धर्म परिवर्तन को लेकर ये क्या बोल गए ए. आर. रहमान

ए. आर. रहमान ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने सूफीवाद इसलिए अपनाया क्योंकि यह आत्मचिंतन, विनम्रता और अहंकार त्यागने का मार्ग है। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों में समान आस्था की भावना उन्हें आकर्षित करती है और वे मानवता व आध्यात्मिक समृद्धि को सर्वोपरि मानते हैं।

धर्म परिवर्तन को लेकर ये क्या बोल गए ए. आर. रहमान

ए.आर.रहमान ने अपनाया सूफीवाद, धर्म परिवर्तन को लेकर दिया बड़ा बयान

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Highlights

  • धर्म परिवर्तन को लेकर ए. आर. रहमान ने किया हैरान करने वाला खुलासा।
  • इस्लाम, हिंदू धर्म और ईसाई धर्म सहित सभी धर्मों का सम्मान करते हैं ए. आर. रहमान।
  • आध्यात्मिक समृद्धि के साथ भौतिक समृद्धि भी आती है : ए. आर. रहमान।

भारतीय संगीत जगत के वैश्विक आइकॉन ए.आर. रहमान अपनी अद्भुत धुनों और आध्यात्मिक सोच के लिए खूब जाने जाते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जिनका नाम आज दुनिया भर में सम्मान से लिया जाता है, उनका जन्म दिलीप कुमार राजगोपाल के रूप में हुआ था। बाद में उन्होंने सूफ़ीवाद अपनाया और एक हिंदू ज्योतिषी के सुझाव पर ‘रहमान’ नाम रखा। हाल ही में एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में उन्होंने अपने धर्म और आध्यात्मिक यात्रा पर खुलकर बात की।

‘मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ’ :

एक पॉडकास्ट में रहमान ने कहा कि उनका दृष्टिकोण बेहद उदार है और वे किसी एक धर्म के अनुयायी होने से पहले पूरे मानव समाज को देखते हैं। उन्होंने बताया—“मैं सभी धर्मों का फैन हूं। इस्लाम, हिंदू धर्म और ईसाई धर्म—तीनों को पढ़ा है, समझा है। मुझे सिर्फ एक चीज़ से दिक्कत है—धर्म के नाम पर हिंसा या दूसरों को नुकसान पहुँचाना।”

उन्होंने कहा कि संगीत उनके लिए सिर्फ कला नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। जब वह स्टेज पर परफॉर्म करते हैं तो उन्हें वह स्थल किसी तीर्थ जैसा प्रतीत होता है, जहाँ अलग-अलग धर्मों और भाषाओं वाले लोग एकजुट होकर संगीत का आनंद लेते हैं।

सूफ़ीवाद की ओर क्यों आकर्षित हुए रहमान? : 

रहमान ने सूफ़ीवाद को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ बताया। उन्होंने ये भी कहा है कि “सूफ़ीवाद का मतलब है—मरने से पहले मरना। यह अपने भीतर के पर्दों को हटाना है। इसमें वासना, लालच, ईर्ष्या और निंदा जैसी चीज़ें खत्म हो जाती हैं। जब अहंकार मिटता है, तभी इंसान ईश्वर के करीब पहुँचता है।” उन्होंने कहा कि उन्हें यह बात खास लगती है कि सभी धर्म ऊपर से अलग दिखते हैं, लेकिन भीतर गहरी समानता रखते हैं। यह समानता उन्हें आध्यात्मिक रूप से जोड़ती है।

आस्था की समानता ही सबसे सुंदर : 

रहमान ने कहा कि किसी भी धर्म की असली पहचान आस्था की सच्चाई होती है। उन्हाेंने कहा है कि “हम भले अलग-अलग धर्मों को मानते हों, पर ईमानदार आस्था ही मायने रखती है। अच्छा काम करने की प्रेरणा आस्था से मिलती है—और इससे पूरी मानवता को लाभ होता है।” उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा है कि आध्यात्मिक संपन्नता से जीवन में संतुलन आता है और भौतिक सफलता भी उसी के बाद आती है।

क्यों किया सूफ़ी इस्लाम कबूल? :

रहमान ने बताया कि सूफ़ीवाद के रास्ते पर चलते हुए उन्होंने कभी अपने ऊपर या किसी और पर धर्म परिवर्तन का दबाव महसूस नहीं किया। सब कुछ दिल से आया। उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा है कि “सूफ़ी मार्ग पर किसी को मजबूर नहीं किया जाता। मेरी माँ और मुझे यह रास्ता सबसे सही लगा। हमें लगा कि यह हमें आध्यात्मिक रूप से ऊपर उठा रहा है।” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उनके परिवार या दोस्तों ने भी कभी धर्म परिवर्तन में हस्तक्षेप नहीं किया। उन्होंने कहा कि म्यूज़िशियन होने के नाते उन्हें हमेशा सामाजिक स्वतंत्रता मिली है और सूफ़ीवाद अपनाने के बाद यह स्वतंत्रता और भी मजबूत हुई।

नाम बदलने के पीछे की कहानी : 

रहमान ने खुलासा किया कि उनका नया नाम एक सूफ़ी गुरु और एक हिंदू ज्योतिषी दोनों के सुझाव के बाद चुना गया था। 'दिलीप कुमार' नाम उन्हें अपनी बचपन की परेशानियों की याद दिलाता था। उन्होंने कहा है कि “मुझे लगा कि नया नाम मेरे नए जीवन और नई शुरुआत का हिस्सा होगा। ‘रहमान’ नाम सुनकर मुझे शांति महसूस होती थी।”

संगीत और आध्यात्मिकता का गहरा संबंध :

रहमान के अनुसार संगीत और आध्यात्मिकता अलग नहीं हैं। उनकी कई रचनाओं में सूफ़ी संगीत की झलक दिखाई देती है। उनका मानना है कि संगीत मनुष्य को एकजुट करता है और इसी वजह से वे मंच को ईश्वर का स्थल मानते हैं। ए.आर. रहमान का इंटरव्यू यह दिखाता है कि आध्यात्मिकता और कला का संगम कैसे एक इंसान को न केवल बेहतर कलाकार बल्कि बेहतर इंसान बनाता है। उनका संदेश साफ है—धर्म का लक्ष्य जोड़ना है, तोड़ना नहीं। और यही वह सोच है जिसने उन्हें एक वैश्विक कलाकार और आध्यात्मिक आइकन बनाया।

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