिपुरी राज्य की राजधानी था। 875 ईं0 में यहां कलचूरी वंश का शासन हुआ जिन्होने जबलपुर को अपनी राजधानी बना लिया। 13वीं शताब्दी में गोंड जाति ने इस पर कब्जा करके इसे अपनी राजधानी बनाने का निर्णय किया। अभिलेख से पता लगता है कि हैइहई जाति के राजकुमार जो कि गोंडवाना के इतिहास के साथ इसका रिश्ता है, उन्होने भी यहां राज्य किया। 16वीं शताब्दी में गढ़ मंडल के गोंड राजा ने जबलपुर सहित बावन जिले तक अपनी सत्ता को दूर दूर तक फैला दिया। कड़ा मानिकपुर के वायसराय आसफ़ खान, अपने पोते की अल्प आयु की वजह से गढ़ राज्य को जीत कर इसके स्वतंत्र प्रमुख बन गए । बाद में वह मुगल बादशाह अकबर के अधीन हुए। समय समय पर मुगल शासको ने इस पर आधिपत्य करने का प्रयास किया। विख्यात रानी दुर्गावती महान मुगल बादशाह अकबर की सेनाओं से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुई।
प्राचीन काल: चेदि वंश के अलावा गुप्त वंश के समय में भी जबलपुर इलाके ने उल्लेखनीय प्रगति की। सम्राट अशोक के अभिलेख भी इस इलाके में पाए गए हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मौर्य वंश के अधीन भी यह क्षेत्र था।
मध्यकाल: मध्यकाल में यह क्षेत्र गोंड राजाओं के अधीन रहा। गोंड वंश के राजा मदन सिंह और रानी दुर्गावती का नाम जबलपुर के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। रानी दुर्गावती ने मुगलों से वीरता से युद्ध किया और बलिदान दिया। उनका युद्ध कौशल और वीरता आज भी जबलपुर की पहचान है।
ब्रिटिश काल: अंग्रेजों के शासन काल में जबलपुर मध्य भारत की एक प्रमुख छावनी इलाका बन गया। यहाँ एक बड़ा सैन्य अड्डा बनाया गया। वर्ष 1864 में जबलपुर को नगरपालिका का दर्जा प्राप्त हुआ। ब्रिटिश शासन के दौरान यहाँ रेलमार्ग और अन्य आधुनिक सुविधाओं का विकास हुआ।
स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका: जबलपुर ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहाँ कई आंदोलनों का संचालन हुआ और स्वतंत्रता सेनानियों ने हिस्सा लिया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी जैसे महान नेताओं के दौरे यहाँ हुए।
भेड़ाघाट (Bhedaghat) जबलपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर है और यह अपनी संगमरमर की चट्टानों के लिए प्रसिद्ध है। नर्मदा नदी इन चट्टानों के मध्य से बहती है और नौका विहार के बीच चट्टानों का मनोरम दृश्य मन को मोह लेने वाला है। यह भेड़ाघाट क्षेत्र में स्थित है और अपनी सुंदरता के लिए पहचाना जाता है, जहां नर्मदा नदी संगमरमर की चट्टानों के मध्य से बहती है. जब नदी गिरती है, तो यह एक धुएं या कुहासा जैसा प्रभाव पैदा कर रही है , जिससे इसका नाम "धुआंधार" पड़ा है.
धुआंधार (Dhunadhar) जलप्रपात 30 मीटर (लगभग 100 फीट) ऊँचा है. इसे "धुआं झरना" भी कहा जाता है और यह जबलपुर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है. यह जलप्रपात नर्मदा नदी पर स्थित है और जब नदी संगमरमर की चट्टानों के मध्य से से बहती है, तो यह बहुत संकरी हो जाती है.
बैलेंसिंग रॉक्स प्राचीन मदन महल किले पर बसा हुआ है, और मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी जबलपुर से लगभग 6 KM दूर है। जबलपुर मुख्य रूप से अपनी प्रसिद्ध संगमरमर की चट्टानों, राष्ट्रीय उद्यानों, प्राचीन किलों, आश्चर्यजनक झरनों और घाटों के लिए लोगों के बीच प्रसिद्ध है। बैलेंसिंग रॉक एक अलग तरह की चट्टान है जो किसी अन्य चट्टान पर बहुत अच्छी तरह से इस पर संतुलित है। ऊपरी चट्टान नीचे रखी हुई चट्टान के ऊपर ही संतुलित होती है, वह लगभग 6 वर्ग इंच है, जो दर्शाता है कि प्रकृति के काम की तुलना किसी भी इंजीनियर या वास्तुकार के कार्य से नहीं हो सकता। यह अपनी पूर्णता और संतुलन से किसी को भी मंत्रमुग्ध करने के लिए काफी है। जब पर्यटक इस स्थान की सैर के लिए जाते है, तो उन्हें लगता है कि यह एक सेकंड में ही नीचे आ जाएगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ । ये बैलेंसिंग रॉक ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण से बनते हैं और इस तरह से संतुलित होते हैं कि कोई भी बाहरी बल उनके संतुलन को बिगाड़ नहीं पाता, चाहे वह तेज़ हवाएँ हों, तूफ़ान हों, भूकंप हों या कोई यांत्रिक बल ही क्यों न हो। ये बैलेंसिंग रॉक वर्ष 1977 में आए सबसे अधिक तीव्रता वाले भूकंप के झटके को भी झेल गए, जिसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 6.5 आंकी गई थी। भूगर्भशास्त्री और वैज्ञानिक आज भी इस बात का पता नहीं लगा पाए है कि आखिर ऐसा क्यों।
मध्य प्रदेश के जबलपुर में मदन महल (Madan Mahal) किला, 11वीं शताब्दी में जबलपुर पर कई सालों तक शासन करने वाले शासकों के जीवन प्रमाण से जुड़ा हुआ है। शहर से कुछ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित मदन महल किला राजा मदन सिंह द्वारा इसका निर्माण करवाया गया था।इस किले से राजा की माँ रानी दुर्गावती के नाम को भी जोड़ा जाता है, जो इस स्थान की एक बहादुर गोंड शासक रहीं। यह किला, जो वर्तमान में खंडहर में है, रानी दुर्गावती और उनके पूरी तरह सुसज्जित प्रशासन और सेना के आभास को दर्शाती है। शाही परिवार का मुख्य आनंद कक्ष, युद्ध कक्ष, छोटा जलाशय और अस्तबल देखने के काबिल है। किला बीते युग के लोगों के जीवन से जुड़ी कई तरह की बातों का सबूत कहा जाता है, और यह उस समय की बेजोड़ राजसी शान का अंदाजा लगाने में भी सहायता करता है मदन महल किला निश्चित रूप से हिन्दुस्तान के आकर्षक प्राचीन स्मारकों में से एक है और जबलपुर की यात्रा के सैन्य यहाँ जाना न भूलें।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान (Kanha National Park) की वनस्पतियों में 1000 से ज्यादातर फूलदार पौधे ही देखने के लिए मिलते है। इसके साथ साथ, इसमें वर्ष, बांस और अन्य मिश्रित वन वृक्षों के साथ-साथ घास के मैदान, चढ़ने वाले पौधे, जड़ी-बूटियाँ और जंगल के इलाके में उगने वाली झाड़ियाँ भी देखने के लिए मिलती है। साथ ही, झीलों में कुछ जलीय पौधे भी हैं जो आर्द्रभूमि और पक्षियों की प्रवासी प्रजातियों के अस्तित्व के लिए बहुत ही खास है। जहाँ तक जीवों का प्रश्न है, इस अभ्यारण्य में बाघ, तेंदुआ, बाइसन, गौर और हिरण जैसी कई लुप्तप्राय प्रजातियाँ देखने के लिए मिल रही है, जिनमें चित्तीदार हिरण, सांभर, चार सींग वाले मृग, माउस हिरण और भौंकने वाले हिरण शामिल हैं। बारहसिंगा, काला हिरण और दलदली हिरण जैसी अनोखी प्रजातियाँ इस अभ्यारण्य के विशिष्ट वन्यजीवों को सबके सामने पेश करती है। लोमड़ी, लकड़बग्घा, शहद बेजर, भारतीय भेड़िया, सुस्त भालू, जंगली सूअर, जंगली बिल्ली, लंगूर और मैकाक जैसे अन्य जानवर भी यहाँ रहते हैं। इसके साथ साथ, यह रिजर्व 300 से अधिक पक्षियों की प्रजातियों और अजगर, कोबरा और वाइपर जैसे कई सरीसृपों के निवास स्थान के रूप में भी पहचाने जाते है।
जबलपुर में एक ऐतिहासिक जैन मंदिर (Jain Temple) है, जो कि हनुमान ताल (Hanumantal) के ठीक किनारे पर है, जो कभी जबलपुर का मुख्य केंद्र कहा जाता था। सोनागिरि के भट्टारक हरिचंद्रभूषण, जो मूल संघ के बालात्कारा गण प्रभाग के साथ जुड़े हुए थे, उन्होंने वर्ष 1834, 1839 और 1840 में प्रतिष्ठाएं आयोजित कीं। भट्टारक चारिचंद्रभूषण ने वर्ष 1866, 1867 और 1889 में प्रतिष्ठाएं आयोजित कीं। सोनागिरि के भट्टारक ने पास के पनागर के जैन केंद्र का निर्माण भी करवाया, जहां नरेंद्रभूषण ने 1797 में प्रतिमाएं स्थापित कीं, सुरेंद्रभूषण ने संचालन किया। इस मंदिर में कलचुरी काल (10-12वीं शताब्दी) की कई प्रतिमाएँ हैं, जिनमें भगवान आदिनाथ की एक अलंकृत प्रतिमा भी मौजूद है। जिसमे मुगल काल, मराठा काल और ब्रिटिश काल की कई प्रतिमाएँ भी देखने के लिए मिलती है, साथ ही भारत की आज़ादी के बाद स्थापित की गई प्रतिमाएँ भी हैं।
इतना ही नहीं इस मंदिर का भ्रमण आचार्य शांतिसागर ने वर्ष 1928 में करवाया था, जो कई शताब्दियों के पश्चात इस इलाके के प्रथम दिगंबर जैन आचार्य थे। वे कटनी में चातुर्मास के पश्चात पहुंचे और दमोह के लिए रवाना हुए। इसके बाद उन्होंने टिप्पणी की कि मंदिर एक किले की तरह बनाया गया था। मंदिर कई शिखरों के साथ एक किले की तरह ही दिखाई देता है। मूल रूप से 1686 ई. में निर्मित, इसे 19वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित करवाया गया था, इस मंदिर में 22 तीर्थस्थल (वेदियाँ) हैं, जो इसे इंडिया का सबसे बड़ा स्वतंत्र जैन मंदिर बनाता है। छवियाँ कलचुरी काल से लेकर आधुनिक वक़्त तक की हैं। कांच के काम वाला मुख्य कमरा वर्ष 1886 में भोलानाथ सिंघई द्वारा निर्माण करवाया गया था, दरअसल जिन्होंने पहले दो हितकारिणी सभा स्कूलों को शुरू करने में भी सहायता की। इस कमरे में जैन देवी पद्मावती की एकमात्र छवि है, जिसकी अभी भी मध्य भारत में पूजा की जाती है।
तिलवारा घाट (Tilwaraghat) सिर्फ़ एक धार्मिक स्थल के नाम से ही नहीं जाना जाता, बल्कि यह भारत के समृद्ध इतिहास, परंपराओं और आध्यात्मिक विरासत का प्रमाण भी कहा जाता है । चाहे आप ईश्वरीय आशीर्वाद चाहते हों, इतिहास में खो जाना चाहते हों या नर्मदा की शांत सुंदरता का आनंद लेना चाहते हों , यह पवित्र घाट जबलपुर में ज़रूर जाना चाहिए।
ग्वारीघाट (Gwarighat) सुनने में और कहने में एक ही शब्द है लेकिन इस घाट के आसपास कई और भी घाट बसे हुए है। हर घाटों के अलग-अलग नाम है और अलग अलग पहचान है। ग्वारीघाट (Gwarighat) के सारे घाट अच्छी तरह से बनाएं गए है। ग्वारीघाट के सारे घाट में आपके बैठने की उत्तम व्यवस्था है। ग्वारीघाट (Gwarighat) के सभी घाटों में अब साफ सफाई का बहुत ज्यादा ध्यान दिया दिया जाता है, मगर लोग यहां पर फिर भी गंदगी करते हैं। यहां पर कूड़ेदान की भी व्यवस्था है और घाटों पर साफ सफाई करने वाले लोग लगे रहते हैं।
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